सर्वोच्च न्यायालय ने
प्रत्येक पुलिस मुठभेड़ की एफआईआर दर्ज करने का 23 सितंबर 2014
को निर्देश दिया. अपने निर्देश में न्यायालय ने कहा कि हर मुठभेड़
की तुरंत एफआईआर दर्ज हो तथा जब तक जांच चले, तब तक संबंधित
पुलिस अधिकारी को पदोन्नति या साहस पुरस्कार नहीं दिया जाए. न्यायालय ने कहा कि,
पुलिस मुठभेड़ के सभी मामलों की जांच सीबीआई या सीआईडी जैसी
स्वतंत्र एजेंसी से कराई जानी चाहिए. न्यायालय ने सूरत सिंह नामक एक व्यक्ति की
याचिका पर सुनवाई करते हुए ये निर्देश जारी किये.
सर्वोच्च
न्यायालय द्वारा पुलिस मुठभेड़ से जुड़े दिशा-निर्देशों से संबंधित मुख्य तथ्य
• जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि मुठभेड़ सही थी, इसमें शामिल पुलिस अफसरों को कोई पदोन्नति नहीं दिया जाएगा.
• मुठभेड़ की घटना पर तत्काल एफआईआर दर्ज होनी चाहिए और सभी मामलों की मजिस्ट्रेट से जांच हो.
• पुलिसवालों को अपराधियों के बारे में मिली सूचना को रिकॉर्ड कराना होगा और हर मुठभेड़ के बाद अपने हथियार और गोलियां जमा करने होंगे.
• पुलिस मुठभेड़ के मामलों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) दखल नहीं देगा, जब तक की इस बात की पूरी आशंका हो न हो कि मुठभेड़ फर्जी थी.
• पुलिस मुठभेड़ के मामले में एफआईआर दर्ज कर इसे तत्काल मजिस्ट्रेट को भेजना होगा. अगर पीड़ित पक्ष को लगता है कि मुठभेड़ फर्जी था तो वह सेशन न्यायालय में केस दर्ज करा सकता है.
• जब तक यह साबित नहीं हो जाता कि मुठभेड़ सही थी, इसमें शामिल पुलिस अफसरों को कोई पदोन्नति नहीं दिया जाएगा.
• मुठभेड़ की घटना पर तत्काल एफआईआर दर्ज होनी चाहिए और सभी मामलों की मजिस्ट्रेट से जांच हो.
• पुलिसवालों को अपराधियों के बारे में मिली सूचना को रिकॉर्ड कराना होगा और हर मुठभेड़ के बाद अपने हथियार और गोलियां जमा करने होंगे.
• पुलिस मुठभेड़ के मामलों में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) दखल नहीं देगा, जब तक की इस बात की पूरी आशंका हो न हो कि मुठभेड़ फर्जी थी.
• पुलिस मुठभेड़ के मामले में एफआईआर दर्ज कर इसे तत्काल मजिस्ट्रेट को भेजना होगा. अगर पीड़ित पक्ष को लगता है कि मुठभेड़ फर्जी था तो वह सेशन न्यायालय में केस दर्ज करा सकता है.
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