केओआई-3278 : लाइक्रा तारामंडल में एक स्व-वीक्षण युग्मतारा प्रणाली पाई गई-(25-APR-2013) C.A

| Friday, April 25, 2014
खगोल-विज्ञानी छात्र एथन क्रूज ने लाइक्रा तारामंडल में एक स्व-वीक्षण युग्मतारा प्रणाली की खोज की. युग्मतारा प्रणाली वह स्थान होता है, जहाँ दो तारे इतने निकट होते हैं कि अपनी गुरुत्वाकर्षण-अंत:क्रियाओं के कारण वे द्रव्यमान के एक सामान्य केंद्र की कक्षा के चक्कर लगाते हैं.
केओआई-3278 एक ऊपर से नीचे की ओर अवनत ग्रह जैसा दिखता है और यह युग्मतारा-प्रणालियों के अध्ययन की नई पद्धतियों का मार्ग प्रशस्त कर सकता है. यह खोज वाशिंगटन विश्वविद्यालय में ग्रह-खोजी केपलर अंतरिक्ष दूरबीन का इस्तेमाल करके की गई. अध्ययन का ब्यौरा 'साइंस' नामक जर्नल के 18 अप्रैल 2014 के अंक में प्रकाशित किया गया.

केओआई-3278 के दो तारे लगभग 2600 प्रकाश-वर्ष की दूरी पर (एक प्रकाश-वर्ष 5.88 ट्रिलियन मील जितना होता है) जब हर 88.18 दिनों में एक-दूसरे की परिक्रमा करते हैं तो पृथ्वी से निकटतर होने के कारण मुड़ते हैं. दोनों तारे लगभग 43 मिलियन मील दूर हैं, जो बुध और सूर्य के बीच की अनुमानित दूरी है. वाइट ड्वार्फ (सफ़ेद बौना तारा), जो जीवन के अंतिम चरण में बुझता हुआ तारा माना जाता है, लगभग पृथ्वी के आकार का, किंतु  200000 गुना ज्यादा भारी है.

इस खोज ने 2013 की एक खोज में सुधार किया है, जो कैलिफोर्निया इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ने की थी और जिसने इसी तरह के स्व-वीक्षण प्रभाव का पता लगाया था पर उसमें प्रकाश की चमक नहीं थी क्योंकि अध्ययनाधीन दोनों तारे एक-दूसरे के बहुत निकट थे.

वाइट ड्वार्फ्स खगोलविज्ञान में आकाशगंगा में उम्र के संकेतक होते हैं. वाइट ड्वार्फ्स की समझ का विस्तार खगोलविदों को आकाशगंगा की उम्र के बारे में जानने की दिशा में एक कदम और आगे ले जाकर उनकी सहायता करता है.
 
शोध का निधिकरण नेशनल साइंस फाउंडेशन और नासा द्वारा दिए गए अनुदानों से हुआ था. 

गुरुत्वाकर्षण-वीक्षण क्या है?
गुरुत्वाकर्षण-वीक्षण खगोलविज्ञान का एक सामान्य उपकरण है, जो मंदाकिनी आकाशगंगा के भीतर दूरस्थ तारों के आसपास ग्रहों का पता लगाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. यह प्रक्रिया अल्बर्ट आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत की पुष्टि के लिए प्रयुक्त प्रथम पद्धतियों में शामिल है. मंदाकिनी आकाशगंगा के भीतर वीक्षण (लेंसिंग) को सूक्ष्मवीक्षण (माइक्रोलेंसिंग) कहा जाता है.


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