केंद्रीय वेतन आयोग एवं संवैधानिक प्रावधान-(13-FEB-2014) C.A

| Thursday, February 13, 2014
वेतन आयोग का गठन सरकार द्वारा एक ऐसी प्रशासनिक व्यवस्था के नियमन के लिए किया गया था जिसके अंतर्गत सरकारी कर्मचारियों के जीविका से संबंधित वेतनमान को निर्धारित किये जाने का प्रावधान है.
सर्वप्रथम कर्मचारियों के जीवन-यापन की स्थिति पर विचार करने वाले इस्लिंगटन आयोग द्वारा यह प्रस्ताव रखा गया था कि सरकार व्यक्तिगत संस्थानों के लिए जो न्यूनतम वेतनमान निर्धारित करेगी, उसे अपने कर्मचारियों पर भी वही प्रतिमान लागू करने चाहिए.
इस्लिंगटन आयोग की अवधारणाओं का समर्थन करते हुए भारत सरकार द्वारा मई 1946 में श्रीनिवास वरदाचारी की अध्यक्षता में प्रथम वेतन आयोग का गठन किया गया था. इस आयोग द्वारा जिन विशेष तथ्यों पर अपने सुझाव (या सिफारिशें) प्रस्तुत करने थे, वे निम्नवत हैं:
1)    परिलब्धि ढांचे के संचालन एवं केंद्र सरकार के कर्मचारियों की सेवा सम्बंधित उन स्थितियों का सिद्धान्त निरुपण, जिनकी वित्तीय परिणतियाँ संभव हो.
2)    केंद्र सरकार के निम्न कर्मचारी वर्गों की सेवा, स्थितियों एवं परिलब्धियों की तात्कालिक ढांचे में उपलब्ध कुछ लाभ के संदर्भ में जाँच करना और साथ ही साथ, उनमें वांछित तथा संभव परिवर्तनों कि सिफारिश करना. इसके अंतर्गत आनेवाले कर्मचारी अग्रांकित हैं:
a)    केंद्र सरकार के औद्योगिक एवं गैर औद्योगिक कर्मचारी,
b)    अखिल भारतीय सेवाओं से सम्बंधित कर्मचारी,
c)    सशस्त्र बलों से सम्बंधित कर्मचारी,
d)    संघ शासित प्रदेशों के कर्मचारी तथा
e)    उच्चतम न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय के कर्मचारी एवं अधिकारी.
3)    पेंशन पाने वाले व्यक्तियों के लिए उपयुक्त पेंशन ढाँचा बताने की दृष्टि से मृत्यु, अवकाश ग्रहण एवं अन्य लाभों सहित मौजूदा पेंशन ढांचें की जाँच करना तथा उनमें आवश्यक संभव परिवर्तनों की सिफारिश करना.
4)    उपर्युक्त कर्मचारी वर्गों के वेतन के अलावा उपलब्ध अन्य लाभों की समीक्षा करना एवं उनकी कार्य-पद्धति के साथ-साथ काम करने के माहौल की जाँच करना तथा प्रशासन में दक्षता प्राप्त करने, अनावश्यक कागजी काम काज कम करने और सरकारी तंत्र की सीमा निर्धारित करने के विचार से कार्य पद्दति को तार्किक तथा सरल बनाने के उपायों की सिफारिश करना.

ध्यातव्य है कि आयोग को उपर्युक्त सुझावों एवं सिफारिशों पर विचार करते समय देश की तात्कालिक आर्थिक परिस्थितियो, केंद्र सरकार के साधनों की उपलब्धता, देश की सुरक्षा तथा राज्य सरकारों के कर्मचारियों के तात्कालिक वेतन ढाँचे को भी ध्यान में रखना होगा. वस्तुतः वेतन आयोग का गठन भारत सरकार द्वारा अपने कर्मचारियों के वेतनमानों में संशोधन करने के लिए हर दस वर्ष के अंतराल पर किया जाता है. गौरतलब है कि प्रत्येक राज्य अपनी सुविधा के अनुसार उसमें कुछ संशोधनों के साथ अपनाते हैं.
अब तक कुल सात वेतन आयोग का गठन किया जा चुका है जिसमें सातवाँ वेतन आयोग आगामी दो वर्षों में अपनी सिफारिशों को प्रस्तुत करेगा तथा 1 जनवरी 2016 से उन्हें लागू किया जायेगा. अब तक गठित कुल सात वेतन आयोग का संक्षिप्त विवरण अग्रांकित है
पहला वेतन आयोग– पहले वेतन आयोग का गठन मई 1946 में श्रीनिवास वरदाचारी की अध्यक्षता में किया गया था. इस आयोग ने एक वर्ष के अंतर्गत 1947 में इस्लिंगटन आयोग के प्रस्तावों का समर्थन करते हुए कर्मचारियों के जीने की स्थिति पर विचार कर अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की. इसकी मुख्य सिफारिश यह थीं कि सरकार जो नियम निजी संस्थाओं के कर्मचारियों के वेतन से सम्बंधित मसलों पर लागू करेगी उसे अपने कर्मचारियों (सरकारी कर्मचारी) पर भी लागू करना चाहिए.
दूसरा वेतन आयोग- दूसरे वेतन आयोग का गठन स्वतंत्रता के दस वर्ष पश्चात 1957 में जगन्नाथ दास की अध्यक्षता में किया गया था. इस आयोग ने अपनी मुख्य सिफारिशें दो वर्ष पश्चात जुलाई 1959 में प्रस्तुत की तथा इस बात पर विशेष जोर दिया कि कर्मचारियों  की कार्य परिस्थिति एवं वेतन ढाचें को देखते हुए विशेष पदों के लिए न्यूनतमशैक्षणिक योग्यता निर्धारित की जानी चाहिए ताकि दक्ष लोगों का चयन किया जा सके.
तीसरा वेतन आयोग– तीसरे वेतन आयोग का गठन अप्रैल 1970 में रघुवीर दयाल की अध्यक्षता में किया गया तथा इसकी सिफारिशें तीन वर्ष पश्चात जनवरी 1973 में लागू हुई. इस आयोग ने सर्वप्रथम कर्मचारियों के जीने की स्थिति हेतु न्यूनतम राशि के स्थान पर ऐसी राशि देने की बात कि जिससे कि प्रत्येक स्तर के अधिकारी अपना कार्यकाल संतुष्टि के साथ पूरा कर सकें.
चौथा वेतन आयोग– चौथे वेतन आयोग का गठन जून 1983 में पी. एन. सिंघल की अध्यक्षता में किया गया तथा इसकी सिफारिशों को तीन चरणों में चार वर्ष पश्चात 18 मार्च 1987 को लागू किया गया था. इस आयोग की सिफारिशों को लागू करने से सरकार पर 12.82 रूपये का अतिरिक्त आर्थिक भार पड़ा था.
पांचवां वेतन आयोग– पांचवें वेतन आयोग का गठन न्यायमूर्ति एस. आर. पांडियन की अध्यक्षता में 9 अप्रैल 1994 को किया गया था. इसकी सिफारिशों को लागू करने से सरकार पर 17000 करोड़ रूपये का आर्थिक भार पड़ा था.
छठवां वेतन आयोग– इस आयोग का गठन बी. एन. कृष्णा की अध्यक्षता में जनवरी 2006 में किया गया था तथा इसकी सिफारिशें जुलाई 2006 से लागू की गयी थीं. इसकी सिफारिशों को लागू करने से 2008-09 में सरकार पर लगभग 22000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त भार पड़ा था. तत्कालीन वित्त मंत्री ने यह स्वीकार  किया था कि इस भार की वजह से राजकोषीय घाटे में वृद्धि हो रही है.
सातवां वेतन आयोग- केंद्र सरकार ने सितंबर 2013 में सातवें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी दी थी. सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति अशोक कुमार माथुर इसके अध्यक्ष होंगें. पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस सचिव विवेक रॉय इसके पूर्णकालिक सदस्य निदेशक तथा राष्ट्रीय सार्वजानिक वित्त नीति संस्थान के रतीन रॉय अंशकालिक सदस्य होंगे. व्यय विभाग की विशेष कार्य अधिकारी मीना अग्रवाल वेतन पैनल की सचिव होंगी. इस आयोग के द्वारा केन्द्रीय सरकार के 50 लाख से अधिक और लगभग 30 लाख पेंशनरों के वेतन में संशोंधन किया जायेगा. इस आयोग को दो वर्ष के अन्दर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी है जिसे 1 जनवरी 2016 से लागू किया जायेगा.


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