भारतीय मूल के वैज्ञानिक संजय राजाराम ने विश्व खाद्य पुरस्कार प्राप्त किया-(19-OCT-2014) C.A

| Sunday, October 19, 2014
एक प्रख्यात भारतीय वैज्ञानिक डॉ संजय राजाराम को अपने वैज्ञानिक अनुसंधान के लिए जिससे विश्व के गेहूं उत्पादन में 200 से अधिक मिलियन टन की एक अस्वाभाविक वृद्धि जिसका निर्माण हरित क्रांति की सफलताओं पर हुआ के लिए 16 अक्टूबर 2014 को 2014 का विश्व खाद्य पुरस्कार प्रदान किया गया.
राजाराम को 1980 के दशक में गेहूं की वीरी लाइनों जिनको विभिन्न गेहूं उगाने वाले देशों में स्थानीय रूप से अनुकूलित उच्च उपज किस्मों प्रजनन के लिए इस्तेमाल किया गया, को विकसित करने का श्रेय जाता हैं.
PBW-343, जो की एक वर्कहॉर्स गेहूं की किस्म हैं भारत में लगभग 10 लाख हेक्टेयर में पैदा की जाती हैं यह अंतरराष्ट्रीय मक्का और गेहूं सुधार केंद्र (सीआइएमएमवाईटी) में पैदा किये गए वीरी सामग्री पर आधारित थे जो राजाराम के अंतर्गत कार्यरत था. यह वीरी लाइन्स एक रूसी शीत ऋतू के गेहूं कवकाज़ और एक मैक्सिकन वसंत गेहूं बहो के मध्य संकर से उत्त्पन्न किया गया था. इन नई लाइनों ने उच्च उपज गेहूं की एक दूसरी पीढ़ी बनाने में मदद की जो धारी और पत्ती रतुआ रोगजनकों के विरुद्ध बेहतर प्रतिरोध प्रदर्शित करते हैं.
संजय राजाराम
•    डॉ राजाराम मूल रूप से भारत के उत्तर प्रदेश में एक छोटे कृषक समुदाय से सम्बन्ध रखते हैं जहां उन्होंने किसानों एवं जो लोग कृषि पर निर्भर करते हैं, के लिए प्रत्यक्ष सुधार करने में अपना जीवन समर्पित कर दिया. 
•    उन्होंने अपना प्रारंभिक कैरियर अंतरराष्ट्रीय मक्का और गेहूं सुधार केंद्र (सीआइएमएमवाईटी) में व्यतीत किया जहां उन्होनें गेहूं प्रजनन कार्यक्रम के निदेशक के रूप में कार्य किया और प्रख्यात फसल वैज्ञानिक डॉ नॉर्मन ई बोरलॉग के साथ काम किया.
•    अपने शोध टीमों की मदद से, डॉ राजाराम ने लगभग 480 गेहूं की किस्मों का विकास किया, जिनको छह महाद्वीपों, 51 देशों में और लगभग 58 लाख हेक्टेयर से अधिक कृषि योग्य भूमि पर उपयोग किया जा रहा हैं. ये किस्में एक अरब से अधिक लोगों को उनकी औसत वार्षिक गेहूं की खपत जितना उत्पादन करते हैं.
•    डॉ. राजाराम ने पिछले चार दशकों के दौरान वार्षिक वैश्विक गेहूं उत्पादन में 1.3 प्रतिशत वृद्धि को प्राप्त करने में मदद की.
•    वर्तमान में, डॉ राजाराम शुष्क क्षेत्रों में कृषि अनुसंधान के लिए इंटरनेशनल सेंटर (आइसीएआरडीए) में  एक वरिष्ठ वैज्ञानिक सलाहकार के पद पर कार्यरत हैं. 
•    आइसीएआरडीए में डॉ. राजाराम अपने अनुभव से ऐसी रणनीति विकसित करने में मदद कर रहे हैं, जो कि मूलरूप से भारत के अर्द्ध शुष्क और शुष्क क्षेत्रों सहित शुष्क क्षेत्रों में गेहूं द्वारा सामना की जा रही चुनौतियों से निपटने में सहायक होगा.

विश्व खाद्य पुरस्कार के बारे में
विश्व खाद्य पुरस्कार सबसे महत्वपूर्ण अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार हैं जो किसी व्यक्ति जिसकी उपलब्धियों ने खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता, मात्रा, या उपलब्धता को बढाकर मानव विकास को उन्नत बनाया हैं के योगदान को मान्यता प्रदान करता हैं. विश्व खाद्य पुरस्कार को नोबेल शांति पुरस्कार विजेता डॉ नॉर्मन बोरलॉग द्वारा वर्ष 1987 में प्रारंभ किया गया था. यह व्यापारी और लोकोपकारक जॉन रुआन द्वारा प्रायोजित किया गया था, जो वर्ष 1990 में पुरस्कार प्रदान करने के लिए आगे आये. आज जॉन रुआन के बेटे, जॉन रुआन तृतीय विश्व खाद्य पुरस्कार के अध्यक्ष के रूप में अपने पिता की जगह ली हैं.
भारतीय प्रोफेसर एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक चयन समिति नामांकन और चयन प्रक्रिया पर नज़र रखती हैं. पहला विश्व खाद्य पुरस्कार से वर्ष 1987 में भारतीय वैज्ञानिक एम. एस. स्वामीनाथन को सम्मानित किया गया था. वर्ष 2013 के विश्व खाद्य पुरस्कार से तीन प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों बेल्जियम के मार्क वान मोंटेगू और संयुक्त राज्य अमेरिका के मैरी-डेल चिल्टन और के रॉबर्ट टी फ्राले सम्मानित प्रदान किया गया था.


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