16 जनवरी 2015 को आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति
(सीसीईए) ने केंद्रीय पूल में खाद्यान्न के बफर मानदंड़ों में संशोधन को मंजूरी दे
दी. यह संशोधन देश में खाद्यान्न भंडार के बेहतर प्रबंधन को सुनिश्चित करने के लिए
मंजूर किया गया था.
खाद्यान्न के संशोधित बफर मानदंड
अब भारतीय खाद्य निगम को 2005 के
मौजूदा मानदंड़ों की तुलना में अलग– अलग तिमाहियों में अधिक
बफर स्टॉक का रख–रखाव करना होगा. ये इस प्रकार हैं–
को
(एज ऑन) 2005 से मौजूद
संशोधित
1 अप्रैल
21.2 मिलियन टन 21.04 मिलियन टन
1 जुलाई
31.9 मिलियन टन 41.12 मिलियन टन
1 अक्टूबर 21.2 मिलियन टन 30.77 मिलियन टन
1 जनवरी
25.0 मिलियन टन 21.41 मिलियन टन
इसके अलावा सीसीईए ने खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग को
केंद्रीय पूल में संशोधित बफर मानदंड से अधिक खाद्यान्न भंडार होने पर उसे घरेलू
बाजार में खुली बिक्री या निर्यात के जरिए खपत करने की भी मंजूरी दे दी.
इस फैसले को अमल में लाने के लिए एक अंतर– मंत्रालयी समूह (आईएमजी) का भी गठन किया गया. इसमें खाद्य एवं सार्वजनिक
वितरण विभाग के सचिव, व्यय सचिव और उपभोक्ता मामलों के सचिव
होंगे और ये सभी खाद्यान्न भंडार के प्रबंधन के जिम्मेदार होंगे.
संशोधित बफर मानदंडों की जरूरत क्यों पड़ी?
बफर मानदंडों को लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली
(टीपीडीएस) के तहत खाद्यान्न लेने की मात्रा में हुई उल्लेखनीय वृद्धि के मद्देनजर
किया गया है. साथ ही यह वृद्धि 5 जुलाई 2013 से कार्यान्वित हुई राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 द्वारा अनिवार्य किए गए खाद्यान्न जरूरतों के मद्देनजर किया गया है.
खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत 2015
में हर महीने हर एक व्यक्ति को 5 किलो अनाज,
3 रुपये प्रति किलो चावल और 2 रुपये प्रति
किलो गेहूं देने की योजना है. इस योजना के तहत दो–तिहाई
आबादी को कवर किया जाएगा.
हालांकि, संशोधित बफर मानदंड
यूपीए सरकार द्वारा सुझाए गए मानदंड से कम है. मनमोहन सिंह नीत यूपीए सरकार ने बफर
मानदंड में 60 फीसदी बढ़ोतरी करने का प्रस्ताव दिया था.
नरेन्द्र मोदी नीत सरकार ने बफर मानदंडों को सिर्फ 50 फीसदी तक बढ़ाया है. यह 2024–15 के केंद्रीय बजट में
दी गई राजकोषीय घाटे को बनाए रखने और सब्सिडी को लक्षित करने के सरकार की मंशा को
बताता है.
ऐसा इसलिए है क्योंकि खाद्य सुरक्षा अधिनियम द्वारा
खाद्यान्नों की बढी हुई जरूरतों को पूरा करने के लिए एफसीआई को सालाना एक लाख टन
गेहूं और चावल को रखने पर 25 से 32 करोड़ रुपये
खर्च करने होंगे.
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