एचआरडब्ल्यू की रिपोर्ट– दे से वी आर डर्टीः डिनाइंग एन एजुकेशन टू इंडियाज मार्जिनलाइज्ड जारी की गई-(25-APR-2013) C.A

| Friday, April 25, 2014
स्वयंसेवी संगठन ह्यूमन राइट्स वॉच (एचआरडब्ल्यू) ने दे से वी आर डर्टीः डिनाइंग एन एजुकेशन टू इंडियाज मार्जिनलाइज्ड’ (They Say We’re Dirty: Denying an Education to India’s Marginalized) नामक रिपोर्ट 22 अप्रैल 2014 को जारी की. वर्ष 2010 से प्रभावी हुए शिक्षा के अधिकार (आरटीई) कानून, 2009 के समुचित कार्यान्वयन में आने वाली बाधाओं की जांच के लिए यह सर्वेक्षण कराया गया था. सर्वेक्षण आंध्रप्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और दिल्ली में कराया गया था.
रिपोर्ट में यह बताया गया है कि कैसे हाशिए पर रहने वाले समुदायों के बच्चे बहिष्कृत किए जाते हैं और उन्हें आरटीई कानून के तहत किए गए बच्चों के अनुकूल और न्यायसंगत वातावरण नहीं मिलता. 

रिपोर्ट की मुख्य बातें
कक्षा में भेदभाव प्रमुख कारक है और स्कूल ही ऐसी जगह है जहां दलितों, जनजातीय समूहों, मुस्लिमों और अन्य कमजोर वर्ग के बच्चों को शिक्षा मिलने में दिक्कत हो रही है. 
पिछड़े वर्ग के छात्रों को शिक्षा की मुख्यधारा में लाने के बाद उन्हें कक्षा में भेदभाव का शिकार होना पड़ता हैं, उन्हें अलग कर दिया जाता है और सार्वजनिक रूप से उनका अपमान किया जाता है. 
भेदभाव कई तरह से होता है जिसमें शिक्षकों का दलित छात्रों को अलग बैठने या मुस्लिम बच्चों और जनजातीय बच्चों पर अपमानजनक टिप्पणी करने और गांव के अधिकारियों का लड़कियों को कक्षा से बाहर रखने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देना शामिल है. 
शिक्षक और अन्य छात्र अक्सर ऐसी जाति, समुदाय, जनजाति या धर्म के बच्चों के लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग करते हैं. 
कुछ स्कूलों में तो दलित बच्चों को सिर्फ जाति और समुदाय के आधार पर नेतृत्व करने की आजादी नहीं मिलती जैसे उन्हें कक्षा का मॉनिटर नहीं बनाया जाता. कई बच्चों से तो शौचालय की सफाई का काम तक कराया जाता है. 
हाशिए पर खड़े समुदायों के बच्चों के लिए बने निकट के स्कूलों का बुनियादी ढांचा बहुत खराब होता है और वहां सबसे कम प्रशिक्षित शिक्षक होते हैं और कई स्कूलों में तो शिक्षकों की भारी कमी है. 

रिपोर्ट में बच्चों को 14 वर्ष की उम्र तक स्कूल में बनाए रखने पर अधिक जोर दिया गया है. इसके अलावा इसमें एक ऐसी प्रणाली बनाने की सिफारिश की गई है जिसकी मदद से बच्चे के स्कूल में दाखिले के बाद कक्षा आठवीं तक पहुंचने के क्रम पर निगरानी रखी जा सके. इसके साथ ही, स्कूल से जाने वाले, स्कूली शिक्षा बीच में ही छोड़ देने वाले और शिक्षा छोड़ने को मजबूर होने वाले छात्रों की पहचना के लिए एक प्रोटोक़ल बनाने की बात भी कही गई है.


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