भारत-चीन के बीच सीमा प्रबंधन पर दो दिवसीय वार्ता संपन्न-(19-OCT-2014) C.A

| Sunday, October 19, 2014
भारत और चीन के मध्य सीमा प्रबंधन पर हुई दो दिवसीय वार्ता नई दिल्ली में 17 अक्टूबर 2014 को यहां संपन्न हुई. इस दो दिवसीय वार्ता का उद्देश्य भारत और चीन के बीच परामर्श और समन्‍वय के लिए गठित तंत्र के तहत सीमा क्षेत्रों में शांति और धैर्य बनाये रखने के विभिन्‍न मुददों पर चर्चा करना था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व भारत में नई सरकार बनने के बाद दोनों पक्षों के बीच यह पहली बैठक है.
इस बैठक में भारतीय शिष्टमंडल का नेतृत्व पूर्वी एशिया मामलों के संयुक्त सचिव प्रदीप कुमार रावत ने किया. शिष्टमंडल में विदेश, रक्षा और गृह मंत्रालयों के अलावा सेना और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस के प्रतिनिधि भी शामिल थे. चीन के शिष्टमंडल की अगुवाई सीमा और महासागर मामलों के महानिदेशक उयांग यूचिंग ने की.

भारत-चीन सीमा मामलों से संबंधित परामर्श और समन्वय कार्यदल की बैठक में इन मुद्दों पर सहमति बनी. 

भारत-चीन के मध्य चर्चा के मुख्य बिंदु 
वार्ता के दौरान सितंबर 2014 में लद्दाख में दोनों देशों की सेनाओं के बीच गतिरोध जैसी घटनाओं को भविष्य में रोकने के उपायों पर चर्चा हुई.
दोनों के मध्य विश्वास बहाली के कदमों (सीबीएमएस) को जल्द कार्यान्वित करने पर सहमति बनी. 
दोनों देशों के सेना मुख्यालयों और फील्ड कमानों के बीच नियमित आधार पर बातचीत. 
सीमा पर तैनात कर्मियों की आपसी मुलाकात के लिए अतिरिक्त स्थानों का निर्धारण. 
दोनों देशों की अग्रिम चौकियों के बीच दूरसंचार सम्पर्क बढ़ाना.
सीमावर्ती क्षेत्रों में शांति और सौहार्द बढ़ाने के लिए अतिरिक्त उपाय करने और उन उपायों पर जल्दी अमल करने पर सहमति बन गई है. 
वार्ता के दौरा देम्चोक और चुमार में सितंबर 2014में तीन सप्ताह से अधिक समय तक चीन की घुसपैठ के मुद्दे को भारत की ओर से उठाया गया और इस पर चर्चा हुई.
भारत में नई सरकार आने के बाद दोनों देशों के बीच इस तरह की यह पहली बैठक है जो ऐसे समय हुई है जब चीन ने अरुणाचल प्रदेश में मैक मोहन रेखा के पास सड़क नेटवर्क बनाने की भारत की योजना पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है. 

विदित हो कि सितंबर 2014 में चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के भारत दौरे के समय भी चीनी सैनिकों की घुसपैठ का मुद्दा पूरी यात्रा पर हावी रहा था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस तरह की घटनाएं बार-बार होने को लेकर गंभीर चिंता जताई थी तथा सीमा संबंधी मुद्दे के शीघ्र समाधान की मांग की थी.
 
वर्ष 2012 में स्थापित तंत्र ने वर्ष 2013 में देप्सांग घाटी में उत्पन्न गतिरोध सहित दोनों पक्षों की ओर से विवादित सीमा क्षेत्र में आक्रामक गश्त से उत्पन्न मुद्दों के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.



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