सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र मल लोढा (आरएम
लोढा) ने सर्वोच्च न्यायालय के 41वें प्रधान
न्यायाधीश के रूप में 27 अप्रैल 2014 को
शपथ लिया. न्यायमूर्ति लोढा को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने राष्ट्रपति भवन के
दरबार हॉल में पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई.
न्यायमूर्ति आरएम लोढा ने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी. सतशिवम का स्थान लिया. जिनका कार्यकाल 26 अप्रैल 2014 को समाप्त हो गया. न्यायमूर्ति लोढ़ा पांच महीने तक सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश रहेंगे. उनका कार्यकाल 27 सितंबर 2014 तक रहेगा.
न्यायमूर्ति आरएम लोढा से संबंधित मुख्य तथ्य
न्यायमूर्ति लोढ़ा ने अपनी विधि की डिग्री जोधपुर विश्वविद्यालय से प्राप्त की तथा उन्होंने राजस्थान उच्च न्यायालय में वकालत की. उन्होंने केंद्र व राजस्थान सरकार के वकील के रूप में भी अपनी सेवा दी.
न्यायमूर्ति लोढ़ा को 31 जनवरी 1994 को राजस्थान उच्च न्यायालय में स्थाई न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया. उन्हें 16 फरवरी सन 1994 को बम्बई उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया गया, जहां 13 साल तक वे रहे. 2 फरवरी 2007 को राजस्थान उच्च न्यायालय में उनका पुनः स्थानांतरण हुआ. 13 मई 2008 को न्यायमूर्ति लोढ़ा पटना उच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश नियुक्त हुए तथा 17 दिसंबर 2008 को वह पदोन्नत होकर सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे. वह जोधपुर स्थित राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय से भी इसके कार्यकारी सदस्य के रूप में जुड़े रहे.
न्यायमूर्ति लोढ़ा ने कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई की, जिनमें कोयला ब्लॉक आवंटन में अनियमितता से संबंधित मुकदमे भी शामिल हैं. इस मामले की सुनवाई के दौरान उन्होंने केंद्रीय जांच ब्यूरो ‘सीबीआई’ को मालिक की भाषा बोलने वाला पिंजड़े में बंद ‘तोता' कहा था.
विदित हो कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है.
न्यायमूर्ति आरएम लोढा ने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी. सतशिवम का स्थान लिया. जिनका कार्यकाल 26 अप्रैल 2014 को समाप्त हो गया. न्यायमूर्ति लोढ़ा पांच महीने तक सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश रहेंगे. उनका कार्यकाल 27 सितंबर 2014 तक रहेगा.
न्यायमूर्ति आरएम लोढा से संबंधित मुख्य तथ्य
न्यायमूर्ति लोढ़ा ने अपनी विधि की डिग्री जोधपुर विश्वविद्यालय से प्राप्त की तथा उन्होंने राजस्थान उच्च न्यायालय में वकालत की. उन्होंने केंद्र व राजस्थान सरकार के वकील के रूप में भी अपनी सेवा दी.
न्यायमूर्ति लोढ़ा को 31 जनवरी 1994 को राजस्थान उच्च न्यायालय में स्थाई न्यायाधीश के रूप में पदोन्नत किया गया. उन्हें 16 फरवरी सन 1994 को बम्बई उच्च न्यायालय में स्थानांतरित किया गया, जहां 13 साल तक वे रहे. 2 फरवरी 2007 को राजस्थान उच्च न्यायालय में उनका पुनः स्थानांतरण हुआ. 13 मई 2008 को न्यायमूर्ति लोढ़ा पटना उच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश नियुक्त हुए तथा 17 दिसंबर 2008 को वह पदोन्नत होकर सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे. वह जोधपुर स्थित राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय से भी इसके कार्यकारी सदस्य के रूप में जुड़े रहे.
न्यायमूर्ति लोढ़ा ने कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई की, जिनमें कोयला ब्लॉक आवंटन में अनियमितता से संबंधित मुकदमे भी शामिल हैं. इस मामले की सुनवाई के दौरान उन्होंने केंद्रीय जांच ब्यूरो ‘सीबीआई’ को मालिक की भाषा बोलने वाला पिंजड़े में बंद ‘तोता' कहा था.
विदित हो कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124 के तहत सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश एवं अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है.
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