इबोला: इलाज की पड़ताल-(28-AUG-2014) C.A

| Thursday, August 28, 2014
इबोला गत कई महीनों से समाचार पत्रों में चर्चा का विषय बना हुआ है. अब बहुतायत लोग इसे एक जानलेवा बीमारी के रूप में जानने भी लगे हैं. देश भी इबोला संक्रमित क्षेत्र से आए नागरिकों की जांच-पड़ताल हवाई अड्डों पर ही करने की व्यवस्था कर रखी हैं. बड़ी- बड़ी फर्मास्यूटिकल कंपनियां इसकी दवा की खोज में युद्ध स्तर पर लग गई हैं. कुछ एक कंपनियों ने तो इसकी दवा की खोज का दावा भी करने लग गई हैं.
इबोला एक विषाणु जनित रोग है. यह इबोला वायरस से होता है. इबोला वायरस का पता सबसे पहले वर्ष 1976 में चला था जब इसने नजारा, सूडान और कांगों के यामबुकु में लोगों को संक्रमित किया था. यामबुकु इबोला नदी के पास स्थित एक गांव है. इबोला वायरस का नाम इसी नदी पर रखा गया है.
 
लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन एंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के प्रो. पीटर पायट ने कांगों में मरणासन्न कैथलिक नन के खून के नमूने से वर्ष 1976 में इबोला वायरस की खोज की थी.

इबोला वायरस बीमारी (ईवीडी) एक गंभीर मानव रोग है. इबोला वायरस को पहले इबोला रक्तस्रावी बुखार (इबोला हेमरैजिक फीवर) के नाम से जाना जाता था. इसका प्रकोप आम तौर पर ऊष्णकटिबंधीय वर्षा वन के पास स्थित मध्य और पश्चिमी अफ्रीका के गांवों में देखा गया. यह वायरस संक्रमित जानवरों खासकर पटीरोपोडाडी परिवार के चमगादड़ों के संपर्क में आने से फैलता है.   इस वायरस का प्राकृतिक होस्ट फ्रूट बैट्स को माना जा रहा है. 

यह वायरस हमारे शरीर में त्वचा व आंखों के माध्यम से प्रवेश करता है. यह बीमारी भोजन एवं पानी द्वारा भी हमारे शरीर में प्रवेश हो सकती है. ईबोला वायरस संक्रमित व्यक्ति के रक्त, वीर्य, लार, पसीना, मूत्र, मल तथा उल्टी से फैलता है, चोट व खुले घाव वायरस को शरीर में प्रवेश करने का अवसर प्रदान कर सकते हैं, इसलिए घावों की तुरंत पट्टी कर उन्हें हवा के संपर्क से बचाना चाहिए. अब यह वायरस अन्य जानवरों में भी फैल चुका है, अत: मांसाहरी भोजन को न खाने में ही समझदारी है.
इबोला वायरस 2 से 21 दिन में शरीर में पूरी तरह फैल जाता है. संक्रमण से कोशिकाओं से साइटोकाइन प्रोटीन बाहर आने लगता है कोशिकाएं नसों को छोड़ने लगती हैं और उससे खून आने लगता है. ये लक्षण बुखार, गले में खराश, सिर दर्द, उल्टी, मांसपेशियों में दर्द आदि हो सकते हैं.

इबोला से संक्रमित मरीजों को गहन देखभाल की जरूरत होती है. ऐसे मरीजों को बचाने के लिए अब तक कोई विशेष उपचार या दवाएं उपलब्ध नहीं हैं. 

तीन अफ्रीकी देशों- गिनी, लाइबेरिया और सिएरा लियोन की सरकारों ने अपने अपने देशों में आपातकाल घोषित कर दिया है. इन तीनों देशों की राजधानियां- मोनरोविया (लाइबेरिया), फ्रीटाउन (सिएरा लियोन) और कोनाक्री (गिनी) इस रोग से बड़े स्तर पर संक्रमित हो चुकी हैं.
 
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने 12 अगस्त 2014 को मरने वालों की संख्या में होती बढ़ोत्तरी के मद्देनजर ईबोला वायरस से लड़ने के लिए प्रयोगात्मक दवा जेडमैप (ZMapp) के इस्तेमाल को मंजूरी दी. डब्ल्यूएचओ ने यह फैसला अमेरिकी कंपनी मैप बायोफार्मास्युटिकल द्वारा लाइबेरिया में इबोला संक्रमित मरीजों के संपर्क में आकर इस वायरस का शिकार हुए दो डॉक्टरों केंट ब्रांटली औऱ नैंसी राइबो को जेडमैप (ZMapp) दवा दिए जाने के बाद किया है. दवा ने ईबोला प्रभावित लोगों की जान बचाने की दिशा में सकारात्मक प्रभाव दिखाए थे.

विदित हो कि इस वर्ष इबोला वायरस के मामले सबसे पहले मार्च 2014 में गिनी (कोनाक्री) में सामने आए. उसके बाद यह लाइबेरिया और सिएरा लियोन की सीमाओं में भी फैल गया.


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