संसद ने लोक प्रतिनिधित्व
(संशोधन और विधिमान्यकरण) विधेयक-2013 को पारित कर दिया. लोकसभा ने
इस विधेयक को 6 सितंबर
2013
को
पारित किया था जबकि राज्यसभा ने इसे पहले ही अपनी मंजूरी प्रदान कर चुकी थी.
इस विधेयक के द्वारा जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 के खंड 62 में संशोधन किया गया है. संशोधित कानून के अनुसार हिरासत या कैद में होने के बावजूद कोई व्यक्ति मतदाता बना रहेगा क्योंकि उसके मतदान के अधिकार को सिर्फ अस्थायी रूप से स्थगित किया गया है.
लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन और विधिमान्यकरण) विधेयक, 2013'' में जेल में बंद होने के दौरान चुनाव लड़ने तथा अपील के लंबित होने के दौरान सांसदों एवं विधायकों की सदस्यता बरकरार रखने की अनुमति देने का प्रावधान है, लेकिन इस दौरान उन्हें मतदान और वेतन हासिल करने का अधिकार नहीं रहेगा. यह विधेयक 10 जुलाई 2013 से लागू होगा.
विदित हो कि पटना उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा था कि हिरासत या कैद में किसी व्यक्ति को मतदान करने का अधिकार नहीं है. मतदाता नहीं होने के नाते वह संसद या विधानसभाओं के चुनाव भी नहीं लड़ सकता. सर्वोच्च न्यायालय ने 10 जुलाई 2013 को अपने एक आदेश में पटना उच्च न्यायालय के फैसले की पुष्टि की थी.
इस विधेयक के द्वारा जन प्रतिनिधित्व कानून 1951 के खंड 62 में संशोधन किया गया है. संशोधित कानून के अनुसार हिरासत या कैद में होने के बावजूद कोई व्यक्ति मतदाता बना रहेगा क्योंकि उसके मतदान के अधिकार को सिर्फ अस्थायी रूप से स्थगित किया गया है.
लोक प्रतिनिधित्व (संशोधन और विधिमान्यकरण) विधेयक, 2013'' में जेल में बंद होने के दौरान चुनाव लड़ने तथा अपील के लंबित होने के दौरान सांसदों एवं विधायकों की सदस्यता बरकरार रखने की अनुमति देने का प्रावधान है, लेकिन इस दौरान उन्हें मतदान और वेतन हासिल करने का अधिकार नहीं रहेगा. यह विधेयक 10 जुलाई 2013 से लागू होगा.
विदित हो कि पटना उच्च न्यायालय ने अपने एक फैसले में कहा था कि हिरासत या कैद में किसी व्यक्ति को मतदान करने का अधिकार नहीं है. मतदाता नहीं होने के नाते वह संसद या विधानसभाओं के चुनाव भी नहीं लड़ सकता. सर्वोच्च न्यायालय ने 10 जुलाई 2013 को अपने एक आदेश में पटना उच्च न्यायालय के फैसले की पुष्टि की थी.
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