भारत सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व प्रधान न्यायाधीश
न्यायमूर्ति आरसी लाहोटी को ब्रिटेन की दूरसंचार कंपनी वोडाफोन से जुड़े 20000
करोड़ रूपए के कर विवाद मामले में मध्यस्थ नियुक्त किया. इनके
नियुक्ति की जानकारी 17 जून 2014 को दी
गई.
भारत सरकार ने यह निर्णय 17 अप्रैल 2014 को वोडाफोन द्वारा विवाद सुलझाने के लिए भारत व नीदरलैंड के बीच हुए द्विपक्षीय निवेश संरक्षण व संवर्द्धन समझौते के तहत भेजे गये नोटिस के संज्ञान में लिया.
वोडाफोन के भेजे गए अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने 15 मई 2014 को सुलह समझौता पेशकश को वापस लेने को मंजूरी दी थी.
मंत्रिमंडल ने जून 2013 में सुलह समझौता पेशकश को मंजूरी दी थी ताकि हचिसन एस्सार में वर्ष 2007 के दौरान हचिसन व्हांपाओ की हिस्सेदारी खरीदने से जुड़े मामले में पूंजीगत लाभ पर कर विवाद को हल किया जा सके.
विवाद क्या है?
वर्ष 2007 में वोडाफोन ने हालैंड स्थित अपनी एक सहयोगी कंपनी के द्वारा 11.2 अरब अमेरिकी डॉलर में हचिसन एस्सार की 67 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदी थी. भारत सरकार का कहना था कि यह सौदा देश में कर के दायरे में आता है जबकि वोडाफोन का मानना था कि यह कर के दायरे में ही नहीं आता, और यदि कर लगाया ही जाना है तो वह विनिवेश करने वाली कंपनी से लिया जाना चाहिये.
जनवरी 2012 में सर्वोच्च न्यायालय ने वोडाफोन के पक्ष में फैसला सुनाया था. इसके बाद भारत सरकार ने कर कानून में पूर्व प्रभावी संशोधन कर दिया परिणाम स्वरूप यह सौदा कर के दायरे में आ गया.
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