संस्कृति मंत्रालय ने 100 वर्ष
पूरे होने के उपलक्ष्य में 29 सितंबर 2014 को एक वर्ष तक चलने वाले कोमागाटा मारू प्रकरण शताब्दी स्मरणोत्सव का
उद्घाटन किया. समारोह का आयोजन कोमागाटा मारू जहाज पर सवार 376 भारतीय आप्रवासियों के साहसिक संघर्ष को श्रद्धांजलि देने के लिए किया गया
था जिन्होंने बीसवीं सदी के आरंभिक वर्षों में कनाडा के भेदभावपूर्ण आव्रजन
कानूनों के खिलाफ आवाज उठाई थी. इस अवसर पर 100 रुपये और 5
रुपये के स्मारक सिक्के भी जारी किए गए.
केंद्रीय संस्कृति मंत्रि श्री श्रीपद नाइक ने इस अवसर पर
बाबा गुरदीत सिंह की तीन पोतियों–हरभजन कौर, सतवंत कौर और बलबीर कौर को सम्मानित किया. बाबा गुरदीत सिंह कोमागाटा मारू
प्रकरण के नायक थे.
पृष्ठभूमि
8 जुलाई 2014 को अपनी पहली बैठक में राष्ट्रीय कार्यान्वयन समिति ने 29 सितंबर 2014 को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में कोमागाटा मारू घटना के शताब्दी समारोह का आयोजन करने का फैसला किया था.
8 जुलाई 2014 को अपनी पहली बैठक में राष्ट्रीय कार्यान्वयन समिति ने 29 सितंबर 2014 को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में कोमागाटा मारू घटना के शताब्दी समारोह का आयोजन करने का फैसला किया था.
राष्ट्रीय कार्यान्वयन समिति
• केंद्र सरकार ने भारतीय आप्रवासियों के वीर संघर्ष के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए कार्यक्रम तैयार करने हेतु राष्ट्रीय कार्यान्वयन समिति का गठन 5 मई 2014 को किया था. ये कार्यक्रम 29 सितंबर 2014 से 29 सितंबर 2015 के बीच आयोजित किए जाएंगे.
• इन कार्यक्रमों में राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन, प्रकाशन, डिजिटल अभिलेखागार का विकास और फिल्म एवं वृत्तचित्र बनाना शामिल है.
• राष्ट्रीय कार्यान्वयन समिति ने पंजाब विश्वविद्लाय, पटियाला का कोमागाटा मारू– 1914 शीर्षक से नाटक तैयार करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी है.
• इसने 23 मई 2015 से 30 मई 2015 के बीच वैंकुवर में एक सप्ताह तक चलने वाले समारोह का आयोजन करने का भी फैसला किया है जिसमें सांस्कृतिक गतिविधियां, गोष्ठियां और प्रदर्शनियों के अलावा कोमागाटा मारू के यात्रियों के वंशजों को सम्मान के साथ कनाडाई समेत वैसे गैर भारतीयों को भी सम्मानित किया जाएगा जिन्होंने कोमागाटा मारू यात्रियों को मदद मुहैया कराई थी.
कोमागाटा मारू हादसा
कोमागाटा मारू हादसा एक जापानी स्टीमर कोमागाटा मारू से संबंधित है जो कि 1914 में हांग कांग, शंघाई, चीन से योकाहामा, जापान और फिर वैंकूवर, ब्रिटिश कोलंबिया, कनाडा तक की यात्रा पर था.
इसमें पंजाब, भारत के 376
यात्री सवार थे. इसमें से 24 को कनाडा में
उतरने की इजाजत दी गई लेकिन बाकी के 352 यात्रियों को कनाडा
में उतरने की अनुमति नहीं मिली और जहाज को भारत जाने को मजबूर किया गया. यात्रियों
में 340 सिख, 24 मुसलमान और 12 हिन्दू थे और वे सभी ब्रिटिश राज की प्रजा थे.
कोमागाटा मारू सितंबर 1914 में कलकत्ता
पहुंचा. ब्रिटिश शाही सरकार ने कोमागाटा मारू के यात्रियों को खतरनाक राजनीतिक
आंदोलनकारियों के रूप में देखा. 29 सितंबर 1914 को जहाज पर बाबा गुरदीत सिंह और अन्य नेताओं को गिरफ्तार करने के लिए
पुलिस भेजी गई. गिरफ्तारी का यात्रियों ने विरोध किया. इसकी वजह से पुलिस ने
गोलियां चलानी शुरु कर दी और इस गोलीबारी में 19 यात्रियों
की मौत हो गई. हालांकि, बाबा गुरदीत सिंह कई अन्य लोगों के
साथ भाग निकले. बाकी के यात्रियों को पंजाब वापस भेज दिया गया.
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