विश्व रेबीज़ दिवस मनाया गया-(28-SEP-2016) C.A

| Wednesday, September 28, 2016
World Rabies Day 28 सितंबर: विश्व रेबीज़ दिवस

विश्वभर में 28 सितंबर 2016 को विश्व रेबीज़ दिवस मनाया गया. इस वर्ष का विषय था – रेबीज़: जागरुकता, वैक्सीन, उन्मूलन. यह दिवस रेबीज़ से बचाव एवं इसके प्रति लोगों को जागरुक करने के उद्देश्य से मनाया जाता है. 

इस वर्ष के विषय का उद्देश्य लोगों को दो विशेष पहलुओं पर जागरुक करना है ताकि वे आवश्यकता पड़ने पर बचाव कर सकें. इस दिवस द्वारा वर्ष 2030 तक विश्व से रेबीज़ से होने वाली मानव मृत्यु पर नियंत्रण स्थापित करना भी तय किया गया है.

इसके अतिरिक्त, 28 सितंबर लुई पाश्चर के निधन की पुण्यतिथि के रूप में भी मनाया जाता है. पाश्चर एक फ्रेंच केमिस्ट एवं माइक्रोबायोलॉजिस्ट थे जिन्होंने रेबीज़ की पहली वैक्सीन बनाई.

आज पहले की तुलना  में सुरक्षित एवं प्रभावशाली वैक्सीन उपलब्ध है लेकिन कुत्तों के काटने एवं रेबीज़ की अवस्था से निपटने के लिए जागरुकता आवश्यक है. 

रेबीज़
यह एक ज़ूनॉटिक रोग (जानवरों से मनुष्यों में फैलने वाला) है जो रेबीज़ वायरस के कारण फैलता है. घरेलू नस्ल के कुत्तों को इस रोग का सबसे बड़ा कारक माना जाता है. रेबीज़ में 95 प्रतिशत मृत्यु उनके काटे जाने के कारण होती है.

रेबीज़ वायरस कुत्तों की लार में पाया जाता है तथा यह आमतौर पर कुत्ते के काटे जाने (खरोंच लगने से भी) पर शरीर में प्रवेश करता है. बिना बाहरी त्वचा को नुकसान पहुंचाए यह वायरस शरीर में प्रवेश नहीं कर सकता.

एक बार इस वायरस के दिमाग में प्रवेश करने पर यह प्रतिक्रिया करके रोगी में अन्य लक्षण भी पैदा करता है. रेबीज़ के दो क्लिनिकल स्वरूप हैं - उग्र (मस्तिष्क ज्वर) एवं लकवाग्रस्त. उग्र रेबीज़ 80 प्रतिशत केसों में पाया जाता है.

केवल अंटार्कटिक को छोड़कर रेबीज़ विश्व के सभी देशों में पाया जाता है. विश्व में कुल रेबीज़ के 95 प्रतिशत मामले एशिया एवं अफ्रीका में पाए जाते हैं.

इसे पूर्णतया वैक्सीन से नियंत्रित किया जा सकता है. जिन देशों ने इस पर नियंत्रण हेतु कार्यक्रम आरंभ किये उन्होंने इसमें सफलता भी प्राप्त की. रेबीज़ उन्मूलन में कुत्तों का टीकाकरण आवश्यक है ताकि इस वायरस को पनपने से रोका जा सके.

रोग का प्रसार
यह विश्व के 150 देशों में फैला है जिसमें मृत्यु दर एशिया में सबसे अधिक है. एशिया में भारत में सबसे अधिक लोग रेबीज़ के कारण जान गंवाते हैं. हालांकि अफ्रीका में भी लाखों लोग प्रतिवर्ष लोग रेबीज़ से ग्रसित होते हैं लेकिन सटीक आंकड़ों के आभाव के कारण संख्या का पता नहीं चल पाता है.

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