कर्नाटक
राज्य के शिमोगा जिले के यालावत्ती गांव से पांच तीर्थकरों वाली नक्काशी की हुई
पत्थर की एक दुर्लभ जैन मूर्ति प्राप्त हुई. इसमें एक ही मूर्ति पर पांच तीर्थकरों
को उकेरा गया है. कमला नेहरू मेमोरियल नेशनल कालेज के इतिहास के प्रो. बालकृष्ण
हेगड़े ने यहां बताया कि मूर्ति 12वीं- 13वीं शताब्दी के बीच की है. मूर्ति आकार, बनावट और
कलात्मक विशेषता के कारण अनोखी है. यह हल्के नीले पत्थर की बनी हुई है और इसकी
चौड़ाई 21 सेंटीमीटर, ऊंचाई 32 सेंटीमीटर और मोटाई 10 सेंटीमीटर है. यह मूर्ति
मजदूरों को एक झील की सफाई के दौरान सितंबर 2013 में प्राप्त
हुई.
साधारणतया चार तीर्थंकरों की मूर्तियां ही अभी तक पाई गई हैं और पांच तीर्थंकरों की मूर्तियों वाली यह कलाकृति पहली बार मिली है. यह काफी दुर्लभ है. फिलहाल इस कलाकृति की जांच की जाएगी. जैन परंपरानुसार इस अनोखी पचपरमेष्ठी और पंचाबलायतीसा मूर्ति की जांच की जायेगी.
प्रो. बालकृष्ण हेगड़े ने कहा कि इस कलाकृति में एक तरफ शेर की आकृति बनी है तो दूसरी तरफ शेर और याली (एक मिथकीय अस्तित्व) की आकृतियां बनी हुई हैं. इन्हें काफी खूबसूरती के साथ तराशा गया है. पर्यंकासन मुद्रा में बैठे तीर्थंकर योग करते नजर आते हैं.
ज्ञातव्य है कि राज्य के ज्यादातर जैन तीर्थयात्री निर्वाण के लिए श्रवणबेलगोला या फिर कोप्पल जाते हैं. उसी तरह ये जैन धर्म के अनुयायी शिमोगा के आसपास के कुछ गांवों जैसे निदिगे, यलवती, होसुदी और पुराले गांव आते हैं ताकि वह आत्मसंयम हासिल कर सकें. डॉक्टर हेगड़े के मुताबिक, निदिगे में एक ऐसे शिलालेख का उल्लेख मिलता है जिस पर यलवती का जिक्र है. यह दर्शाता है कि यह गांव शायद उस सदी के दौरान जैन धर्म के मानने वाले लोगों के लिए काफी अहम स्थान रहे होंगे.
डॉक्टर हेगड़े ने कहा कि इस कलाकृति का मिलना काफी महत्वपूर्ण है और इससे जैन पंथ के इतिहास और उससे जुड़ी कुछ और बातों के बारे में जानकारियां हासिल हो सकेंगी.
साधारणतया चार तीर्थंकरों की मूर्तियां ही अभी तक पाई गई हैं और पांच तीर्थंकरों की मूर्तियों वाली यह कलाकृति पहली बार मिली है. यह काफी दुर्लभ है. फिलहाल इस कलाकृति की जांच की जाएगी. जैन परंपरानुसार इस अनोखी पचपरमेष्ठी और पंचाबलायतीसा मूर्ति की जांच की जायेगी.
प्रो. बालकृष्ण हेगड़े ने कहा कि इस कलाकृति में एक तरफ शेर की आकृति बनी है तो दूसरी तरफ शेर और याली (एक मिथकीय अस्तित्व) की आकृतियां बनी हुई हैं. इन्हें काफी खूबसूरती के साथ तराशा गया है. पर्यंकासन मुद्रा में बैठे तीर्थंकर योग करते नजर आते हैं.
ज्ञातव्य है कि राज्य के ज्यादातर जैन तीर्थयात्री निर्वाण के लिए श्रवणबेलगोला या फिर कोप्पल जाते हैं. उसी तरह ये जैन धर्म के अनुयायी शिमोगा के आसपास के कुछ गांवों जैसे निदिगे, यलवती, होसुदी और पुराले गांव आते हैं ताकि वह आत्मसंयम हासिल कर सकें. डॉक्टर हेगड़े के मुताबिक, निदिगे में एक ऐसे शिलालेख का उल्लेख मिलता है जिस पर यलवती का जिक्र है. यह दर्शाता है कि यह गांव शायद उस सदी के दौरान जैन धर्म के मानने वाले लोगों के लिए काफी अहम स्थान रहे होंगे.
डॉक्टर हेगड़े ने कहा कि इस कलाकृति का मिलना काफी महत्वपूर्ण है और इससे जैन पंथ के इतिहास और उससे जुड़ी कुछ और बातों के बारे में जानकारियां हासिल हो सकेंगी.
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