पश्चिमी घाट में बुश मेढक की नौ प्रजातियों का पता चला-(12-DEC-2014) C.A

| Friday, December 12, 2014

भारतीय विज्ञान संस्थान  (आईआईएससी Indian Institute of Science (IISc), Bangalore), बेंगलूर, भारत के वैज्ञानिकों ने पश्चिमी घाटों में बुश मेढक की नौ प्रजातियों की खोज की. बुश मेढकदक्षिण और दक्षिण पूर्वी एशिया में फैले छोटे मेढक की प्रजातियां हैं.
खोज के निष्कर्ष अंतरराष्ट्रीय जरनल जूटाक्सा में प्रकाशित हुए थे. इन प्रजातियों को खोजने वाली आईआईएससी की टीम का नेतृत्व एसपी विजयकुमार और कार्तिक शंकर ने किया.
बुश मेढक की ये सभी नौ प्रजातियां मेढक राओर्चेस्ट्स ( Raorchests) प्रजाति के हैं जो पश्चिमी घाटों में फैले हुए हैं. खोजे गए इन मेढकों में से कुछ अंगूठे के नाखून जितने छोटे हैं. 
नौ मेढकों की सूची और उनके गुण 
राओर्चेस्ट्स फ्लैविक्यूलारिस (Raorchestes flaviocularis) :  इस प्रजाति के मेढक की आंखों पर धातु के पीले धब्बे हैं.  यह एक चाय बगान में छोटे पेड़ों के पत्तों पर पाए गए थे.  
राओर्चेस्ट्स औरेअस (Raorchestes aureus) : यह अपने सुनहरी आंखों की वजह से जाना जाता है जो चित्तियों से घिरा है. यह प्रजाति वन के घास के मैदानों में 2010 में पाई गई थी. 
राओर्चेस्ट्स प्रीमार्रम्फी (Raorchestes primarrumpfi) :  यह प्रजाति घास के मैदानों और उंचे स्थानों के दलदलों में रहती है. इसका नाम जर्मन शब्द प्रीमार्रम्फ पर रखा गया है. 
राओर्चेस्ट्स इचीनाटस (Raorchestes echinatus) :  इसकी पीठ पर सींग के जैसी लकीरें होती हैं और इसकी आंखें सुनहरे धब्बेदार होने के साथ आंखों के निचले किनारे पर भूरा बैंड होता है. यह प्रजाति 2011 में घास ब्लेड पर पाई गई थी. 
राओर्चेस्ट्स इमरल्ड (Raorchestes emerald) : यह प्रजाति करीब 5 सेंटीमीटर लंबी है और यह ज्ञात राओर्चेस्ट्स ( Raorchests) प्रजातियों में सबसे बड़ी है. इस प्रजाति में मांसल बैंगनी कांख हैं और उसके पूरे शरीर पर पीले धब्बे हैं. 
राओर्चेस्ट्स ल्यूकोलैटस (Raorchestes leucolatus):  यह प्रजाति गीले सदाबहार वनों की झाड़ियों और घासों में पाई जाती है. यह गहरेभूरेलाल रंग और सफेद छब्बे वाला होता है. 
राओर्चेस्ट्स आर्किओस (Raorchestes archeos) : यह हल्का भूरा, मध्यम आकार वाला बुश मेढक है. इसका आधा हाथ काला जबकि बाकी का आधा भूरा है. यह सबसे पहले 2010 में गीले सदाबहार बनों में देखा गया था. 
राओर्चेस्ट्स ब्लैंडस (Raorchestes blandus):  यह अपने मधुर संभोर कॉल के कारण नामित किया गया है और इसमें ब्लैंड (लैटिन शब्द) का अर्थ है सुखद. सबसे पहले 2008 में देखा गया. इसकी त्वचा पर अनियमित भूरे रंग की ग्रंथि धब्बे होते हैं. 
राओर्चेस्ट्स इंडिगो (Raorchestes indigo): पैरों के भीतर की तरफ इंडिगो के धब्बों पर इसका यह नाम रखा गया है. यह कुदेरमुख (जो एक पर्वत शिखर है और यह घोड़े के मुंह जैसा दिखता है) के जंगलों में पाया गया था. 
इस परियोजना को क्रिटिकल इकोसिस्टम पार्टनरशिप फंड (सीईपीएफ) और भारतीय वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआरभारत) से वित्त मुहैया कराया गया था. केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु के वन विभागों ने भी टीम को उनके अध्ययन में मदद की. 

इससे पहले जून 2014 में वैज्ञानिकों ने दक्षिण भारत के पश्चिमी घाटों में नाचने वाले मेढकों की 14 नई प्रजातियों की भी खोज की थी. नाचने वाले भारतीय मेढकों का वैज्ञानिक नाम Micrixalidae और उनका परिवार एकल जीनस Micrixalus से बना है.

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