रक्तस्रावी बुखार की वजह इबोला वायरस का पता गिनी में चला(26-MAR-2014) C.A

| Wednesday, March 26, 2014
गिनी (अफ्रीका) में 23 मार्च 2014 को रक्तस्रावी बुखार की वजह इबोला वायरस का पता चला. अब तक 80 से ज्यादा लोगों में इस वायरस के संक्रमण का पता चला है. इनमें से सिएरा लियोन और लाइबेरिया के 59 लोगों की मौत हो चुकी है.
इससे पहले 2012 में इबोला का संक्रमण कांगो और यूगांडा में हुआ था. इस वायरस से संक्रमित एक मात्र मनुष्य का केस सबसे पहले पश्चिम अफ्रीका में 1994 में सामने आया था.
इबोला वायरस का प्रकोप गिनी जैसे देश के लिए विनाशकारी साबित हो सकता है क्योंकि गिनी में चिकित्सा की बुनियागी सुविधाओं का बहुत अभाव है. यूनिसेफ ने वायरस को फैलने से रोकने के लिए गुकेडू में डॉक्टरों की नियुक्ति की है.
इंसानों के बीच यह वायरस शारीरिक तरल पदार्थों के जरिए फैलता है. इबोला के सबटाइप का अब तक पता नहीं चल पाया है जिससे मृत्यु दर का बेहतर अंदाजा हो पाता. इबोला के लिए मृत्यु दर 25 से 90 फीसदी तक हो सकती है.
इबोला वायरस के बारे में
इबोला रक्तस्रावी बुखार (ईएचएफ) एक रक्तस्रावी बुखार है और मानवजाति में पाया जाने वाला सबसे जहरीले वायरल रोगों में से एक है.
इबोला वायरस की पांच अलग अलग प्रजातियां हैंबंडीबुग्यो, कोटे डी लीवोरि, रेस्टोन, सूडान और जायरे. बंडीबुग्यो, सूडान और जायरे इबोला रक्तस्रावी बुखार ने अफ्रीका में प्रकोप की तरह है और अब तक यह प्रभावित सभी मामलों में 25 से 90 फीसदी मरीजों की मौत का वजह बन चुका है जबकि कोटे डी लीवोरी और रेस्टोन ने ऐसा नहीं किया है.
यह वायरस संक्रमित व्यक्ति के रक्त, शरीर के तरल पदार्थों और उतकों से सीधे संपर्क में आने से फैलता है. इस वायरस का संचार बीमार या मृत संक्रमित वन्य पशुओं (चिंपैजी, गोरिल्ला, बंदर, वन मृग, चमगादड़) के संपर्क में आने से भी फैलता है. प्रमुख उपचार आमतौर पर सहायक चिकित्सा होती है.


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