सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एचएल दत्तू की
अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने विभिन्न उच्च न्यायालयों के आदेशों के खिलाफ अपील के लिए
सुदूर दक्षिण, पूरब और पश्चिम के प्रमुख शहरों में
राष्ट्रीय अपीलीय अदालत (एनसीए) की क्षेत्रीय पीठें स्थापित करने के मुद्दे पर छह
माह के अन्दर फैसला लेने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश दिया.
खंडपीठ ने यह निर्देश पुडुचेरी के एक अधिवक्ता वी. वसंत कुमार की उस याचिका की सुनवाई करने के दौरान 12 अक्टूबर 2014 को दिया जिसमें न्यायालय से इस मामले में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया गया था.
खंडपीठ ने यह निर्देश पुडुचेरी के एक अधिवक्ता वी. वसंत कुमार की उस याचिका की सुनवाई करने के दौरान 12 अक्टूबर 2014 को दिया जिसमें न्यायालय से इस मामले में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया गया था.
प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एचएल दत्तू की अध्यक्षता वाली खंडपीठ
ने विधि एवं न्याय मंत्रालय तथा केंद्रीय गृह मंत्रालय के द्वारा केंद्र सरकार को
नोटिस जारी करके यह निर्देश दिया कि सरकार छह माह के भीतर राष्ट्रीय अपीलीय अदालत
की क्षेत्रीय पीठें स्थापित करने से संबंधित फैसला लें.
अधिवक्ता वी. वसंत कुमार ने याचिका में यह दलील दी कि देश के कई सुदूर हिस्सों से सर्वोच्च न्यायालय की दूरी इतनी है कि विभिन्न उच्च न्यायालयों के आदेशों के खिलाफ अधिकतर लोग चाहकर भी अपील नहीं कर पाते हैं और उन्हें न्याय सर्व सुलभ नहीं हो पाता है. सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने के लिए होने वाली यात्रा खर्चो के अलावा यहां प्रैक्टिस करने वाले वकीलों की महंगी फीस भी न्याय हासिल करने के रास्ते में रोड़ा पैदा करती है.
याचिकाकर्ता ने एनसीए के गठन का मुद्दा पहले केंद्र सरकार के समक्ष उठाया था लेकिन वहां से कोई सकारात्मक जवाब न मिलने के बाद उन्होंने याचिका सर्वोच्च न्यायालय में दायर की थी.
अधिवक्ता वी. वसंत कुमार ने याचिका में यह दलील दी कि देश के कई सुदूर हिस्सों से सर्वोच्च न्यायालय की दूरी इतनी है कि विभिन्न उच्च न्यायालयों के आदेशों के खिलाफ अधिकतर लोग चाहकर भी अपील नहीं कर पाते हैं और उन्हें न्याय सर्व सुलभ नहीं हो पाता है. सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने के लिए होने वाली यात्रा खर्चो के अलावा यहां प्रैक्टिस करने वाले वकीलों की महंगी फीस भी न्याय हासिल करने के रास्ते में रोड़ा पैदा करती है.
याचिकाकर्ता ने एनसीए के गठन का मुद्दा पहले केंद्र सरकार के समक्ष उठाया था लेकिन वहां से कोई सकारात्मक जवाब न मिलने के बाद उन्होंने याचिका सर्वोच्च न्यायालय में दायर की थी.
विदित हो कि विधि आयोग ने भी अपनी 125वीं रिपोर्ट में कहा था कि सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली में स्थित है और तमिलनाडु, गुजरात, असम अथवा मेघालय के वादियों और प्रतिवादियों को उच्च न्यायालयों के फैसलों के खिलाफ अपील करने के लिए यात्रा व्यय पर बड़ी राशि खर्च करनी पड़ती है. इतना ही नहीं ऐसा रिवाज रहा है कि जो अधिवक्ता उच्च न्यायालय में मुकदमा लड़ता है उसे भी आमतौर पर साथ रखा जाता है. ऐसी स्थिति में खर्च और भी अधिक बढ़ जाता है.
सर्वोच्च न्यायालय में दर्ज होने वाली अपीलों के सर्वेक्षण में यह पाया गया है कि केरल और आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालयों के फैसलों के खिलाफ क्रमश: 2.5 प्रतिशत और 2.8 प्रतिशत अपीलें ही दायर होती हैं. उत्तरी राज्यों से यह आंकड़ा सर्वाधिक होता है. दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सर्वाधिक 14 प्रतिशत, पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के खिलाफ 9.8 प्रतिशत, उत्तराखंड से सात प्रतिशत और हिमाचल प्रदेश से 2.5 प्रतिशत अपीलें दायर होती हैं.
0 comments:
Post a Comment