पर्यावरण
एवं वन मंत्रालय ने 16 अक्टूबर 2013 को
पश्चिमी घाट के 60000 वर्ग किमी (37 प्रतिशत)
के क्षेत्र को पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत
पर्यावरणीय रूप संवेदनशील (ईएसए) घोषित किया. घोषित क्षेत्र के दायरे में भारत के
छह राज्यो के हिस्से आते हैं. इस निर्णय से इन इलाकों में खनन, उत्खनन, ताप-विद्युत संयंत्र तथा सभी तरह के प्रदूषण
फैलाने वाले उद्योगों पर प्रतिबंध लग गया. इनके अतिरिक्त सभी परियोजनाओं हेतु
ग्राम सभाओं की पूर्व अनुमति अनिवार्य होगी. साथ ही, इन
इलाकों में 2000 वर्ग मीटर से अधिक क्षेत्रफल वाला टाउनशिप
या भवन निर्माण नहीं किया जा सकता है.
हालांकि
सरकार ने जनसंख्या बहुल क्षेत्रों को अधिनियमित क्षेत्र के दायरे से बाहर रखा है.
पवनचक्कियों का विनिर्माण सिर्फ पर्यावरण नियमों के अधीन हो सकता है. पन-बिजली
परियोजनाओं को ईएसए में कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति की कड़ी शर्तों के
पालन की स्थिति में ही दिया जाना है, जिसके
अनुसार अनुमति नदियों में पारिस्थितिकी बहाव को बनाये रखने की शर्त पर ही दी जाती
है.
मंत्रालय
के द्वारा घाट से संबंधित निर्णय दो महत्वपूर्ण रिपोर्ट के आने के बाद लिया गया, जिसमे से एक पारिस्थितिकी विज्ञानी माधव गाडगिल तथा दूसरी योजना आयोग के
सदस्य के. कस्तूरीरंगन के द्वारा तैयार किया गया था. इस निर्णय के अधिसूचना के
पश्चात पश्चिमी घाट का चिन्हित क्षेत्र भारत के सबसे बड़े पर्यावरणीय रूप से
संरक्षित क्षेत्र बन जाएगा जो कि उत्तर में ताप्ती नदी से लेकर दक्षिण में
कन्याकुमारी तक के 1500 किमी तक में फैला है.
पर्यावरणीय रूप संवेदनशील क्षेत्र (ईएसए,
Ecologically Sensitive Area, ESA)
ईएसए
पश्चिमी घाट में एक जैव-जलवायु विषयक इकाई है जहां कि मानवीय कृत्यों के प्रभाव से
जैवीय समुदायों की बनावट तथा उनकी प्राकृतिक आवास में अपरिवर्तनीय बदलाव हुए हैं.
वह कृषि क्षेत्र जिसके लिए भूदृश्य, वन्य
जीवन तथा ऐतिहासिक मूल्यों के कारण विशिष्ट संरक्षण की आवश्यता होती है, उसे ईएसए का एक प्रकार माना जाता है. इसकी शुरूआत वर्ष 1987 में की गयी थी.
पश्चिमी घाट
पश्चिमी
घाट को पारिस्थितिक विशेष क्षेत्र 1988 में
घोषित किये गया था. विविध प्रकार की वनस्पतियां, एम्फीबियन,
पक्षी, रेगने वाले जीव, स्तनधारी
आदि इस क्षेत्र में पाये जाते हैं. इस विशाल क्षेत्र में 2 जैवमंडलीय
भंडार, 14 राष्ट्रीय पार्क तथा बहुत से वन्य जीव अभयारण्य
हैं. कई उप-क्षेत्रों को संरक्षित वन घोषित किया गया है. हाल के वर्षों में
एंथ्रोपोजेनिक दबाव के चलते पश्चिमी घाट की अखण्डता कम दिन-प्रतिदिन कम हुई है. इस
क्षेत्र की ज्यादातर जैव-प्रणालियां अब खतरे में हैं.
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