विभागीय प्रोन्नति परीक्षा में एससी-एसटी को मानक के अनुरूप छूट देने का सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश-(23-JULY-2014) C.A

| Wednesday, July 23, 2014
सर्वोच्च न्यायालय की पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) कर्मचारियों को विभागीय प्रोन्नति परीक्षा में छूट देने संबंधी मापदंडों को बहाल करने की याचिका 20 जुलाई 2014 को स्वीकार कर ली. केंद्र सरकार ने 1997 में इन मापदंडों को वापस ले लिया था.

सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति आरएम लोढ़ा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने इसके साथ ही 22 जुलाई 1997 के शासकीय प्रपत्र को गैरकानूनीकरार देते हुए इसे निरस्त कर दिया. इस प्रपत्र में विभागीय पदोन्नति के मामले में अनुसूचित जाति और जनजातियों के कर्मचारियों के बारे में शामिल मापदंडों को वापस लेने का निर्देश दिया गया था.

संविधान पीठ ने अपने निर्णय में निर्देश दिया, कि परिणामस्वरूप, दीवानी अपील स्वीकार की जाती हैं. यह आदेश निरस्त किया जाता है. 1997 का कार्यालय प्रपत्र गैरकानूनी घोषित किया जाता है. प्रतिवादियों को निर्देश दिया जाता है कि 1996 के सीमित विभागीय प्रतियोगिता परीक्षा में आरक्षण प्रदान करके सेक्शन आफीसर्स-स्टेनोग्राफर (ग्रेड बी) के परिणाम में संशोधन किया जाए और अपीलकर्ताओं को इसके परिणामस्वरूप सारे लाभ दिए जाएं यदि अभी तक नहीं दिए गए हों.

संविधान पीठ ने स्पष्ट किया कि विभागीय परीक्षाओं में छूट के मानकों के द्वारा होने वाली पदोन्नति को एम नागराज प्रकरण में वर्ष 2006 में निर्धारित शर्तों को पूरा करना होगा. इस निर्णय में आरक्षण पर 50 प्रतिशत की सीमा और संपन्न तबके (क्रीमी लेयर) तथा बाध्यकारी कारण शामिल थे. नागराज प्रकरण में न्यायालय ने निर्देश दिया था कि पदोन्नति के मामले में सरकार अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए आरक्षण की व्यवस्था के लिये बाध्य नहीं है. हालांकि, यदि वे अपने विवेकाधिकार का इस्तेमाल करना चाहें और ऐसा प्रावधान करते हैं तो सरकार को संविधान के अनुच्छेद 335 के पालन के साथ ही सार्वजनिक रोजगार में वर्ग विशेष के पिछड़ेपन और अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के बारे में आंकड़े एकत्र करने होंगे.

संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति जेएस खेहड़, न्यायमूर्ति जे चेलामेश्वर, न्यायमूर्ति एके सीकरी और न्यायमूर्ति रोहिन्टन एफ नरीमन शामिल हैं.
 
विदित हो कि कार्मिक विभाग ने दिसम्बर 1970 में विभागीय प्रतियोगी परीक्षाओं और विभागीय स्थाई परीक्षाओं में अनुसूचित जाति और जनजातियों के प्रत्याशियों के लिए मानकों में छूट दी थी, लेकिन 1997 में सरकार ने इस आदेश को वापस ले लिया था, क्योंकि इसे शीर्ष अदालत में चुनौती दी गई थी और न्यायालय ने इसकी अनुमति प्रदान कर दी थी.


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