सिपाहीजला वन्यजीव अभ्यारण्य में गिद्ध का नियंत्रित वातावरण में प्रजनन शुरू कराने का निर्णय-(30-OCT-2013) C.A

| Wednesday, October 30, 2013
त्रिपुरा राज्य के वन विभाग ने सिपाहीजला वन्यजीव अभ्यारण्य में अपमार्जक पक्षी गिद्ध का नियंत्रित वातावरण में प्रजनन शुरू कराने का निर्णय किया. इसका कारण त्रिपुरा में गिद्धों की संख्या में आयी जर्बदस्त कमी ही.
  
वन्यजीव संरक्षक वाइल्डलाइफ वार्डन एके गुप्ता ने कहा, वन विभाग द्वारा किए गए सर्वेक्षण के अनुसार राज्य में केवल 55 गिद्ध बचे हैं, इसलिए इस पक्षी के संरक्षण के लिए इनका नियंत्रित वातावरण में प्रजनन कराने का निर्णय किया गया. 

एके गुप्ता द्वारा राज्य के 16 उपमंडलों के 107 इलाकों का सर्वेक्षण किया गया. सर्वेक्षण के अनुसार 55 गिद्धों में से 27 खोवई जिले में, 26 दक्षिण त्रिपुरा जिले और सिपाहीजला जिले के सिपाहीजला वन्यजीव अभ्यारण्य में केवल दो गिद्ध देखे गए थे.
 
वन्य पारिस्थितिकी तंत्र में गिद्ध बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. वे मृत पशुओं के अवशेषों का भक्षण कर पर्यावरण में संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं.
सिपाहीजला वन्यजीव अभ्यारण्य अगरतला से 20 किमी की दूरी पर है.

अपमार्जक पक्षी गिद्ध 
गिद्ध शिकारी पक्षियों के अंतर्गत आनेवाले मुर्दाखोर पक्षी हैं, जिन्हें गृद्ध कुल (Family Vulturidae) में एकत्र किया गया है. ये सब पक्षी दो भागों में बाँटे जा सकते हैं.

प्रथम भाग: पहले भाग में अमरीका के कॉण्डर (Condor), किंग वल्चर (King Vulture), कैलिफोर्नियन वल्चर (Californian Vulture), टर्की बज़र्ड (Turkey Buzzard) और अमरीकी ब्लैक वल्चर (American Black Vulture) होते हैं.

द्वितीय भाग :दूसरे भाग में अफ्रीका और एशिया के राजगृद्ध (King Vulture), काला गिद्ध (Black Vulture), चमर गिद्ध (White backed Vulture), बड़ा गिद्ध ( Griffon Vulture) और गोबर गिद्ध (Scavenger Vulture) मुख्य हैं.

ये कत्थई और काले रंग के भारी कद के पक्षी हैं, जिनकी दृष्टि बहुत तेज होती है. ये झुंडों में रहने वाले मुर्दाखेर पक्षी हैं जिनसे कोई भी गंदी और घिनौनी चीज खाने से नहीं बचती. ये पक्षियों के मेहतर हैं जो सफाई जैसा आवश्यक काम करके बीमारी नहीं फैलने देते. ये किसी ऊँचे पेड़ पर अपना घोंसला बनाते हैं, जिसमें मादा एक या दो सफेद अंडे देती है. भारत में गिद्ध की निम्नलिखित प्रजातियां पायी जाती हैं.  भारतीय गिद्ध (Gyps indicus), लंबी चोंच का गिद्ध (Gyps tenuirostris),लाल सिर वाला गिद्ध (Sarcogyps calvus), बंगाल का गिद्ध (Gyps bengalensis), सफ़ेद गिद्ध (Neophron percnopterus ginginianus)

गिद्धों का पतन 
यह जाति आज से कुछ साल पहले अपने पूरे क्षेत्र में प्रचुर मात्रा में पायी जाती थी. 1990 के दशक में इस जाति का 99% पतन हो गया है. इसका मूलतः कारण पशु दवाई डाइक्लोफिनॅक (diclofenac) है जो कि पशुओं के जोड़ों के दर्द को मिटाने में मदद करती है. जब यह दवाई खाया हुआ पशु मर जाता है, और उसको मरने से थोड़ा पहले यह दवाई दी गई होती है और उसको भारतीय गिद्ध खाता है तो उसके गुर्दे बंद हो जाते हैं और वह मर जाता है.




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