इंडोनेशिया के केडिरी जिले (जावा के मुख्य द्वीप) का माउंट
केलूड ज्वालामुखी कई हफ्तों की हलचल के बाद 13 फरवरी 2014
को फट गया. इसके परिणामस्वरूप देश की सरकार ने ज्वालामुखी के 10
किलोमीटर के भीतर के 36 गाँवों के 2 लाख लोगों को जगह खाली करने के आदेश दिए हैं. ज्वालामुखी हवा में 17
किलोमीटर तक राख और रेत उगल रहा है.
ज्वालामुखी फटने के परिणामस्वरूप जोग्यकर्ता, सोलो और सुराबया नामक तीन हवाई अड्डे बंद कर देने पड़े हैं. हवाई अड्डे बंद
करने की कार्रवाई इसलिए करनी पड़ी, क्योंकि ज्वालामुखी फटने
के दौरान देशभर में आसमान काला पड़ गया, जिससे दृश्यता
(विजिबिलिटी) घट गई है. राख हवाई जहाजों के इंजिनों को नुकसान भी पहुँचा सकती है.
राष्ट्रीय आपदा शमन एजेंसी ने कहा कि ज्वालामुखी द्वारा
उगली हुई राख और कंकड़ी 200 किलोमीटर की दूरी
तक उडी. इस पहाड़ के फटने की आवाज सुराबया से 130 किलोमीटर की
दूरी तक, बल्कि उससे भी दूर जोगकर्ता के मैदान तक सुनी गई.
रिपोर्टें बताती हैं कि राख ने दोनों शहरों के मैदानों को ढक लिया है और वह अभी भी
गिर रही है.
पिछली बार माउंट केलूड 2007 में फटा था. 1990
में इसके फटने से 30 से ज्यादा लोग मर गए थे
और 100 से ज्यादा घायल हो गए थे. 1990 से
पहले 1919 में वह इससे भी कहीं ज्यादा ताकत से फटा था,
जिसमें लगभग 5000 लोग मारे गए थे.
इससे पूर्व जनवरी 2014 में सुमात्रा
द्वीप के सिनाबंग पहाड़ में ज्वालामुखी फटा था, जिसमें 14
लोग मारे गए थे.
इंडोनेशिया में ज्वालामुखी फटने के कारण
इंडोनेशिया भूवैज्ञानिक भ्रंश-रेखाओं की एक श्रृंखला में
पड़ता है, जिससे यहाँ बार-बार भूकंप आते हैं और ज्वालामुखी फटते हैं. इंडोनेशिया आग के प्रशांत वलय पर
बैठा है और प्रशांत महासागर की द्रोणी के आसपास भूकंपी
गतिविधियों की पट्टी के रूप में कार्य करता है. टकराने
वाली महाद्वीपीय प्लेटों के क्षेत्र में होने के कारण इंडोनेशिया नियमित रूप से
आने वाले ताकतवर भूकंपों का साक्षी बनता है और अकसर वहाँ ज्वालामुखी फटते रहते
हैं. 1731-मीटर का केलूड इंडोनेशिया के लगभग 130 सक्रिय ज्वालामुखियों में से एक है और देश के सबसे खतरनाक ज्वालामुखियों
में से एक माना जाता है. 1500 से अब तक माउंट केलूड में
ज्वालामुखियों के फटने से 15000 से ज्यादा जानें जा चुकी हैं,
जिनमें 1568 में फटे विशाल ज्वालामुखी में गईं
10000 जानें शामिल हैं.
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