विश्व बैंक ने 'इंडिया डेवलपमेंट अपडेट' रिपोर्ट जारी की-(30-OCT-2014) C.A

| Thursday, October 30, 2014
विश्व बैंक ने अपनी द्विवार्षिक रिपोर्ट भारत विकास अद्यतन (इंडिया डेवलपमेंट अपडेट) 27 अक्टूबर 2014 को जारी की. रिपोर्ट में विश्व बैंक ने उच्च विकास दर को प्राप्त करने के लिए घरेलू सुधारों को जारी रखने और निवेश को प्रोत्साहित करने पर जोर दिया.

इस रिपोर्ट में भारत के सकल घरेलू उत्पाद में वित्तीय वर्ष 2014-15 में 5.6 प्रतिशत की वृद्धि होने की संभावना तथा जीडीपी विकास दर के वित्त वर्ष 2015-16 में 6.4 प्रतिशत की दर से एवं वित्तीय वर्ष 2016-17 में 7 प्रतिशत की वृद्धि दर से बढ़ने की संभावना व्यक्त की गई है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि  प्रस्तावित उपायों, जिसमें की वस्तु और सेवा कर के लागू होने से विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा मिलेगा, से विकास में तेजी आने की उम्मीद है. इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया हैं कि  वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के लागू होने से भारत को एक साझा बाजार में बदलने में मदद मिलेगी. जिससे अक्षम कर प्रणाली से छुटकारा मिलेगा तथा यह विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण उपाय साबित होगा.

रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएं 
 
सड़क अवरोधों, टोल और अन्य अवरोधों को आधा करके माल ढुलाई में लगने वाले समय को बीस से तीस प्रतिशत तक कम किया जा सकता हैं एवं माल लागत को तीस से चालीस प्रतिशत से भी ज्यादा कम किया जा सकता है. 
इन उपायों से भारत के प्रमुख विनिर्माण क्षेत्रों की प्रतिस्पर्धात्मकता शुद्ध बिक्री की 3 से 4 प्रतिशत तक बढ़ेगी, जिससे भारत को उच्च विकास पथ पर लौटने में मदद मिलेगी और बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन सक्षम संभव हो पायेगा.
थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति के पिछले वित्तीय वर्ष 2013-14 में 6.0 प्रतिशत की तुलना में वित्तीय वर्ष 2014-15 में कम होकर 4.3 प्रतिशत तक रहने की उम्मीद.
आयात मांग में बढ़ोतरी एवं पूंजी प्रवाह में वृद्धि के कारण वित्तीय वर्ष 2013-14 के चालू खाता घाटा के 1.7 प्रतिशत के बढ़कर 2.0 प्रतिशत तक होने की संभावना. 
व्यय में संयम बरतने एवं राजस्व जुटाने से राजकोषीय समेकन के जारी रखने की उम्मीद.
भारत की अनुकूल जनसांख्यिकी, अपेक्षाकृत उच्च बचत, हाल ही में कौशल और शिक्षा में सुधार के प्रयास के लिए बनाई गई नीतियां और घरेलू बाजार एकीकरण, भारत की दीर्घ विकास की संभावनाओं को उच्च बनाता है. 
भारत की कई चुनौतियां जिनमें घरेलू स्तर पर ऊर्जा की आपूर्ति एवं अल्पावधि में कमजोर राजस्व संग्रह से राजकोषीय दबाव प्रमुख है, की चर्चा की गई है. 
•  जोखिम को विनिर्माण क्षेत्र में सुधारों पर ध्यान केंद्रित करके काफी हद तक कम किया जा सकता है.





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