भारतीय रिजर्व बैंक और बैंक ऑफ जापान 50 अरब डॉलर के मुद्रा विनिमय समझौते को तीन गुना करने पर सहमत-(21-DEC-2013) C.A

| Saturday, December 21, 2013
भारतीय रिजर्व बैंक और बैंक ऑफ जापान ने 18 दिसंबर 2013 को द्विपक्षीय मुद्रा विनिमय को 15 अरब डॉलर से बढाकर 50 अरब डॉलर करने हेतु एक समझौते पर हस्ताक्षर किये. इस समझौते का उद्देश्य भारत के वित्तपोषण के लिए किसी भी अपर्याप्त आसार के चलते चालू खाता घाटे (सीएडी) की आशंका को कम करना है. समझौते से दोनों देशों के वित्तीय बाजारों में स्थिरता लाने में मदद मिलेगी.
मुद्रा विनिमय व्यवस्था का तात्पर्य है कि बैंक ऑफ जापान रुपए को स्वीकार करेगा और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को डॉलर देगा, इसी प्रकार भारत का केंद्रीय बैंक येन लेगा और जापान के बैंक को डॉलर भेज देगा. जब भी विदेशी मुद्रा भंडार में कमी होगी तो इसे प्रभाव में लाया जा सकता है. इसके अलावा, इससे अल्पकालिक और बढ़ावा निर्यात में डॉलर की मांग को कम करने में मदद मिलेगी और विदेशी मुद्रा बाजार में अस्थिरता के खिलाफ प्रभावी बचाव हो सकता है.
मुद्रा विनिमय (करेंसी स्वैपिंग, Currency Swapping)
मुद्रा विनिमय दो संस्थानों (देशों) के बीच किसी ऋण के विनिमय किये जाने वाले पहलुओं (मूलधन तथा ब्याज के भुगतानों) का एक देश की मुद्रा के दूसरे देश की मुद्रा के बराबर ऋण के मूल्य को समतुल्य करने हेतु एक विदेशी मुद्रा समझौता है. मुद्रा विनिमय प्रतियोगात्मक लाभ से प्रेरित होते हैं. मुद्रा विनिमय किसी देश के केंद्रीय बैंक के द्वारा किये जाने वाले नकदी विनिमय से भिन्न होता है.
उदाहरण के लिए, मान लेते हैं कि एक अमेरिका स्थित कंपनी को स्विस मुद्रा फ़्रैंक हासिल करने की आवश्यकता है और एक स्विस कंपनी को अमरीकी डॉलर के अधिग्रहण की जरूरत है. इन दोनों कंपनियों के एक ब्याज दर, एक राशि और आदान-प्रदान के लिए एक आम परिपक्वता की तिथि पर सहमति होने पर मुद्रा विनिमय की व्यवस्था कर सकते हैं. मुद्रा विनिमय परिपक्वता अवधि कम से कम 10 वर्ष के लिए होती है. मुद्रा विनिमय विदेशी मुद्रा में व्यापार हेतु एक लोचदार विधि के रूप में उभर रही है.
मुद्रा विनिमय व्यवस्था में पहली बार 2008 में हस्ताक्षर किए गए थे और तब तक यह 3 अरब डॉलर तक ही सीमित था. 2011 में, इस समझौते को नए सिरे से किया गया था और तब इसका विस्तार कर इसमें 15 अरब डॉलर की वृद्धि हुई थी.

मुद्रा विनिमय के उपयोग
•    सस्ता ऋण प्राप्त करना और बैक-टू-बैक (लगातार) ऋण का उपयोग करते हुए वांछित मुद्रा में कर्ज का विनिमय करना.
•    मुद्रा विनिमय दरों में उतार-चढ़ाव के बावजूद सुरक्षित रहना (जोखिम कम करना)
मुद्रा विनिमय की शुरूआत 1970 में ब्रिटेन में विदेशी मुद्रा नियंत्रणों से निपटने के लिए की गयी थी. साथ ही, 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान संयुक्त राज्य संघीय संचय प्रणाली द्वारा केंद्रीय बैंक तरलता विनिमय की स्थापना करने के लिये मुद्रा विनिमय लेनदेन की संरचना का प्रयोग किया गया था.
भारत ने भूटान के साथ भी मुद्रा विनिमय का समझौता किया है. केंद्रीय वित्त मंत्रालय के वित्तीय सेवा विभाग ने भी मुद्रा विनिमय के माध्यम से व्यापार किये जाने को लेकर एक प्रस्ताव तैयार किया था जिसमे दक्षिण अफ्रीका के साथ मुद्रा विनिमय के समझौते के लिए सिफारिश की गयी थी.


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