अंतरराष्ट्रीय पंचाट न्यायालय द्वारा भारत को जम्मू-कश्मीर में किशनगंगा बांध के निर्माण की अनुमति-(23-DEC-2013) C.A

| Monday, December 23, 2013
अंतरराष्ट्रीय पंचाट न्यायालय ने पाकिस्तान की आपत्तियों को खारिज करते हुए जम्मू कश्मीर में किशनगंगा नदी से पानी का प्रवाह मोड़कर विद्युत उत्पादन करने के नई दिल्ली के अधिकार को बरकरार रखा. अंतरराष्ट्रीय पंचाट न्यायालय ने भारत पाकिस्तान मध्यस्थता मामले में अंतिम फैसला सुनाते हुए यह भी फैसला दिया कि भारत को किशनगंगा जल विद्युत परियोजना के नीचे से हर वक्तकिशनगंगा-नीलम नदी में कम से कम 9 क्यूमेक्स (घन मीटर प्रति सेकेंड) पानी जारी करना होगा. हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय पंचाट न्यायालय ने यह निर्णय 20 दिसंबर 2013 को दिया.

अंतरराष्ट्रीय पंचाट न्यायालय ने अपने अंतिम फैसले में कहा कि किशनगंगा नदी से जल प्रवाह की दिशा प्रथम बार मोड़ने के सात साल बाद भारत और पाकिस्तान दोनों स्थायी सिंधु आयोग और सिंधु जल समझौते की रूपरेखा के मुताबिक निर्णय पर पुनर्विचारकर सकते हैं.

अंतरराष्ट्रीय पंचाट न्यायालय के 18 फरवरी 2013 में जारी आदेश पर भारत द्वारा स्पष्टीकरण के अनुरोध के बाद न्यायालय ने अपना अंतिम फैसला सुनाया. अंतरराष्ट्रीय पंचाट न्यायालय द्वारा 18 फरवरी को दिए गए आंशिक फैसले में न्यूनतम प्रवाह का मुद्दा अनसुलझा रह गया था.

अदालत ने कहा कि किशनगंगा जल विद्युत परियोजना (केएचईपी) की भारत ने पाकिस्तान के एनजेएचईपी परियोजना से पहले कार्ययोजना बनाई थी और परिणामस्वरूप केएचईपी को प्राथमिकतामिलती है.  

अंतिम फैसला दोनों देशों के लिए बाध्यकारी है और इस पर अपील नहीं किया जा सकता.

अदालत ने अपने अंतिम फैसले में भारत को परियोजना के लिए पानी मोड़ने का अधिकार प्रदान किया और साथ ही निर्बाध पानी के प्रवाह के पाकिस्तान की मांग को भी स्वीकार की.

अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय का अंतरिम निर्णय 
अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय (The Court of Arbitration) ने निर्देश दिया कि उत्तरी कश्मीर में स्थित किशनगंगा पनबिजली परियोजना (Kishenganga Hydro-electric project, KHEP) के लिए किशनगंगा का जलमार्ग बदलने का भारत को अधिकार है. इसमें भारत ने सिन्धु जल समझौते के सभी प्रावधानों का पालन किया है. आंशिक फैसले में अदालत ने सर्वसम्मति से निर्णय किया था कि जम्मू कश्मीर में 330 मेगावाट की परियोजना में सिंधु जल समझौते की परिभाषा के तहत नदी का प्रवाह बाधित नहीं होना चाहिए. अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायालय ने पाकिस्तान की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें पाकिस्तान ने भारत पर किशनगंगा नदी के बहाव को मोड़ने और दोनों देशों के बीच हुई सिंधु जल संधि 1960 के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए इस परियोजना पर स्थगन की मांग की थी.

पाकिस्तान का आरोप 
पाकिस्तान ने भारत पर किशनगंगा नदी के बहाव को मोड़ने और दोनों देशों के बीच हुई सिंधु जल संधि 1960 के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए दावा किया है कि भारत की किशनगंगा जल विद्युत परियोजना के कारण किशनगंगा नदी जल में इसका करीब 15 फीसद हिस्सा गायब हो जाएगा.

पाकिस्तान ने भारत पर आरोप लगाया कि वह पाकिस्तान के 949 मेगावाट की नीलम-झेलम जल विद्युत परियोजना (एनजेएचईपी) को नुकसान पहुंचाने के लिए नदी जल को मोड़ने का प्रयास कर रहा है.

पाकिस्तान ने सिंधु जल संधि 1960 के प्रावधानों के तहत 17 मई 2010 को भारत के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय अदालत अपील किया था.

सिंधु जल समझौता अंतरराष्ट्रीय समझौता है जिस पर भारत और पाकिस्तान ने 1960 में दस्तखत किए थे जिसके तहत दोनों देशों के बीच सिंधु नदी के जल के इस्तेमाल को लेकर दिशा-निर्देश हैं.

सिंधु जल संधि 1960 के मुख्य बिंदु
सिंधु नदी प्रणाली में तीन पूर्वी नदियां (रावी, ब्यास और सतलुज और उनकी सहायक नदियां) और तीन पश्चिमी नदियां (सिंधु, झेलम और चिनाब और उनकी सहायक नदियां) शामिल हैं.
सिंधु जल संधि पर हस्ताक्षर भारत और पाकिस्तान के मध्य वर्ष 1960 में किया गया था. जो 1 अप्रैल 1960 को लागू किया गया.
समझौते के तहत भारत पश्चिमी नदियों के पानी का उपयोग निम्नलिखित कार्यों के लिए कर सकता है. शेष पानी को पाकिस्तान के लिए छोड़ देगा.
a) घरेलू उपयोग हेतु
b) विशेषीकृत कृषि कार्य हेतु
c) पनबिजली परियोजना हेतु

किशनगंगा पनबिजली परियोजना 
किशनगंगा पनबिजली परियोजना (Kishanganga hydro-electric power project, केएचईपी) भारत के नेशनल पावर कारपोरेशन द्वारा किशनगंगा नदी पर बनाई जा रही है जो कि (किशनगंगा नदी) झेलम की एक सहायक नदी है. पाकिस्तान में प्रवेश करने के बाद किशनगंगा नदी नीलम के नाम से जानी जाती है. इस परियोजना का कार्य वर्ष 1992 में प्रारम्भ किया गया था. किशनगंगा पनबिजली परियोजना की लागत 3 हजार 6 सौ करोड़ रुपए है.

330 मेगावाट की किशनगंगा पनबिजली परियोजना उत्तरी कश्मीर के बांदीपुरा के निकट गुरेज घाटी में स्थित है. केएचईपी की रूपरेखा ऐसे तैयार की गई है जिसके तहत किशनगंगा नदी में बांध से जल का प्रवाह मोड़कर झेलम की सहायक नदी बोनार नाला में लाया जाना है.

अंतरराष्ट्रीय पंचाट न्यायालय 
सात सदस्यीय मध्यस्थता अदालत की अध्यक्षता अमेरिका के न्यायाधीश स्टीफन एम. स्वेबेल ने की. स्टीफन एम. स्वेबेल अंतराराष्ट्रीय न्यायालय के पूर्व अध्यक्ष थे. अन्य सदस्यों में फ्रैंकलिन बर्मन और होवार्ड एस. वीटर (ब्रिटेन), लुसियस कैफलिश (स्विट्जरलैंड), जान पॉलसन (स्वीडन) और न्यायाधीश ब्रूनो सिम्मा (जर्मनी) पीटर टोमका (स्लोवाकिया) है.

मध्यस्थता अदालत ने जून, 2011 में किशनगंगा परियोजना स्थल और आसपास के इलाकों का दौरा किया था.


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