तेलंगाना की राज्य सरकार ने 8 अगस्त 2014
को तेलंगाना राज्य लोक सेवा आयोग (टीएसपीएससी) हेतु संविधान के लिए
सरकारी आदेश (स.आ. संख्या 43) जारी किया.
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 315
और धारा 83 (2) के अनुसार, आंध्र– प्रदेश पुनर्गठन अधिनियम, 2014 (केंद्रीय अधिनियम 6/ 2014) के तहत आंध्र प्रदेश से
अलग होने के बाद उत्तराधिकारी राज्य तेलंगाना में राज्य लोक सेवा आयोग के गठन की
अनुमति का उल्लेख है.
तेलंगाना राज्य लोक सेवा आयोग राज्य में इसके दायरे में
आने वाले विभिन्न श्रेणियों के पदों पर सीधी भर्ती के जरिए चयन करने और भारतीय
संविधान के अनुच्छेद 320 के तहत कार्यों को पूरा करने के लिए
बनाया जा रहा है.
भारतीय संविधान का
अनुच्छेद 315
अनुच्छेद 315:
केंद्र और राज्यों के लिए लोक सेवा आयोग
1. इस अनुच्छेद के
उपबंधों के अधीन रहते हुए, यहां एक केंद्र और प्रत्येक राज्य
के लिए एक लोक सेवा आयोग होना चाहिए.
2. दो या अधिक राज्य इस
राज्य समूहों के लिए एक ही लोक सेवा आयोग हेतु सहमत हो सकते हैं और अगर विधानमंडल
द्वारा इससे संबंधित संकल्प पारित हो जाता है या जहां दो विधानमंडल हैं, उनमें से प्रत्येक राज्यों के विधानमंडल द्वारा, तो
संसद इन राज्यों की जरूरतों को पूरा करने के लिए संयुक्त लोक सेवा आयोग (इस अध्याय
में संयुक्त आयोग में वर्णित) के गठन के लिए कानून बना सकती है.
3. पूर्वोक्त रूप में
ऐसा कोई कानून ऐसे आनुषांगिक और परिणामिक उपबंध कानून के उद्देश्यों को प्रभावी
करने के लिए आवश्यक या वांछनीय हो सकता है.
4. संघ के लोक सेवा आयोग
को यदि राज्य के राज्यपाल द्वारा ऐसा करने का अनुरोध किया जाता है , राष्ट्रपति के अनुमोदन के साथ, तो राज्य की सभी या
किसी भी जरूरत को पूरा करने के लिए सहमति बन सकती है.
5. संघ लोक सेवा आयोग के
इस संविधान के संदर्भ में, जबतक अन्यथा अपेक्षित न हो,
यही समझा जाएगा कि संघ की जरूरतों को आयोग पूरा कर रहा है या जैसा
कि मामला हो, राज्य उस आवश्यक विषय का सम्मान कर रहा है.
आंध्र– प्रदेश पुनः संगठन अधिनियम, 2014 की धारा 83(2)
• संविधान के अनुच्छेद 315
के तहत एक लोक सेवा आयोग का गठन तेलंगाना राज्य द्वारा किया जएगा और
जब तक ऐसा आयोग गठित नहीं हो जाता, संघ लोक सेवा आयोग
राष्ट्रपति के अनुमोदन से अनुच्छेद के संदर्भ खंड (4) के तहत
तेलंगाना राज्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए सहमत हो सकता है.
भारतीय संविधान का
अनुच्छेद 320
अनुच्छेद
320: लोक सेवा आयोगों के कार्य
1. संघ और राज्यों में
सेवाओं के लिए नियुक्ति हेतु परीक्षा का आयोजन करने की जिम्मेदारी संघ और राज्य
सेवा आयोगों की होगी.
2. अगर दो या अधिक राज्य
यदि किसी भी सेवा के लिए संयुक्त नियुक्ति योजनाओं की भर्ती प्रक्रिया या संचालन
के लिए अनुरोध करते हैं तो यह संघ लोक सेवा आयोग की जिम्मेदारी होगी कि वे उन
राज्यों की सहायता करें.
3. संघ लोक सेवा आयोग या
राज्य लोक सेवा आयोग, मामले के मुताबिक, से इन मुद्दों पर परामर्श किया जा सकता है–
क) लोक
सेवाओं और लोक पदों पर भर्ती के तरीकों से जुड़े सभी
मसलों पर.
ख) लोक
सेवाओं और पदों के लिए अपनाए जाने वाले सिद्धांतों और एक सेवा से दूसरी सेवा में
पदोन्नति या स्थांतरण और ऐसी नियुक्तियों, पदोन्नतियों या
स्थांतरण के लिए उम्मीदवारों की पात्रता पर.
ग) भारत
सरकार के लिए काम करने वाले व्यक्ति को प्रभावित करने वाली सभी अनुशासनात्मक मालों
या नागरिक हैसियत वाली राज्य सरकार जिसमें ऐसे मामलों से संबंधित मेमोरियल और
याचिकाएं भी शामिल हैं
घ) नागरिक
क्षमता के तहत भारत सरकार या राज्य सरकार या भारत के अधीन या भारतीय राज्य के अधीन
सेवा प्रदान करने वाले व्यक्ति द्वारा किसी भी प्रकार के दावे या संबंध में,
कर्तव्य निष्पादन पर उसके खिलाफ कार्यों के संबध में कानूनी
कार्यवाही की रक्षा करने में उसके द्वारा दिए गए किसी भी कीमत का भुगतान भारत की
संचित निधि, या, मामले के अनुसार,
राज्य की संचित निधि से किया जाना चाहिए.
ङ) भारत
सरकार या राज्य सरकार या भारत के अधीन या भारतीय राज्य के अधीन अपनी सेवाएं देते
हुए अगर कोई व्यक्ति घायल होने के बाद पेंशन का कोई दावा करता है, नागरिक क्षमता के तहत, और इस प्रकार के किसी प्रश्न
क लिए.
यह लोक सेवा आयोग का कर्तव्य है कि वह ऐसे किसी भी मामले
और कोई भी मामला जिसपर राष्ट्रपति, या,
जैसा कि मामला हो, राज्य के राज्यपाल ,
उन्हें विरार्थ भेजते हैं, में अपनी राय दें:
संघ से जुड़ी सभी भारतीय सेवाओं और अन्य सेवाओँ एवं पदों
के मामले में राष्ट्रपति द्वारा और राज्य से जुड़ी सभी सेवाओं और पदों के मामले
में राज्य के राज्य पाल द्वारा दिए गए, ऐसे नियम
निर्दिष्ट कर सकते हैं जिसमें पहले आमतौर पर या किसी परिस्थित में श्रेणी विशेष पर,
लोक सेवा आयोग से परामर्श करना जरूरी नहीं होगा.
4. खंड (3) में
अनुच्छेद 16 के खंड (4) को परामर्श के
लिए भेजे गए किसी प्रावधान में संघ लोक सेवा आयोग से परामर्श करने की आवश्यकता
नहीं होगी.
राष्ट्रपति और राज्य के राज्यपाल द्वारा खंड (3) के तहत बनाए गए सभी नियम संसद के प्रत्येक सदन में या राज्य के प्रत्येक विधानमंडल
में चौदह दिनों से पहले नहीं रखा जाएगा, उनके बनाए जाने के
बाद, और किसी सुधार के लिए, संसद के
दोनों सदनों या राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों में जिस सत्र में पेश किया गया है,
चाहे वह निरसन या संशोधन के जरिए हो, किया जा
सकता है.
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