सरकार के नीतियों की आलोचना देशद्रोह नहीं: सर्वोच्च न्यायालय-(11-SEP-2016) C.A

| Sunday, September 11, 2016
सर्वोच्च न्यायालय ने सितम्बर 2016 के पहले सप्ताह में कहा कि सरकार की आलोचना पर किसी के खिलाफ देशद्रोह या मानहानि का मुकदमा दर्ज नहीं किया जा सकता. इस संबंध में संविधान पीठ पहले ही फैसला दे चुकी है.

अगर कोई व्यक्ति सरकार की कड़ी आलोचना करता है तो उसपर देशद्रोह का मुकदमा तो दूर आपराधिक मानहानि का मामला भी नहीं बनता. पीठ ने सभी अथॉरिटी को केदार नाथ सिंह बनाम बिहार मामले में 1962 में संविधान पीठ द्वारा दी गई व्यवस्था का पालन करने के लिए कहा है.
शीर्ष अदालत ने पुलिस और ट्रायल जज सहित तमाम अथॉरिटी को संविधान पीठ की उस व्यवस्था को अपनाने का निर्देश दिया है, जिसमें कहा गया है कि हिंसा भड़कने की आशंका या हिंसा के मामले में ही भारतीय दंड संहिता की धारा-124 ए (राजद्रोह का मुकदमा) लगाई जा सकती है.
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति यूयू ललित की पीठ ने कहा कि राजद्रोह के आरोप को लेकर एफआईआर दर्ज करने के लिए दिशानिर्देश जारी करना आपराधिक न्यायशास्त्र के दायरे में नहीं आना चाहिए.
राजद्रोह कानून का दुरुपयोग से संबंधित मुख्य तथ्य:
•    सरकार केवल डर पैदा करने और असहमति को दबाने के लिए मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, छात्रनेताओं, लेखकों, अभिनेताओं, कवियों, कार्टूनिस्टों वगैरह को अपना निशाना बनाती है. जिसमे बहुत से लोगों पर राजद्रोह की मुकदमा दर्ज हुआ है.
•    लेखिका अरुंधति राय, सामाजिक कार्यकर्ता बिनायक सेन, कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी, छात्रनेता कन्हैया कुमार, तमिलनाडु के लोकगायक एस कोवन, उत्तर प्रदेश में पढ़ रहे 67 कश्मीरी छात्रों के खिलाफ राजद्रोह का मुकदमा दर्ज हुआ.
•    सर्वोच्च न्यायालय ने गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज और एसपी उदयकुमार की ओर से दाखिल उस जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसमें राजद्रोह कानून का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग का आरोप लगाया गया हे. याचिका में गुहार की गई है कि सरकारों को 1962 में केदारनाथ बनाम बिहार मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश को सख्ती से पालन करने का निर्देश देना चाहिए.
•    अदालत ने साफ किया एफआईआर दर्ज करना एक प्रक्रिया है, हम निर्देश जारी कर उसमें बदलाव नहीं कर सकते.
•    याचिका में नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा गया है कि वर्ष 2014 में राजद्रोह के 47 मुकदमे दर्ज किए गए थे. इन मामलों में 58 लोगों को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन केवल एक ही मामले में सरकार आरोपी पर दोष साबित करने में सफल रही. वर्ष 2016 के आठ माह में देशद्रोह के 18 केस में 19 लोगों को अभियुक्त बनाया गया है.
•    अदालत ने साफ किया कि हर मामले पर आदेश एकसमान नहीं हो सकता. अदालत ने इस तरह का निर्देश देने से इनकार किया कि राजद्रोह का मुकदमा दर्ज करने से पहले पुलिस महानिदेशक का अप्रूवल अनिवार्य कर दिया जाना चाहिए.
संविधान में देशद्रोह की परिभाषा से संबंधित तथ्य:
•    भारतीय कानून संहिता (आईपीसी) की धारा 124(ए) में देशद्रोह की दी हुई परिभाषा के मुताबिक, अगर कोई भी व्यक्ति सरकार-विरोधी सामग्री लिखता या बोलता है या फिर ऐसी सामग्री का समर्थन करता है, या राष्ट्रीय चिन्हों का अपमान करने के साथ संविधान को नीचा दिखाने की कोशिश करता है, या लोगों को उकसाता है, नफरत फैलाने का काम करता है तो आईपीसी की धारा 124 (ए) के तहत उस पर केस बनता है. इस कानून के तहत दोषी पाए जाने वाले को अधिकतम उम्रकैद की सजा का प्रावधान है.
अंग्रेजों ने हुकूमत के खिलाफ लड़ने वाले भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को जेल में डालने के लिए यह देशद्रोह का कानून बनाया था.देशद्रोह पर कोई भी कानून 1859 तक नहीं था. देशद्रोह का कानून 1860 में बनाया गया और फिर 1870 में इसे आईपीसी में शामिल कर दिया गया. ब्रिटेन ने ये कानून अपने संविधान से हटा दिया है, लेकिन भारत के संविधान में ये विवादित कानून आज भी मौजूद है.

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