सर्वोच्च न्यायालय ने 14 राज्यों और 1 केंद्र शासित प्रदेश पर जुर्माना लगाया-(24-AUG-2014) C.A

| Sunday, August 24, 2014
सर्वोच्च न्यायालय ने 14 राज्यों और 1 केंद्र शासित प्रदेश पर 20 अगस्त 2014 को विधि आयोग की 245वीं रिपोर्ट जो कि न्यायपालिका में बकाया और पिछला शेष पर थी, का जवाब नहीं देने पर जुर्माना लगाया. प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश पर 25,000 रुपयों का जुर्माना लगाया गया.
न्यायमूर्ती टी. एस. ठाकुर की अध्यक्षता वाली सर्वोच्च न्यायालय की खण्डपीठ ने राज्यों से कहा कि वे विधि आयोग की इस रिपोर्ट पर नवंबर 2014, जो कि सर्वोच्च न्यायालय में अगली सुनवाई की तिथि है, तक अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करें.
इसके अतिरिक्त, इस मामले में उदार रुख न अपनाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यों को विधि आयोग की सिफारिशों पर गौर करने और निपटान दर की पद्धति उन्हें मान्य है या नहीं, बताने को कहा है.
इससे पहले मई 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने इन राज्यों और इनके संबंधित उच्च न्यायालयों को विधि आयोग की रिपोर्ट में दिए गए सूत्र पर अपनी प्रतिक्रिया देने को कहा था.
विधि आयोग की 245वीं रिपोर्ट
जस्टिस (सेवानिवृत्त) ए पी शाह की अध्यक्षता वाले 20वें विधि आयोग ने एरिअर्स एंड बैकलॉगः क्रिएटिंग एडिशनल जूडिशल (डब्ल्यूओ) मैनपावर प्लानिंग, नाम की रिपोर्ट में मौजूदा बाकी बचे मामलों के निपटान औऱ बैकलॉग में नए मामलों को जोड़ने केबारे में निपटान दर पद्धति का सुझाव दिया था.
विधि आयोग की यह रिपोर्ट इम्तियाज अहमद बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और ओआरएस मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से प्रेरित है. इसमें विधि आयोग को एक जांच शुरु करने को कहा गया है और होने वाली देरी, लंबित मामलों के निपटान और इन मामलों पर होने वाले खर्चों में कटौती के लिए सिफारिशें सुझाने को कहा गया था.
245वीं रिपोर्ट की कुछ प्रमुख बातें
•    इसने अविभाजित आंध्र प्रदेश, बिहार, दिल्ली, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, झारखंड, कर्नाटक, केरल, पंजाब और हरियाणा, महाराष्ट्र, सिक्किम औऱ उत्तराखंड के साथ केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ के बाकी बचे मामलों पर सिफारिशें दी थीं.
•    रिपोर्ट ने बकाया और देरी की तर्कसंगत एवं वैज्ञानिक परिभाषा दी है और निरंतरता के आधार पर सिफारिशें की हैं.
•    रिपोर्ट में मल्टीप्रांग अप्रोच और तर्कसंगत न्याययिक जनशक्ति योजना बनाने पर फोकस केसाथ एक सूत्र सुझाया गया है.
•    आयोग ने अपनी रिपोर्ट में बैकलॉग वाले मामलों को निपटाने के लिए दो अलगअलग अप्रोच का सुझाव दिया हैक) प्रैक्टिस असेसमेंट अप्रोचः इसमें मामले के दाखिल करने, उनके निपटान और मामला कितने दिनों तक चला और उसकी लंबित अवधी का गहन अध्ययन शामिल है. इस अध्ययन का एक तुलनात्मक विश्लेषण नीति निर्माताओं को प्रत्येक न्यायालय द्वारा प्राणाली के तहत औसत मामलों या मध्य मामलों को निपटाने में लगने वाले समय को निर्धारित करने में मदद करेगा. ख) नॉर्मेटिव असेसमेंट अप्रोचः मामलों के निपटान के लिए निश्चित समय मानकों के होने के लिए आयोग ने एकसमान आंकड़ा संग्रह और डेटा प्रबंधन तरीकों के अपनाने का सुझाव दिया.


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