नेपाल सरकार ने 900 मेगावाट की अपर कर्नाली हाइड्रो पावर प्लांट निर्माण प्रस्ताव को मंजूरी दी-(23-SEP-2014) C.A

| Tuesday, September 23, 2014

नेपाल सरकार ने उत्तर पश्चिम नेपाल में 900 मेगावाट की जीएमआर कंपनी की अपर कर्नाली हाइड्रो पावर प्लांट निर्माण प्रस्ताव को 18 सितंबर 2014 को मंजूरी प्रदान की. इस प्रस्ताव को नेपाल के मंत्रिमंडल ने भारत को बिजली निर्यात के उद्देश्य से विदेशी निवेश योजनाके तहत मंजूरी प्रदान की.
मंत्रीमंडल द्वारा इस प्रस्ताव को पारित किए जाने के बाद, सीमा पर भारत को बिजली की आपूर्ति के लिए ट्रांसमिशन लाइनों के निर्माण हेतु निवेश बोर्डभारतीय कंपनी 'जीएमआर' के साथ योजना विकास अनुबंध (प्रोजेक्ट डेवलपमेंट एग्रीमेंट- पीडीए) पर हस्ताक्षर करेगा.
 
जीएमआर को इस परियोजना को वर्ष 2021 तक पूरा करने की उम्मीद है. कंपनी नेपाल को गंभीर बिजली संकट से जूझने में मदद के लिए 12 फीसदी बिजली मुफ्त में देगा, बाकी की बिजली भारत को निर्यात की जाएगी. समझौते के मुताबिक, जीएमआर नेपाल को परियोजना की 27 फीसदी हिस्सेदारी देगा. इसके साथ ही साथ जीएमआर एक अलग पावर हाउस का भी निर्माण करेगा जिससे दो मेगावाट बिजली पैदा की जाएगी और उसकी आपूर्ति परियोजना स्थल के तीन जिलों अच्छम, सुरखेत और दाईलेख के गांववालों को की जाएगी.
 
अनुमोदन का महत्व

नेपाल के मंत्रीमंडल द्वारा जीएमआर कंपनी को नेपाल में पनबिजली परियोजना के निर्माण को मंजूरी देने के कदम ने अन्य भारतीय कंपनियों को नेपाल में बिजली के क्षेत्र में निवेश करने के रास्ते खोल दिए हैं. उदाहरण के लिए, सतलुज विद्युत निगम लिमिटेड समेत कई अन्य कंपनियां कुल 42000 मेगावाट की क्षमता वाले एचईपी संयंत्रों के निर्माण की योजना बना रही हैं. इसके अलावा, इस अनुमोदन ने भारतीय कंपनियों को प्रत्यक्ष रूप से चीन की कंपनियों के साथ प्रतिस्पर्धा में ला दिया है, जो कि नेपाल के बिजली क्षेत्र में निवेश के जरिए नेपाल को प्रभावित करने में लगी हैं. उदाहरण के लिए, थ्री गोर्गेस डैम इंटरनेशन भी इंवेस्टमेंट बोर्ड नेपाल के साथ 1.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश एक बांध बनाने के लिए बातचीत कर रही है. नेपाल के पश्चिम सेती नदी पर इस बांध से 750 मेगावाट बिजली बनाई जाएगी.
 
पृष्ठभूमि

इससे पहले वर्ष 2008 में, नेपाल सरकार ने जीएमआर को 900 मेगावाट की अपर करनाली पनबिजली बिजली संयंत्र निर्माण करने की अनुमति दी थी. हालांकि, नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता की वजह से परियोजना को हरी झंडी मिलने में देरी हुई. उसके बाद एक बार फिर, भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अगस्त 2014 में नेपाल दौरे के दौरान इस परियोजना पर हस्ताक्षर करने की उम्मीद जगी, लेकिन कुछ राजनीतिक दलों द्वारा इसी नदी पर बनने वाले बांध से सिंचाई कैनालों में पानी की आपूर्ति के साथ नेपाल के अन्य हितों को सुनिश्चित किए जाने की मांग की वजह से इसमें देरी हुई.


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