29 जुलाईः अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस
दुनिया भर में 29 जुलाई 2014 को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया. यह दिवस जागरूकता दिवस के तौर पर मनाया जाता है. इस दिवस को मनाने का उद्देश्य जंगली बाघों के निवास के संरक्षण एवं विस्तार को बढ़ावा देने के साथ बाघों के संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाना है.
दुनिया भर में 29 जुलाई 2014 को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस मनाया. यह दिवस जागरूकता दिवस के तौर पर मनाया जाता है. इस दिवस को मनाने का उद्देश्य जंगली बाघों के निवास के संरक्षण एवं विस्तार को बढ़ावा देने के साथ बाघों के संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाना है.
फिलहाल बाघों की संख्या अपने न्यूनतम स्तर पर है. पिछले 100 वर्षों में बाघों की आबादी का लगभग 97 फीसदी खत्म हो
चुका है. वर्ष 1913 में दुनिया में करीब एक लाख जंगली बाघ थे
जो वर्ष 2014 में सिर्फ 3000 रह गए.
अनुमान के मुताबिक भारत में वर्ष 2006 में 1411 जंगली बाघ थे जिनकी संख्या वर्ष 2010 में बढ़कर 1706
हो गई थी. बाघों की आबादी वाले 13 देशों में
भारत में बाघों की संख्या सबसे अधिक है.
बाघों की आबाद में कमी
बाघों की आबाद में कमी
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वर्ष 1913 – करीब एक लाख बाघ थे.
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वर्ष 2013 (100 वर्ष बाद) – बाघों की
आबादी घटकर 3724 रह गई.
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वर्ष 2014 – आबादी घटकर 3000 हो गई.
एक अनुमान के अनुसार बाघों की संख्या अगर इसी रफ्तार से कम
होती रही तो आने वाले पांच वर्षों में ये दुनिया से पूरी तरह विलुप्त हो जाएंगे.
बाघों की प्रजातियां
बाघों को उनके फर के रंग से वर्गीकृत किया जाता है और इसमें सफेद बाघ (10000 बाघों में से एक ) भी शामिल है. फिलहाल बाघों की छह प्रमुख प्रजातियां हैं और वे हैं–
बाघों की प्रजातियां
बाघों को उनके फर के रंग से वर्गीकृत किया जाता है और इसमें सफेद बाघ (10000 बाघों में से एक ) भी शामिल है. फिलहाल बाघों की छह प्रमुख प्रजातियां हैं और वे हैं–
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साइबेरियन बाघ
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बंगाल बाघ
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इंडोचाइनीज बाघ
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मलायन बाघ
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सुमात्रण बाघ
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साउथ चाइना बाघ
इसके अलावा, बाघों की कई
उपप्रजातियां हैं जो पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं–इनमें बाली
बाघ और जावा बाघ भी हैं.
इनकी आबादी में कमी की वजह
मनुष्यों द्वारा शहरों और कृषि का विस्तार जिसकी वजह से बाघों का 93 फीसदी प्राकृतिक आवास खत्म हो चुका है. अवैध शिकार भी एक बड़ी वजह है जिसकी वजह से बाघ अब आईयूसीएन के विलुप्तप्राय श्रेणी में आ चुके हैं. इनका अवैध शिकार उनके चमड़े, हड्डियों और शरीर के अन्य भागों के लिए किया जाता है. इनका इस्तेमाल परंपरागत दवाइयों को बनाने में किया जाता है. कई बार बाघों की हत्या शान में भी की जाती है.
इनकी आबादी में कमी की वजह
मनुष्यों द्वारा शहरों और कृषि का विस्तार जिसकी वजह से बाघों का 93 फीसदी प्राकृतिक आवास खत्म हो चुका है. अवैध शिकार भी एक बड़ी वजह है जिसकी वजह से बाघ अब आईयूसीएन के विलुप्तप्राय श्रेणी में आ चुके हैं. इनका अवैध शिकार उनके चमड़े, हड्डियों और शरीर के अन्य भागों के लिए किया जाता है. इनका इस्तेमाल परंपरागत दवाइयों को बनाने में किया जाता है. कई बार बाघों की हत्या शान में भी की जाती है.
इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन भी
बहुत बड़ी वजह है जिससे जंगली बाघों की आबादी कम हो रही है. जलवायु परिवर्तन की
वजह से समुद्र का स्तर बढ़ रहा है जिससे जंगलों के खत्म होने का खतरा पैदा हो गया
है खासकर सुंदरवन क्षेत्र में और इसलिए इस इलाके के बाकी बचे बाघों के आवास के लिए
भी. विश्व वन्यजीव कोष (डब्ल्यूडब्ल्यूएफ) के अध्ययन के मुताबकि वर्ष 2070 तक समुद्र का स्तर एक फुट तक बढ़ जाएगा जो पूरे सुंदरवन बाघ आवास को खत्म
करने के लिए पर्याप्त होगा.
विश्व के बाघों की सबसे अधिक आबादी सुंदरवन (भारत और
बंग्लादेश द्वारा साझा किया जाने वाले सबसे बड़ा सदाबहार वन क्षेत्र) के इलाके में
प्रमुखता से पाई जाती है और यह हिन्द महासागर के उत्तरी तट पर स्थित है.
अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के बारे में
विश्व बाघ दिवस 29 जुलाई को मनाने का फैसला वर्ष 2010 में सेंट पिट्सबर्ग बाघ समिट में लिया गया था क्योंकि तब जंगली बाघ विलुप्त होने के कगार पर थे. इस समिट में बाघ की आबादी वाले 13 देशों ने वादा किया था कि वर्ष 2022 तक वे बाघों की आबादी दुगुनी कर देंगे.
अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस के बारे में
विश्व बाघ दिवस 29 जुलाई को मनाने का फैसला वर्ष 2010 में सेंट पिट्सबर्ग बाघ समिट में लिया गया था क्योंकि तब जंगली बाघ विलुप्त होने के कगार पर थे. इस समिट में बाघ की आबादी वाले 13 देशों ने वादा किया था कि वर्ष 2022 तक वे बाघों की आबादी दुगुनी कर देंगे.
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