मद्रास उच्च न्यायलय ने
सूचना का अधिकार (आरटीआइ) के तहत मांगी जाने वाली जानकारी हेतु आवेदनकर्ताओं को उस
जानकारी का कारण बताना अनिवार्य बताया. मद्रास उच्च न्यायलय के न्यायमूर्ति एनपी
वसंत कुमार और के रवि चंद्रबाबू की खंडपीठ ने एक मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के
खिलाफ शिकायत पर की गई कार्रवाई की जानकारी मांगने वाली आरटीआइ याचिका पर यह फैसला
20 सितंबर 2014 को दिया.
न्यायालय के अनुसार, इस प्रक्रिया से संबंधित पंजीयन
कार्यालय को फाइल पर क्या लिखा गया है, यह बताने में आसानी
होगी.
पीठ ने कहा कि, ‘यदि सूचनाएं किसी ऐसे व्यक्ति को दी जाती है, जिसके पास कोई कारण नहीं है और ऐसी जानकारी मांगने का कोई स्पष्ट मकसद नहीं है तो हमारा मानना है कि इस कानून का अंतिम लक्ष्य पूरा नहीं होता. ऐसी जानकारी मांगने के पीछे उसके मकसद को जाने बगैर जानकारी देना किसी बेपरवाह व्यक्ति को पैम्फलेट देने जैसा होगा.’
मद्रास उच्च न्यायलय इस फैसले को आरटीआइ कानून से संबंधित धारा 6(2) खिलाफ माना जा रहा है, धारा 6(2) तहत विशेष रूप से यह कहा गया है कि, आरटीआइ के तहत जानकारी मांगने के लिए कोई कारण बताने की जरूरत नहीं होगी.
विदित हो कि मद्रास उच्च न्यायलय के आदेश से संबंधित यह मामला बी भारती नामक एक व्यक्ति द्वारा दायर कई आरटीआइ याचिकाओं पर आया, जिनमें चेन्नई जिले के इग्मोर के मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट के खिलाफ शिकायत पर क्या कार्रवाई की गई, इसकी जानकारी मांगी गई थी. इसके साथ ही साथ संबंधित आरटीआइ द्वारा मद्रास उच्च न्यायलय के महापंजीयक की नियुक्ति के नियमों का विस्तृत ब्योरा भी मांगा गया था.
सूचना का अधिकार (आरटीआइ) अधिनियम से संबंधित मुख्य तथ्य
सूचना का अधिकार अधिनियम (Right to Information
Act) भारत के संसद द्वारा 15 जून 2005 को पारित एक केंद्रीय कानून है. इस अधिनियम के तहत भारत के सभी नागरिकों
को सरकारी दस्तावेज और प्रपत्रों में दर्ज सूचनाओं को देखने और उसे प्राप्त करने
का अधिकार प्रदान किया गया है. यह अधिनियम 12 अक्तूबर 2005
को पूरे देश में लागू हुआ. जम्मू एवं कश्मीर में यह ‘जम्मू एवं कश्मीर सूचना का अधिकार अधिनियम-2012’ के
अन्तर्गत लागू है.
सूचना का अधिकार (आरटीआइ) अधिनियम की संवैधानिक पृष्ठभूमि
सूचना का अधिकार (आरटीआइ) अधिनियम की संवैधानिक पृष्ठभूमि
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1) के
तहत सूचना का अधिकार, मौलिक अधिकारों का एक भाग है. अनुच्छेद
19(1) के अनुसार, भारत के प्रत्येक
नागरिक को बोलने व अभिव्यक्ति का अधिकार है. वर्ष 1976 में
सर्वोच्च न्यायालय ने ‘राज नारायण बनाम उत्तर प्रदेश सरकार’
मामले में कहा कि, लोग अभिव्यक्त नहीं कर सकते
जब तक कि वो संबंधित पहलू को न जानें. इस कारण सूचना का अधिकार संविधान के
अनुच्छेद 19 में छुपा है.’ सर्वोच्च
न्यायालय ने इस मामले में आगे कहा कि, ‘भारत एक लोकतंत्र है.
लोग मालिक हैं. इसलिए लोगों को यह जानने का अधिकार है कि सरकार, जो उनकी सेवा के लिए है, क्या कर रहीं है. न्यायालय
के अनुसार, प्रत्येक नागरिक कर देता है, अतः नागरिकों के पास इस प्रकार यह जानने का अधिकार है कि उनका धन किस
प्रकार खर्च हो रहा है. इन सिद्धांतों के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय ने सूचना के
अधिकार को मौलिक अधिकारों का एक हिस्सा बताया.
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