हाल ही में 14 जुलाई 2014 को
केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने इस बात पर बल दिया कि किशोर न्याय
(बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2000 किशोरों द्वारा
की गई महिलाओं के खिलाफ अपराधों में वृद्धि हेतु संशोधन की जरूरत है.
किशोर न्याय अधिनियम, 2000 को
पहले के किशोर न्याय अधिनियम, 1986 को निरस्त करके लाया गया
था जो बच्चों के सुरक्षा और सरंक्षण के संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के बाल अधिकार के
सरक्षण कानून, 1989 पर आधारित था.
यह अधिनियम 16 वर्ष की
आयु के बच्चों को किशोर परिभाषित करता है जो 16 वर्ष की आयु
के अपराधी किशोरों के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण के बर्ताव को स्वीकृति प्रदान
करता है. यह कानून 16 वर्ष आयु के अंतर्गत अपराधी को बाल
सुधार गृह में अधिकतम तीन साल की सजा का प्रावधान प्रदान करता है.
किशोर न्याय अधिनियम में संशोधन की मांग दिसंबर 2012
के निर्भया मामले के बाद सामने आई जिसमें छह अपराधियों में सबसे
क्रूर अपराधी 18 वर्ष से कम आयु का था जिसे केवल तीन साल की
सजा दी गई.
इसके अलावा, यदि हम अपराधों की संख्या में किशोरों या
18 वर्ष के बच्चों की सहभागिता को देखते हैं तो राष्ट्रीय
अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों चौंकाने वाले हैं.
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2012
की तुलना में वर्ष 2013 में 18 वर्ष से कम आयु के अपराधियों द्वारा बलात्कार के मामलें में 60 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
इसके अलावा, बाल
सुधार घरों की दयनीय स्थिति और सुधार घरों में बच्चों के शोषण ये सभी कारण किशोर
अपराधों की संख्या में कमी होते नहीं देख रहे हैं.
इस प्रकार, अब समय आ
गया है कि किशोर न्याय अधिनियम में संशोधन किया जाए जो वयस्कों के रूप में किशोरों
के जघन्य अपराध का इलाज है वरना किशोरों में बढ़ते अपराध की प्रवृत्ति में गिरावट
कभी देखने को नहीं मिलेगी.
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