पीलीभीत में टाइगर रिजर्व बनाने के प्रस्ताव को उत्तर प्रदेश सरकार की मंजूरी - (07-sep-2013) CURRENT affair

| Saturday, September 7, 2013
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह यादव ने पीलीभीत में टाइगर रिजर्व बनाने के प्रस्ताव को मंजूरी प्रदान की. इस मंजूरी के बाद अब राज्य सरकार राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) को इस आशय का प्रस्ताव भेजेगी. एनटीसीए के पीलीभीत में टाइगर रिजर्व बनाने की सिफारिश करने पर राज्य सरकार द्वारा इस सन्दर्भ में अधिसूचना जारी किया जाना है. 

पीलीभीत टाइगर रिजर्व बन जाने के बाद यह उत्तर प्रदेश का (दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के बाद) दूसरा टाइगर रिजर्व होगा. पीलीभीत टाइगर रिजर्व कुल 71,288 हेक्टेयर क्षेत्रफल पर प्रस्तावित है. इसमें से 60,280 हेक्टेयर कोर क्षेत्र और 11,008 हेक्टेयर बफर क्षेत्र है. प्रमुख सचिव वन वीएन गर्ग ने बताया कि पीलीभीत में टाइगर रिजर्व बनने पर तराई आर्क (पश्चिम में पीलीभीत से लेकर पूर्व में बलरामपुर तक तराई के जिले) में बाघों के संरक्षण व उनकी वंशवृद्धि को बढ़ावा मिलेगा. तराई का क्षेत्र बाघों के सबसे महत्वपूर्ण प्राकृतवासों में से एक है. इस क्षेत्र में बाघों के लिए पर्याप्त संख्या में शिकार उपलब्ध हैं.

मुख्यमंत्री की रजामंदी के बाद शासन ने पीलीभीत के डीएम को प्रस्तावित टाइगर रिजर्व के बफर क्षेत्र की ग्राम सभाओं के लोगों से बातचीत कर प्रस्ताव भेजने को कहा है. डीएम का भेजा प्रस्ताव प्रमुख वन संरक्षक (वन्यजीव) के द्वारा राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण को भेजा जाना है.

दुधवा राष्ट्रीय उद्यान 
दुधवा राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना 614 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र को संरक्षित करके वर्ष 1977 में की गयी थी. यह उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जनपद में स्थित यह संरक्षित क्षेत्र भारत और नेपाल की सीमाओं से लगे विशाल वन क्षेत्र में फैला है. शिवालिक पर्वत श्रेणी की तराई में स्थित यह उद्यान उत्तर प्रदेश का सबसे बड़ा एवं समृद्ध जैव विविधता वाला क्षेत्र है. यह राष्ट्रीय उद्यान बाघों एंव बारहसिंगा के लिए विश्व प्रसिद्ध है. बारहसिंगा, हिरन प्रजाति का वन्य पशु है. जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य पशु घोषित कर रखा है. यह दुर्लभ वन्य जीव होने के कारण इसे अनुसूची में रखा गया है.

दुधवा राष्ट्रीय उद्यान में हिरनों की पाँच प्रजातियाँ पायी जाती है। इनमें सबसे मुख्य बारहसिंगा है.इसके अलावा काकर पाढ़ा, चीतल, सांभर भी बहुतायत रुप में पाए जाते हैं.इस उद्यान में पाली जाने वली हिरन की पांच प्रजातियों में खासी वृद्धि हुयी है. विभाग के वर्ष 2005 के आंकड़ों के अनुसार इनकी संख्या बढ़कर 25 हज़ार तक पहुँच गयी है.




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