प्रोग्रामिंग
भाषाएं
कम्प्यूटर के दो भाग होते हैं-
हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर। इलेक्ट्रॉनिक सर्किटों और इलेक्ट्रोमैकेनिकल साधनों से
बनी पाँच कार्य यूनिटें कम्प्यूटर हार्डवेयर बनाती हैं। जबकि हार्डवेयर पर इस्तेमाल
होने वाले प्रोग्राम या रूटीन, जिनसे विभिन्न
कार्य किए जाते हों, सॉफ्टवेयर कहलाती हैं। प्रोग्राम
लिखने की कला प्रोग्रामिंग कहलाती है। प्रत्येक कम्प्यूटर में अपने हार्डवेयर के
अनुसार एक अद्वितीय निम्नस्तरीय भाषा या मशीन लैंग्वेज होती है।
मशीन लैंग्वेज
यह भाषा शून्य और एक अथवा बाइनरी कोड के रूप में होती है। मशीन लैंग्वेज की खास बात होती है कि निर्देश उस भाषा में कोडेड होते हैं जिसे मशीन समझने में समर्थ होती है।
यह भाषा शून्य और एक अथवा बाइनरी कोड के रूप में होती है। मशीन लैंग्वेज की खास बात होती है कि निर्देश उस भाषा में कोडेड होते हैं जिसे मशीन समझने में समर्थ होती है।
असेम्बली लैंग्वेज
असेम्बली भाषा मशीन भाषा में एयनोमिक्स का प्रयोग करती है जैसे कि ADD,SUB,MPY, DIV, इत्यादि। इसमें प्रोग्रामर को कठिन निम्नस्तरीय मशीन भाषा लिखने से बचाने के लिए सैकड़ों उच्चस्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाएँ विकसित हो गई हैं।
असेम्बली भाषा मशीन भाषा में एयनोमिक्स का प्रयोग करती है जैसे कि ADD,SUB,MPY, DIV, इत्यादि। इसमें प्रोग्रामर को कठिन निम्नस्तरीय मशीन भाषा लिखने से बचाने के लिए सैकड़ों उच्चस्तरीय प्रोग्रामिंग भाषाएँ विकसित हो गई हैं।
हाई लेवल लैंग्वेज
ये भाषाएँ अभीष्टï अनुप्रयोग क्षेत्र (उदाहरण, व्यापार या गणितीय) की सामान्य भाषाओं से मिलती-जुलती होती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि समस्या प्रधान अथवा कार्यप्रणाली से सम्बंधित भाषाओं को कम्प्यूटर सीधे नहीं समझ सकता है। ऐसे में कम्पाइलर नामक विशेष कम्प्यूटर प्रोग्राम की आवश्यकता पड़ती है जिससे कम्प्यूटर स्वयँ समस्याप्रद अथवा कार्यप्रणाली से सम्बंधित भाषा प्रोग्राम को मशीन लैंग्वेज प्रोग्राम में अनुवादित कर देता है जिसे कम्प्यूटर पर चलाया जा सकता है। इन भाषाओं का महत्व मुख्य रूप से बिजीनेस एकाउंटिंग और साइंस इंजीनियरिंग की दुनिया में है, क्योंकि इनके द्वारा गैर-प्रशिक्षित प्रोग्रामर भी कम्प्यूटर का प्रयोग कर सकता है। इनके उदाहरण हैं- COBOL , FORTRON , C , C++ , ALGOL , LISP इत्यादि।
ये भाषाएँ अभीष्टï अनुप्रयोग क्षेत्र (उदाहरण, व्यापार या गणितीय) की सामान्य भाषाओं से मिलती-जुलती होती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि समस्या प्रधान अथवा कार्यप्रणाली से सम्बंधित भाषाओं को कम्प्यूटर सीधे नहीं समझ सकता है। ऐसे में कम्पाइलर नामक विशेष कम्प्यूटर प्रोग्राम की आवश्यकता पड़ती है जिससे कम्प्यूटर स्वयँ समस्याप्रद अथवा कार्यप्रणाली से सम्बंधित भाषा प्रोग्राम को मशीन लैंग्वेज प्रोग्राम में अनुवादित कर देता है जिसे कम्प्यूटर पर चलाया जा सकता है। इन भाषाओं का महत्व मुख्य रूप से बिजीनेस एकाउंटिंग और साइंस इंजीनियरिंग की दुनिया में है, क्योंकि इनके द्वारा गैर-प्रशिक्षित प्रोग्रामर भी कम्प्यूटर का प्रयोग कर सकता है। इनके उदाहरण हैं- COBOL , FORTRON , C , C++ , ALGOL , LISP इत्यादि।
चतुर्थ पीढ़ी की भाषाएँ
चतुर्थ पीढ़ी की भाषाओं का विकास काफी तेजी से हो रहा है। कुछ भाषाएँ जैसे कि जावा, रेमीज़-2, फोकस, नोमाड एवँ ओरेकल आजकल काफी प्रसिद्ध हंै। इन भाषाओं में प्रोग्रामर को इस बात की सुविधा रहती है कि वे बिना प्रोग्रामिंग सीखे सीधे ही असेम्बर को लगाकर प्रोग्रामिंग कर सकते हैं। इसीलिए इन्हें स्वप्रोग्राम भाषाएँ भी कहा जाता है। इनका असेम्बर प्रोग्रामर को स्क्रीन की सहायता से यह बतलाता है कि आगे क्या करना है।
चतुर्थ पीढ़ी की भाषाओं का विकास काफी तेजी से हो रहा है। कुछ भाषाएँ जैसे कि जावा, रेमीज़-2, फोकस, नोमाड एवँ ओरेकल आजकल काफी प्रसिद्ध हंै। इन भाषाओं में प्रोग्रामर को इस बात की सुविधा रहती है कि वे बिना प्रोग्रामिंग सीखे सीधे ही असेम्बर को लगाकर प्रोग्रामिंग कर सकते हैं। इसीलिए इन्हें स्वप्रोग्राम भाषाएँ भी कहा जाता है। इनका असेम्बर प्रोग्रामर को स्क्रीन की सहायता से यह बतलाता है कि आगे क्या करना है।
आर्टीफिशियल इंटेलीजेंस भाषाएँ
कम्प्यूटर की पंचम पीढ़ी के विकास के साथ ही कुछ इस प्रकार की भाषाओं का विकास कार्य आरंभ हो गया था, जिन्हें कृत्रिम बुद्धि (Artificial Intelligence) भाषाएँ कहा जाता है। इस प्रकार की भाषाओं के प्रोग्राम की सहायता से स्वचालित विधि से रिपोर्ट एवँ निर्देश बनाए जा सकते हैं और स्वचालित यंत्रों को उसकी प्रक्रिया को संचालन के अपने-अपने निर्देश मिलते हैं।
कम्प्यूटर की पंचम पीढ़ी के विकास के साथ ही कुछ इस प्रकार की भाषाओं का विकास कार्य आरंभ हो गया था, जिन्हें कृत्रिम बुद्धि (Artificial Intelligence) भाषाएँ कहा जाता है। इस प्रकार की भाषाओं के प्रोग्राम की सहायता से स्वचालित विधि से रिपोर्ट एवँ निर्देश बनाए जा सकते हैं और स्वचालित यंत्रों को उसकी प्रक्रिया को संचालन के अपने-अपने निर्देश मिलते हैं।
ऑपरेटिंग सिस्टम
यह कम्प्यूटर को
संचालित करने के लिए रूटीनों और कार्यप्रणालियों का एक संगठित संग्रह होता है। यह
कम्प्यूटर और कम्प्यूटर हार्डवेयर के बीच मध्यस्थ का कार्य करता है। ऑपरेटिंग
सिस्टम का मूल उद्देश्य ऐसा वातावरण प्रदान करना होता है जिसमें प्रयोगकर्ता
प्रोग्राम पर कार्य कर सके। इससे कम्प्यूटर को संचालित करने में सुविधा होती है।
इसका एक अन्य लक्ष्य कम्प्यूटर हार्डवेयर का दक्षतापूर्वक तरीके से प्रयोग होता है, उदाहरण, DOS, UNIX, Lenix इत्यादि। ऑपरेटिंग
सिस्टम के प्रयोग हार्डवेयर, सॉफ्टवेयर और डाटा
कम्प्यूटर के अवयव हैं। ऑपरेटिंग सिस्टम कम्प्यूटर सिस्टम के परिचालन में इन
संसाधनों के सही प्रयोग के लिए साधन प्रदान करता है। ऑपरेटिंग सिस्टम अपने-आप में
कोई उपयोगी कार्य नहीं करता है। यह मात्र एक वातावरण प्रदान करता है जिसके अंतर्गत
अन्य प्रोग्राम उपयोगी कार्य कर सकते हैं।
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