48वें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित तेलुगू साहित्यकार डॉ. राउरी भारद्वाज का निधन-(20-OCT-2013) C.A

| Sunday, October 20, 2013
ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित तेलुगू साहित्यकार डॉ. राउरी भारद्वाज का हैदराबाद में 18 अक्टूबर 2013 को निधन हो गया. वह 86 वर्ष के थे. कुछ ही दिन पहले डॉ. राउरी भारद्वाज को फिल्म उद्योग की वास्तविकताओं पर आधारित उनके उपन्यास पाकुड़ू रालू के लिए दिल्ली में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.

डॉ रावुरी भारद्वाज से संबंधित मुख्य तथ्य
तेलुगू साहित्य में डॉ. राबूरी भारद्वाज तीसरे लेखक हैं जो देश के सर्वोच्च साहित्य पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त किया. 
पुरस्कार के क्रम में उन्हें 48वां ज्ञानपीठ पुरस्कार दिया गया.
डॉ रावुरी भारद्वाज के तेलुगू में 37 लघुकथा संग्रह, 17 उपन्यास, तीन निबंध संग्रह और 8 नाटक प्रकाशित हुए हैं.
उन्होंने बच्चों के लिए 6 लघु उपन्यास कादंबरी, पकुदुराल्लू, जीवन समारम, इनुपू तेरा वेनुका, कौमुदी और 5 लघुकथा संग्रह लिखें हैं.
उनके अधिकांश रचनाकर्म का प्रमुख भारतीय भाषाओं और अंग्रेजी में अनुवाद किया गया है.
भारद्वाज को साहित्य अकादमी पुरस्कार और सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार सहित कई पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है.
डॉ रावुरी भारद्वाज  दो बार साहित्य के लिए राज्य साहित्य अकादमी पुरस्कार और वर्ष 1983 में साहित्य अकादमी पुरस्कार (केंद्रीय) से सम्मानित किया गया. 
डॉ रावुरी भारद्वाज  को वर्ष 1968 में गोपीचंद साहित्य पुरस्कार प्रदान किया गया. 
डॉ रावुरी भारद्वाज  को वर्ष 1987 में साहित्य के लिए राजलक्ष्मी पुरस्कार और वर्ष 2009 में लोक नायक फाउंडेशन का साहित्य पुरस्कार प्रदान किया गया.   
भारद्वाज ने द्वितीय विश्व युद्ध में तकनीशियन, कारखाने और पिंट्रिंग प्रेस के अलावा साप्ताहिक पत्रिका जामीन रायतु एवं दीनबंधु के संपादकीय विभाग में कार्य किया.
भारद्वाज का जन्म वर्ष 1927 में तत्कालीन हैदराबाद स्टेट के मोगुलूरू गांव में हुआ था, जहां से वे आंध्रप्रदेश के गुंटूर जिले में ताडीकोंडा गांव चले गए. 
आठवीं तक औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने वाले डॉ रावुरी भारद्वाज को तीन विश्वविद्यालयों ने डॉक्टरेट की मानद उपाधि प्रदान की.
राउरी भारद्वाज ने तीन दशक से अधिक समय तक आकाशवाणी में काम किया. 
उनके साहित्य की करीब 180 किताबों को प्रकाशित किया गया.


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