टीक्सोबैक्टीन नाम के नए एंटीबायोटिक की खोज मैसाचुसेट्स
के बोस्टन में नॉर्थइस्टर्न यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों की टीम ने की. करीब तीन
दशकों के बाद पहली बार खोजा गया यह एंटीबायोटिक ऐसे संक्रमणों से लड़ने में सक्षम
है जो हर वर्ष सैंकड़ों – हजारों लोगों की मौत
की वजह बनते हैं.
यह खोज 7 जनवरी 2005 को नेचर नाम के जनरल में ऑनलाइन प्रकाशित हुआ था.
टेक्सोबैक्टीन के गुण
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टेक्सोबैक्टीन लिपिड II ( पेप्टीडोग्लायकन के अग्रदूत) और लिपिड III ( कोशिका
दीवार टीकोइक एसिड के अग्रदूत ) के अत्यधिक संरक्षित मूल भाव को बांध कर दीवार
संश्लेषण को रोकता है.
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स्टाफिलोकोक्कस ऑरियस या
माइकोबैक्टेरियम ट्यूबरकुलोसिस प्रतिरोधी का कोई भी म्यूटेंट टेक्सोबैक्टीन से
प्राप्त किया जा सकता है.
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इस यौगिक के गुण ऐसे एंटीबायोटिक्स
को विकसित करने का रास्ता बताते हैं जो प्रतिरोध क्षमता को कम करता है.
टेक्सोबैक्टीन की प्राप्ति ?
टेक्सोबैक्टीन एंटीबोटिक को असंवर्धित बैक्टीरिया से सीटू
की खेती या विशेष विकास कारकों का प्रयोग कर प्राप्त किया गया है. इसके लिए
असंवर्धित बैक्टीरिया का प्रयोग इसलिए किया गया क्योंकि टीम का मानना था कि बाहरी
वातावरण में मौजूद सभी प्रजातियों में से लगभग 99 फीसदी नए
एंटीबायोटिक दवाओं के अप्रयुक्त स्रोत हैं.
यह खोज आवश्यक क्यों है?
पहला एंटीबायोटिक पेनिसिलिन की खोज 1928में एलेक्जेंडर फ्लेमिंग ने की थी औऱ तब से 100से
अधिक यौगिकों की खोज हो चुकी है. एंटीबायोटिक्स की खोज के महत्वपूर्ण दशक 1950
और 1960 के दशक थे लेकिन 1987 के बाद से कोई भी नया श्रेणी नहीं मिला था.
नए एंटीबायोटिक या दवा की जरूरत इसलिए महत्वपूर्ण है
क्योंकि मलेरिया और एमडीआर टीबी (क्षयरोग) अब लाइलाज बन गए हैं क्योंकि इन
बीमारियों ने वर्तमान में मौजूद एंटीबायोटिक की श्रेणी के खिलाफ प्रतिरोध क्षमता
विकसित कर ली है, जिसकी वजह से सार्वजनिक स्वास्थ्य समस्या
पैदा हो गई है. यह खोज दवाओं के प्रति बढ़ते प्रतिरोध क्षमता से लड़ने में
फायदेमंद हो सकता है.
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