प्रधानमंत्री जन-धन योजना वित्तीय छुआछूत मिटाने की एक पहल-(30-AUG-2014) C.A

| Saturday, August 30, 2014
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्तमान सरकार की पहली फ्लैगशिप योजना प्रधानमंत्री जन धन योजनाका दिल्ली के विज्ञान भवन में 28 अगस्त 2014 को आरंभ की. इस योजना का लक्ष्य निर्धनों को आर्थिक छुआछूतसे मुक्ति दिलाना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस योजना की घोषणा 15 अगस्त 2014 को स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर दिल्ली के लाल किले के प्राचीर से राष्ट्र के नाम अपने पहले संबोधन में की थी.
प्रधानमंत्री जन धन योजनाको एक साथ देश के 600 जिलों में लांच किया गया. इस योजना के प्रचालन के पहले ही दिन देशभर में डेढ़ करोड़ लोगों के खाते खोले गए. खाता धारकों को 5000 रूपए का ओवरड्राफ़्ट की सुविधा, एटीएम कार्ड और एक लाख रूपए का दुर्घटना बीमा मिलेगा. 26 जनवरी तक खाता खुलवाने पर 30000 का जीवन बीमा लाभ भी मिलेगा.
इस योजना का लक्ष्य आम आदमी को मिलने वाली आर्थिक- सामाजिक सुरक्षा, बैंकिंग और बीमा क्षेत्र में उछाल, सभी को सब्सिडी देने के बजाय टारगेटेड सब्सिडी देना, गरीबी हटाने के लिए देश को वित्तीय अश्पृश्यता से आजाद कराना है.
बैंक में एक खाता खुलने से हरेक परिवार को बैंकिंग एवं कर्ज की सुविधा उपलब्ध हो जाएगी जो उन्हें वित्तीय संकटों और साहूकारों के चंगुल से बचाएगी.
इस योजना के तहत देशभर में डेढ़ करोड़ से अधिक लोगों के खाते खोले गए जो अपने आप में एक कीर्तिमान होने के साथ-साथ सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी किसी योजना की आवश्यकता को भी उजागर करता है. यह संभवत: विश्व का सबसे बड़ा सरकारी और साथ ही बैंकिंग अभियान है. 
प्रधानमंत्री जन धन योजनाके पहले चरण के तहत 15 अगस्त 2015 तक 7.5 करोड़ खाते खोलने का लक्ष्य रखा गया था, परन्तु प्रधानमंत्री के अनुसार, इस लक्ष्य को 26 जनवरी 2015 तक पूरा किया जाएगा. यह एक उल्लेखनीय तथ्य है कि 'प्रधानमंत्री जन-धन योजना' की घोषणा के चंद दिनों के अंदर ही उसके अमल की जमीन तैयार कर ली गई.
नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली वर्तमान केंद्र सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना में शामिल होने के लिए जिस तरह बड़ी संख्या में लोग आगे आए उससे यह भी पता चल रहा है कि आम आदमी किस तरह बैंक खातों की कमी महसूस कर रहा था.
'प्रधानमंत्री जन-धन योजना' की शुरुआत के साथ ही जिस तरह कर्मचारी भविष्य निधि के तहत आने वाले सेवानिवृत्त कर्मचारियों की न्यूनतम मासिक पेंशन बढ़ाकर एक हजार रूपए करने की अधिसूचना जारी की गई उससे यही स्पष्ट होता है कि मोदी सरकार सामाजिक सुरक्षा के प्रति कहीं अधिक प्रतिबद्ध है. नि:संदेह महंगाई के इस दौर में एक हजार रूपए की मासिक पेंशन पर्याप्त नहीं, लेकिन इस पर संतोष व्यक्त किया जा सकता है कि कुछ तो सुधार हुआ.
देश में एक बड़ी आबादी के पास सामाजिक सुरक्षा का कोई आवरण नहीं. इसका अनुमान इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि लगभग 68 प्रतिशत आबादी के पास बैंक खाते ही नहीं है, जो कि प्रधानमंत्री का यह कथन कि देश में वित्तीय छुआछूत की स्थिति है पूरी तरह सत्य प्रतीत होता है.
निर्धन जनता को साहूकारों के चंगुल से बचाने के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है. सबसे पहले तो यह सुनिश्चित करना होगा कि जो भी निर्धन-वंचित हैं, 'प्रधानमंत्री जन-धन योजना' के दायरे में आएं और वे बिना किसी परेशानी के आवश्यक लाभ उठाने में सक्षम रहें. ऐसा करके ही इस योजना के जरिये गरीबी से लड़ने में मदद मिलेगी.
वैसे तो निर्धनता निवारण के लिए अन्य अनेक योजनाएं अस्तित्व में हैं, लेकिन इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि उनके द्वारा निर्धन तबके को आर्थिक रूप से स्वावलंबी बनाने में अपेक्षित मदद नहीं मिली.
उदाहरण के लिए मनरेगा के बारे में यह तो कहा जा सकता है कि उसने एक हद तक गरीब परिवारों को सहारा दिया है, परन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि वे आर्थिक रूप से स्वावलंबी भी बने.
'प्रधानमंत्री जन-धन योजना' में ऐसे प्रावधान हैं जो यह विश्वास दिलाते हैं कि इस योजना के द्वारा निर्धन तबका अपने पैरों पर खड़ा हो सकता है.


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