आरबीआई ने उपभोक्ता वस्तुओं की खरीद पर शून्य प्रतिशत ब्याज दर वाली योजनाओं पर प्रतिबंध लगाया-(26-SEP-2013) C.A

| Thursday, September 26, 2013
भारतीय रिजर्व बैंक ने उपभोक्ता वस्तुओं की खरीद हेतु शून्य प्रतिशत ब्याज दर वाली योजनाओं पर प्रतिबंध 25 सितम्बर 2013 को लगा दिया. मुंबई में जारी अधिसूचना के अनुसार, शून्य प्रतिशत ब्याज का सिद्धांत ही बेमानी है और इस तरह की योजनाएं केवल ग्राहकों को लुभाने और धोखा देने के लिए होती हैं.
अक्सर ग्राहकों को किसी उत्पाद की किस्तों में खरीदारी पर शून्य ब्याज दर या फिर निश्चित अवधि के बाद ही ऋण चुकाने की पेशकश उत्पाद विनिर्माताओं या फिर डीलर द्वारा की जाती है. लेकिन इसमें बैंकों से ऋण लेकर खरीदारी की जाती है. भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा है कि इन सभी मामलों में बैंकों को चाहिए कि वह ग्राहकों को पूरी तरह से सभी लाभों के बारे में अवगत करायें और उन्हें पूरी योजना का हर तरह का लाभ उपलब्ध करायें.
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा जारी अधिसूचना के मुख्य बिंदु
बैंकों को उत्पाद के ब्याज दर के ढांचे को बिगाड़ने वाली कोई प्रक्रिया नहीं अपनानी चाहिए और न प्रक्रिया संबंधी फीस को छिपाना चाहिए.
भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार डेबिट कार्ड से भुगतान करने पर कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लिया जा सकता.
आरबीआई के अनुसार शून्य ब्याज दर की अवधारणा अस्तित्व में नहीं है. उचित व्यवहार यही है कि स्रोत चाहे कोई भी हो विभिन्न उत्पादों और वर्गों में प्रोसेसिंग फीस और ब्याज दरों को समान रखा जाना चाहिए.
क्रेडिट कार्ड के जरिये शून्य ब्याज दर वाली मासिक समान किस्तों (ईएमआई) वाली योजना में आमतौर पर ब्याज राशि को प्रोसेसिंग फीस के तौर पर ग्राहक से वसूल लिया जाता है. भारतीय रिजर्व बैंक का मानना है, इसी प्रकार कुछ बैंक ऋण पर आने वाली लागत को ब्याज दर में शामिल कर लेते हैं.
ब्याज पर रियायत मामले में भारतीय रिजर्व बैंक ने कहा कि, ऐसी योजनाओं में लाभ पहुंचाने हेतु ब्याज कम करने के बजाय रियायती राशि को कम करने के बाद ऋण राशि को मंजूरी दी जानी चाहिए. 
यदि ऋण वापसी में कुछ समय हेतु स्थगत की अवधि रखी गई है तो ऐसे मामलों में इस छूट को ब्याज में समायोजित करने के बजाय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि ब्याज सहित ऋण वापसी का समय स्थगित अवधि के बाद ही तय होना चाहिए.