गुजरात के स्मारकों में से एक रानी की वाव (रानी का बावड़ी) को
यूनाइटेड किंग्डम के स्कॉटलैंड में द स्कॉटिश टेन प्रोजेक्ट के तहत डिजिटल रुप
दिया जाएगा.
रानी की वाव उन पांच अंतरराष्ट्रीय विरासत स्थलों में से एक है जिसे
नवीनतम प्रौद्योगिकी के जरिए स्कॉटलैंड में डिजिटल रूप दिया जाना है. ऐसा करने से
इसके बारे में बहुत अधिक लोगों को पता चल पाएगा और इसका राष्ट्रीय और
अंतरराष्ट्रीय प्रोफाइल भी बढ़ेगा. यह वाव न सिर्फ भारत के बाहर व्यापक रूप से
जाना जाता है बल्कि फिलहाल ये यूनेस्को के अस्थायी विश्व धरोहर सूची में भी शामिल
है.
अन्य विदेशी स्थल जिन्हें द स्कॉटिश टेन प्रोजेक्ट के
जरिए डिजिटल रूप दिया जाना हैः अमेरिका के माउंड रश्मोर राष्ट्रीय स्मारक में रखे
राष्ट्रपति के सिर, चीन के ईस्टर्न क्विंग टॉम्ब्स, ऑस्ट्रेलिया का सिडनी ओपरा हाउस. पांचवा स्थल का चुनाव और घोषणा जून 2014
तक कर दी जाएगी.
इन अंतरराष्ट्रीय स्थलों के अलावा, इस प्रोजेक्ट में स्कॉटलैंड के पांच घरोहर स्थल भी शामिल हैं. ये हैं
नीयोलिथिक ऑरकेनी, एंटोनीनी वॉल, एडिनबर्ग
का पुराना औऱ नया शहर, न्यू लैनार्क कॉटन मिल कॉम्लेक्स और
सेंट क्लिडा का द्वीप.
स्कॉटिश टेन प्रोजेक्ट के
बारे में
स्कॉटिश टेन प्रोजेक्ट यूनेस्को द्वारा स्कॉटलैंड के पांच
धरोहर स्थलों और पांच अंतरराष्ट्रीय घरोहर स्थलों का उनके बेहतर संरक्षण और
प्रबंधन के लिए उनका सटीक डिजिटल मॉडल बनाने के लिए महत्वकांक्षी पांच वर्षीय
प्रोग्राम है.
स्कॉटिश टेन
प्रोजेक्ट का प्राथमिक उद्देश्य
• स्कॉटलैंड और विदेशों
की महत्वपूर्ण ऐतिहासिक स्थलों को डिजिटल रूप में भावी पीढ़ी के लिए संरक्षित करना
.
• संरक्षण और डिजिटल
विजुअलाइजेशन में स्कॉटिश तकनीकी विशेषज्ञता को बांटने और बढ़ावा देने के लिए.
• स्कॉटलैंड के साथ
सांस्कृतिक कनेक्शन और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के निर्माण के लिए.
• धरोहर स्थल का 3डी मॉडल और डाटा वहां के स्टाफ को मुहैया कराना ताकि उसका बेहतर रखरखाव हो
सके.
• भविष्य में नवाचार के
विकास और नवीन शोध, शिक्षा एवं प्रबंधन के लिए धरोहर स्थल का
डिजिटल दस्तावेज बनाना औऱ सटीक 3डी सर्वे करना.
रानी की वाव के बारे में
रानी की वाव भारत के गुजरात राज्य के पाटण शहर में स्थिर
प्रख्यात बावड़ी है. राजा सिद्धराज जयसिंह के समय पाटण अन्हिलपुरपाटण के नाम से जाना जाता था औऱ यह गुजरात की
राजधानी थी.
रानी की वाव का निर्माण 1022 – 1063 ई. के बीच हुआ था. इस स्थल को 1950 के दशक से फिर से
खोजा गया. सदियों ने इसके कई स्तरों को भर दिया था. परिणामस्वरूप इसमें की गई
नक्काशियां अभी तक अपने मूल रूप में हैं. इसमें ऐसे कई अनूठी विशेषताएं हैं जो इसे
भारत का सबसे महत्वपूर्ण बावड़ी बनाता है.
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