भारतीय प्रौधोगिकी संस्थान (आइआइटी) बीएचयू, वाराणसी के ‘रसायन अभियांत्रिकी विभाग’ के वैज्ञानिकों ने फेफड़े के कैंसर रोकने में मददगार बैक्टीरिया की खोज की
घोषणा की. यह घोषणा जून 2014 के तीसरे सप्ताह में हुई. घोषणा
के अनुसार, मिट्टी में कुछ ऐसे बैक्टीरिया खोजे गए हैं,
जो हवा में फैलने वाले कैंसरजनक रासायनिक कणों को सोख लेने में
सक्षम हैं.
वैज्ञानिकों द्वारा किये गए शोध में यह पाया गया कि मृदा में मिलने वाले ‘मैथनोट्राप्स’ व ‘डाइजोट्राप्स’
नामक बैक्टीरिया, पेंट के कारखानों व पेट्रोल
से चलने वाले वाहनों आदि से उत्सर्जित होकर वातावरण में फैलने वाले ‘वोलाटाइल आर्गेनिक कंपाउंड’ (वीओसी) के कणों को सोख
लेने में सक्षम हैं. ये कण फेफड़े के कैंसर के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं.
वैज्ञानिकों ने बैक्टीरिया की संख्या बढ़ाने के लिए कोयला, पॉलिमिनाइल एल्कोहल, कंपोस्ट, बांस के टुकड़े, नारियल की पत्ती, पोटेशियम नाइट्रेट व कुछ अन्य चीजों के सहयोग से ‘बायोरिएक्टर’ विकसित किया. उनके अनुसार, यदि कारखानों एवं वाहनों से निकलने वाली गैसों को ‘बायोरिक्टर’ से पास कराया जाए तो ये बैक्टीरिया गैस में मौजूद ‘ट्राई क्लोरोइथिलिन’ नामक उस कण को नष्ट कर देंगे, जिनकी अति सूक्ष्म मात्र (5 पीपीएम) भी कैंसर रोग फैला सकती है.
वैज्ञानिकों ने बैक्टीरिया की संख्या बढ़ाने के लिए कोयला, पॉलिमिनाइल एल्कोहल, कंपोस्ट, बांस के टुकड़े, नारियल की पत्ती, पोटेशियम नाइट्रेट व कुछ अन्य चीजों के सहयोग से ‘बायोरिएक्टर’ विकसित किया. उनके अनुसार, यदि कारखानों एवं वाहनों से निकलने वाली गैसों को ‘बायोरिक्टर’ से पास कराया जाए तो ये बैक्टीरिया गैस में मौजूद ‘ट्राई क्लोरोइथिलिन’ नामक उस कण को नष्ट कर देंगे, जिनकी अति सूक्ष्म मात्र (5 पीपीएम) भी कैंसर रोग फैला सकती है.
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