13 फरवरी 2015 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने
क्रिकेट विश्व कप की शुभकामना देने के लिए सार्क के चार देशों– पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश
औऱ अफगानिस्तान के नेताओं को फोन किया. उन्होंने क्रिकेट खेल रहे देशों के नेताओं
को फोन किया और उन्हें शुभकामनाएं दी.
चल रहे किक्रेट विश्व कप में सार्क के पांच देश हिस्सा ले रहे हैं.
मोदी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ, अफगानिस्तान
के राष्ट्रपति अशरफ गनी, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख
हसीना और श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रिपाल सीरिसेना को फोन किया और उन्हें
शुभकामनाएं दीं.
शिष्टाचार में किए गए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इन फोन कॉल्स को क्रिकेट की कूटनीति का नाम दिया जा सकता है, जिसका इस्तेमाल अतीत में विश्व के अन्य नेताओं ने खेल के जरिए अपने देशों को जोड़ने के लिए किया था. सार्क देशों के संदर्भ में क्रिकेट लोगों को एक दूसरे से जोड़ने और सद्भावना को बढ़ाने में मदद करता है.
इस क्रिकेट कूटनीति के साथ, मोदी ने घोषणा की कि विदेश सचिव डॉ. एस जयशंकर को जल्द ही सार्क देशों के साथ संबंधों को और मजबूत करने के लिए सार्क यात्रा पर भेजा जाएगा.
क्रिकेट कूटनीति
क्रिकेट कूटनीति का अर्थ है क्रिकेट खेलने वाले दो देशों के बीच राजनयिक संबंधों को बेहतर या खराब करने के लिए क्रिकेट का एक राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल. क्रिकेट विश्व में फुटबॉल के बाद दूसरे सबसे बड़े पैमाने पर खेला जाने वाला खेल है, का प्रयोग राजनीतिक शून्य की खाई को पाटने में राजनीतिक उपकरण के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. कहा जा सकता है कि क्रिकेट कूटनीति गनबोट कूटनीति से बेहतर है जहां सेना तैनात की जाती है विरोधी पर दबाव डाला जाता है.
भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट कूटनीति
भारत और पाकिस्तान के संदर्भ में राजनीतिक संबंधों की खाई को पाटने में क्रिकेट कूटनीति बहुत मह्तवपूर्ण भूमिका निभा रही है. भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट कूटनीति 1987 में उस समय शुरु हुई थी, जब पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल जिया– उल– हक जयपुर में भारत और पाकिस्तान के बीच खेले गए एक टेस्ट मैच देखने आए थे. उनके भारत आगमन से अफगानिस्तान पर सोवियत आक्रमण और भारत पर सोवियत दबाव का तनाव खत्म करने में मदद मिली थी.
इसके बाद 2005 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ एक क्रिकेट मैच देखने भारत आए और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिलकर कश्मीर पर बातचीत फिर से शुरु करने को कहा. साल 2005 के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री युसुफ रजा गिलानी ने 2011 क्रिकेट विश्व कप के दौरान भारत की यात्रा की और भारत और पाकिस्तान के बीच खेले गए सेमीफाइनल मुकाबले को देखा. उनके इस दौरे ने 2008 मुंबई हमलों के बाद दोनों देशों के बीच आए संबंधों में खटास को कम करने में मदद की.
शिष्टाचार में किए गए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इन फोन कॉल्स को क्रिकेट की कूटनीति का नाम दिया जा सकता है, जिसका इस्तेमाल अतीत में विश्व के अन्य नेताओं ने खेल के जरिए अपने देशों को जोड़ने के लिए किया था. सार्क देशों के संदर्भ में क्रिकेट लोगों को एक दूसरे से जोड़ने और सद्भावना को बढ़ाने में मदद करता है.
इस क्रिकेट कूटनीति के साथ, मोदी ने घोषणा की कि विदेश सचिव डॉ. एस जयशंकर को जल्द ही सार्क देशों के साथ संबंधों को और मजबूत करने के लिए सार्क यात्रा पर भेजा जाएगा.
क्रिकेट कूटनीति
क्रिकेट कूटनीति का अर्थ है क्रिकेट खेलने वाले दो देशों के बीच राजनयिक संबंधों को बेहतर या खराब करने के लिए क्रिकेट का एक राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल. क्रिकेट विश्व में फुटबॉल के बाद दूसरे सबसे बड़े पैमाने पर खेला जाने वाला खेल है, का प्रयोग राजनीतिक शून्य की खाई को पाटने में राजनीतिक उपकरण के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. कहा जा सकता है कि क्रिकेट कूटनीति गनबोट कूटनीति से बेहतर है जहां सेना तैनात की जाती है विरोधी पर दबाव डाला जाता है.
भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट कूटनीति
भारत और पाकिस्तान के संदर्भ में राजनीतिक संबंधों की खाई को पाटने में क्रिकेट कूटनीति बहुत मह्तवपूर्ण भूमिका निभा रही है. भारत और पाकिस्तान के बीच क्रिकेट कूटनीति 1987 में उस समय शुरु हुई थी, जब पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल जिया– उल– हक जयपुर में भारत और पाकिस्तान के बीच खेले गए एक टेस्ट मैच देखने आए थे. उनके भारत आगमन से अफगानिस्तान पर सोवियत आक्रमण और भारत पर सोवियत दबाव का तनाव खत्म करने में मदद मिली थी.
इसके बाद 2005 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ एक क्रिकेट मैच देखने भारत आए और तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिलकर कश्मीर पर बातचीत फिर से शुरु करने को कहा. साल 2005 के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री युसुफ रजा गिलानी ने 2011 क्रिकेट विश्व कप के दौरान भारत की यात्रा की और भारत और पाकिस्तान के बीच खेले गए सेमीफाइनल मुकाबले को देखा. उनके इस दौरे ने 2008 मुंबई हमलों के बाद दोनों देशों के बीच आए संबंधों में खटास को कम करने में मदद की.
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