पृथ्वी का सबसे बड़ा जल भंडार पृथ्वी के भीतरी परत में होने के प्रमाण मिले-(19-JUNE-2014) C.A

| Thursday, June 19, 2014
पृथ्वी का सबसे बड़ा जल भंडार संभवतः पृथ्वी के भीतर ही स्थित है. इसका पता 13 जून 2014 को जरनल साइंस में प्रकाशित एक अध्ययन से चलता है.

यह अध्ययन पश्चिमोत्तर भूभौतिक विद स्टीव जैकबसन औऱ यूनिवर्सिटी ऑफ न्यू मैक्सिको के भूकंपविज्ञानी ब्रैंडन श्चिमैन्डिट् ने किया था.

इस अध्ययन से यह बात के पहली बार प्रमाण मिले हैं कि पृथ्वी की परत जिसे संक्रमण क्षेत्र (ट्रांजिशन जोन) लोअर मेंटर और अपर मेंटल के बीच की परत, के तौर पर जाना जाता हैमें पानी हो सकता है. 

इस अध्ययन से वैज्ञानिकों को पृथ्वी के बनने, उसकी वर्तमान संरचना और अंदरूनी हलचलों और मेंटल रॉक में कितना पानी है, के बारे में पता लगाने में मदद मिल सकती है. 

खोज के बारे में
अध्ययन में, भूभौतिक विद ने पाया कि भूमिगत मेग्मा की गहराई में उत्तरी अमेरिका में जमीन से 643 किलोमीटर नीचे पानी के होने के संकेत मिले हैं. यह पानी तरल, बर्फ या वाष्प के रूप में नहीं है. पानी का चौथा रूप मेंटल रॉक में खनिजों की आणविक संरचना में फंसा हुआ है.
 
खोज में पता चला है कि पृथ्वी के नीचे 643 किलोमीटर में पिघलाने का काम हो सकता है. पानी (H2O) उस जगह मौजूद है जहां खनिज रिंगवुडाइट्स हैं. खोज यह सुझाव देता है कि पृथ्वी की सतह से इतनी गहराई से पानी प्लेट टेक्टोनिक्स के जरिए बाहर निकाला जा सकता है जो गहरे मेंटर में पाए जाने वाले चट्टानों को आंशिक रूप से पिघला देता है.

काफी समय से वैज्ञानिक इस बात की संभावना जता रहे थे कि पृथ्वी के मेंटल की चट्टानी परत में पानी फंसा हुआ है और यह 400 किलोमीटर से 660 किलोमीटर की गहराई में लोअर मेंटल और अपर मेंटल के बीच में है.
 
शोधकर्ताओं के विश्लेषण के मुताबिक अगर ट्रांजिशन जोन में स्थित मेंटल रॉक का एक प्रतिशत भी पानी (H2O) है तो यह हमारे समुद्रों में मौजूद पानी से लगभग तीन गुने पानी के बराबर होगा.



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