एमनेस्टी इंटरनेशनल ने लंदन में 27 मार्च 2014 को मृत्यु दंड पर अपनी वार्षिक रिपोर्ट
जारी की. इसके मुताबिक, कम से कम 22 देश
जो आज भी मृत्यु दंड दे रहे हैं उन्हें मृत्यु दंड समाप्त किए जाने पर विचार करना
चाहिए. इसके अलावा मृत्यु दंड देने वाले देशों की
संख्या बीते 20 वर्षों में कम हुई है.
रिपोर्ट की मुख्य बातें
• साल 2013 में कम से कम 778 लोगों को मृत्यु दंड दिया गया जो
साल 2012 में 682 के आंकड़ों से 15
फीसदी अधिक है. इसमें चीन शामिल नहीं है.
• साल 2013 में ईरान (369) और इराक (169) में
सजा–ए– मौत देने के वैश्विक रुख में
तेजी से वृद्धि हुई थी.
• फांसी की सजा देने
वाले देशों की सूची में चीन, इराक, ईरान,
सउदी अरब और अमेरिका सबसे उपर हैं.
• साल 2013 में संयुक्त राज्य अमेरिका फांसी की सजा देने वाले अमेरिकी देशों में से
एक मात्र देश था. अमेरिका में फांसी की सजा गलती करने, विसंगतियों,
नस्लीय अपराधों और कई मामलों में तो अंतरराष्ट्रीय कानून या सुरक्षा
उपायों के विशिष्ट प्रावधानों के पालन में कमी पर दी जाती है.
• साल 2013 में अमेरिका के 9 राज्यों में 39 लोगों को सजा दी गई थी जो 2012 मुकाबले 34 फीसदी अधिक था और 2013 में फांसी की सजा की कतार में
3108 लोग खड़े थे.
• यूरोप और उत्तरी मध्य
एशिया फांसी मुक्त क्षेत्र बन चुका है जहां साल 2009 से अब
तक सजा–ए–मौत का एक भी मामला सामने
नहीं आया है.
भारत में मृत्यु दंड पर
एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट
साल 2013 में, 25 वर्षों में सबसे अधिक संख्या में दया याचिका नामंजूर की गई. राष्ट्रपति
प्रणब मुखर्जी ने इस अवधि में फांसी की सजा पाए 18 कैदियों
की दया याचिका खारिज कर दी.
भारत में एक मात्र फांसी को अंजाम फरवरी 2013
में दिया गया जो कि मोहम्मद अफजल गुरु की फांसी थी जो कि
अंतरराष्ट्रीय मानकों का उल्लंघन था. ऐसा इसलिए हुआ कि भारत सरकार ने उसकी पसंद के
कानूनी प्रतिनिधित्व की मांग को मंजूर नहीं किया था. इसके अलावा फांसी की तारीख और
समय के बारे में उसके परिवार को सूचना नहीं दी गई थी और मौत के बात उसका शव परिवार
को अंतिम संस्कार के लिए भी नहीं सौंपा गया था.
भारत में साल 2013 में 72
नए लोगों को फांसी की सजा दी जानी थी और साल के आखिर में कम से कम 400
लोगों को मृत्यु दंड दिया जाना था.
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