केंद्रीय रक्षा मंत्रालय ने इजरायल से 8000 करोड़ रुपए की एंटी टैंक मिसाइलें खरीदने के सौदे को मंजूरी-(29-OCT-2014) C.A

| Wednesday, October 29, 2014
केंद्रीय रक्षा मंत्रालय ने इजरायल से 8000 करोड़ रुपए की एंटी टैंक मिसाइल खरीदने के सौदे को मंजूरी 25 अक्टूबर 2014 को प्रदान की. यह निर्णय रक्षा मंत्री अरुण जेटली की अध्यक्षता वाली रक्षा खरीद परिषद (डीएसी) की बैठक में लिया गया. इस सौदे के तहत भारत कम से कम 8000 स्पाइक मिसाइलें और 300 से अधिक लांचर खरीदेगी जिनका मूल्य 32 अरब रुपए तक हैं.
 
बारह डोर्नियर विमान भी नौसेना के लिए और 362 पैदल सेना हेतु लड़ाकू वाहन भी खरीदें जाने हैं. रक्षा खरीद परिषद ने घरेलू स्तर पर 50000 करोड़ रुपए मूल्य की लागत वाली एक परियोजना जिसमें विदेशी भागीदार के सहयोग से छह पनडुब्बियों का निर्माण करना सम्मिलित हैं पर सहमति प्रकट की.
इस सौदे में 740 करोड़ रुपए की लागत से सेना के उपकरणों को ढ़ोने वाली 1768 क्रिटिकल रोलिंग स्टोक भी सम्मिलित है. रक्षा खरीद परिषद ने अमेरिका की जैवलिन एंटी टैंक मिसाइल की जगह इजरायल की स्पाइक एंटी टैंक मिसाइल को प्राथमिकता दी.
 
जैवलिन एंटी टैंक मिसाइलों को अस्वीकार करने का कारण
मंत्रालय ने निम्नलिखित तीन कारणों के कारण अमेरिका के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं किया.
भारतीय समकक्ष भारत डायनेमिक को प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की सीमा को स्पष्ट नहीं किया गया था. 
इजरायल मिसाइलों की लागत अमेरिका मिसाइल की तुलना में काफी कम हैं.
आखिरी समय पर इजरायल सौदा रद्द करने से अंतरराष्ट्रीय समुदाय को गलत संकेत जाता.
 
जैवलिन एवं स्पाइक एंटी टैंक मिसाइलों की तुलना 
स्पाइक एक इजरायली निर्मित, हल्की, दागो और भूल जाओ टैंक रोधी और एन्टी पर्सनेल टैन्डम 
चार्जड हीट वारहेड वाली मिसाइल हैं. यह छूटने से पहले लक्ष्य को निर्धारित कर लेती हैं. यह इजरायल की राफेल एडवांस्ड डिफेंस सिस्टम्स द्वारा निर्मित है.
जैवलिन एंटी टैंक मिसाइल प्रणाली को लॉकहीड मार्टिन कॉर्प और रेथियॉन कंपनी द्वारा निर्मित किया गया हैं जिसको जैवलिन संयुक्त उद्यम में लॉकहीड मार्टिन ने ऑरलैंडो, फ्लोरिडा और रेथियॉन, टक्सन एरिज़ोना में अमेरिकी सेना और मरीन कोर के लिए विकसित और निर्मित किया गया था.

अन्य प्रस्ताव
रक्षा खरीद परिषद की बैठक में अन्य प्रस्ताव जिनको मंजूरी दे दी गई उनमें 50 हजार करोड़ रुपए की लागत से बनाए जाने वाले छह अत्याधुनिक पनडुब्बियां शामिल हैं. सरकार एक वर्ष की समय सीमा में इन सभी छह पनडुब्बियों के निर्माण को पूरा करना चाहती हैं.
 
ये पनडुब्बियां एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्सन (एआइपी) क्षमता से लैस होंगी, जिससे ये अधिक समय तक पानी के भीतर रह सकेंगी. इसके साथ ही इसमें बेहतर स्टेल्थ टेक्नोलाजी का प्रयोग किया जाएगा, ताकि दुश्मन की नजर से ये छुपी रह सकें.
पनडुब्बियों का आवंटन
रक्षा खरीद परिषद द्वारा शिपयार्ड के बारे में फैसला करने के लिए एक समिति बनाई जाएगी जो कि इन पनडुब्बियों के लिए प्रस्ताव (आरएफपी) के लिए अनुरोध जारी करेगी. यह समिति छह से आठ हफ्ते के भीतर देश के निजी व सरकारी बंदरगाहों में उपलब्ध सुविधाओं का अध्ययन कर रिपोर्ट देगी और उसके बाद चयनित बंदरगाह पर इनका निर्माण शुरू होगा. सभी छह पनडुब्बियों को एक ही शिपयार्ड पर बनाया जायेगा. हालांकि, प्रस्ताव के लिए अनुरोध (आरएफपी) सभी शर्ते पूरे करने वाले यार्ड के लिए खुला होगा. 

इसके अतिरिक्त, डोर्नियर विमान बेंगलूर स्थित रक्षा हेतु सार्वजनिक क्षेत्र की इकाई हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड द्वारा 1850 करोड़ रुपए की कुल लागत से निर्मित किया जाएगा. डोर्नियर को समुद्री निगरानी के लिए उपयोग किया जाता है और नौसेना के पास इन 40 विमानों का एक बेड़ा है.

भारत विश्व का सबसे बड़ा हथियार खरीदार देश है. यह अपने सोवियत युग के सैन्य हार्डवेयर के उन्नयन में 250 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश करेगा जिससे यह अपने सामरिक प्रतिद्वंद्वी चीन की बराबरी कर सकें.



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