वन अनुसंधान संस्थान (एफआरआइ) ने 14 सितम्बर 2016 को एक शोध में पहली बार इस बात का पता चला है की ग्लोबल वार्मिंग से वनस्पति पर भी बुरा असर पड़ रहा है.
इस निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए वैज्ञानिकों ने विभिन्न प्रजातियों की वनस्पतियों को कृत्रिम जलवायु में उगाया. पता चला कि अधिक तापमान और आर्द्रता वाले पौधों की वृद्धि मंद पड़ गई है.
सिर्फ कार्बन डाइऑक्साइड के अधिक स्तर में ही पौधों की वृद्धि सबसे अच्छी पाई गई. यह बात वन अनुसंधान संस्थान के अध्ययन से बताया गया है.
पेड़-पौधों के बिना मानव सभ्यता की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. संस्थान की जलवायु परिवर्तन व वन प्रभाव डिविजन ने विभिन्न प्रजाति के यूकेलिप्टस, पॉपलर व मीलिया को कृत्रिम जलवायु में उगाने के लिए जून 2014 में छह ओपन टॉप चेंबर तैयार किए.
वैज्ञानिक डॉ. हुकुम सिंह के मुताबिक एक चैंबर में कमरे की तरह सामान्य तापमान रहने दिया. जबकि शेष पांच चेंबर में किसी में कार्बन डाईऑक्साइड की अधिक मात्रा, किसी में अधिक तापमान के साथ कार्बन डाईऑक्साइड की बढ़ी मात्रा और शेष में विभिन्न जलवायु संबंधी स्थितियों का समिश्रण किया गया.
अधिक कार्बन डाईऑक्साइड वाले ओपन टॉप चेंबर के अलावा किसी भी अन्य जलवायु वाली स्थिति में वनस्पतियों की वृद्धि सामान्य नहीं पाई गई. जिस ओपन टॉप चेंबर में कार्बन के सामान्य स्तर 400 पीपीएम की जगह 800 पीपीएम किया गया, उसी के पौधे सबसे तेजी से बढ़े.
इसका मतलब यह है की यदि पेड़-पौधों की संख्या अधिक रहेगी तो वह औद्योगिकीकरण के चलते कार्बन के बढ़े स्तर को सोखेंगा और उनकी वृद्धि भी बेहतर रहेगी.
क्योकि कार्बन डाईऑक्साइड हम सांस के माध्यम से छोड़ते हैं या उद्योग सेक्टर से जो कार्बन उत्सर्जित होता है, पेड़-पौधे भोजन बनाने की प्रक्रिया में उसका उपयोग करते हैं. मगर यह स्तर इतना भी न बढ़े कि पेड़-पौधों के इस्तेमाल के बाद भी कार्बन डाईऑक्साइड पर्यावरण में पहुंचकर ग्लोबल वार्मिंग के विकराल रूप पैदा कर दे.
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