बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय
ने प्रमुख इस्लामिक पार्टी जमात-ए-इस्लामी के नेता अब्दुल कादर मुल्ला को वर्ष 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान युद्घ
अपराधों के लिए मृत्युदंड 17 सितम्बर 2013 को दिया. अब्दुल कादर मुल्ला ने
अपने ऊपर लगे सभी आरोपों का खंडन किया.
ढाका स्थित सर्वोच्च न्यायालय के
मुख्य न्यायाधीश एम मुजम्मिल हुसैन की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने अब्दुल
कादर मुल्ला को मृत्युदंड की सजा दी. दूसरे अंतरराष्ट्रीय अपराध ट्रिब्युनल ने 5 फरवरी को मुल्ला को उम्र कैद की
सजा दी थी, लेकिन
सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान हत्या और मानवता के प्रति अन्य
अपराधों का दोषी ठहराते हुए उसे मृत्युदंड दिया.
क्या थे आरोप?
अब्दुल कादर मुल्ला पर मुक्ति
संग्राम के दौरान पाकिस्तानी सेना का साथ देने और ढाका के मीरपुर इलाक़े में लोगों
पर ज्यादतियां करने, बलात्कार
और जनसंहार के आरोप लगाए गए. 'राजकार मिलिशिया' के सदस्य के तौर पर उन पर 344 नागरिकों की हत्या का आरोप लगाया
गया. युद्ध अपराध न्यायाधिकरण ने 5 फरवरी 2013 में उन्हें युद्ध अपराध के छह में
से पांच आरोपों में दोषी पाया था.
अब्दुल कादर मुल्ला
• वह मुक्ति संग्राम के दौरान
चरमपंथी संगठन अल बदर से जुड़े थे.
• वर्ष 1966 में अब्दुल कादर मुल्ला जमात-ए-इस्लामी की छात्र शाखा से जुड़े थे. उन्हें इसका अध्यक्ष भी चयनित किया गया था.
• वर्ष 1966 में अब्दुल कादर मुल्ला जमात-ए-इस्लामी की छात्र शाखा से जुड़े थे. उन्हें इसका अध्यक्ष भी चयनित किया गया था.
अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण
वर्ष 2009 में शेख हसीना के नेतृत्व वाली
बांग्लादेश की सरकार ने वर्ष 1971 की लड़ाई के दौरान हुए युद्ध अपराधों के अभियुक्तों पर मुकदमा
चलाने हेतु युद्ध अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण का गठन किया था. वर्ष 1971 के मुक्ति संग्राम में 30 लाख से ज्यादा लोग मारे गए थे.
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