सरकार वन नीति के कार्यान्वयन की निगरानी हेतु राष्ट्रीय नियामक की नियुक्ति करे: सर्वोच्च न्यायालय-(12-JAN-2014) C.A

| Sunday, January 12, 2014
भारत के सर्वोच्च न्यायालय के तीन सदस्यीय खंडपीठ ने वन नीति के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए एक राष्ट्रीय नियामक की नियुक्ति के लिए भारत सरकार को 6 जनवरी 2014 को निर्देश दिए. खंडपीठ ने भारत सरकार को नियामक नियुक्त करने और यथासंभव सभी राज्यों में इसके कार्यालय स्थापित करने का भी निर्देश दिया.
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति एके पटनायक, न्यायाधीश न्यायमूर्ति सुरिन्दर सिंह निज्जर और न्यायाधीश न्यायमूर्ति एफएमआई कलीफुल्ला की तीन सदस्यीय खंडपीठ ने केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ( एमओईएफ ) की उस दलील को खारिज कर दिया जिसमें कहा गया था कि वन नीति के कार्यान्वयन की निगरानी के लिए किसी राष्ट्रीय नियामक जैसी संस्था की जरूरत नहीं है.

खंडपीठ ने इसके साथ ही केन्द्र सरकार को इस आदेश पर अमल के बारे में 31 मार्च, 2014 तक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश भी दिया.

अपने आदेश में खंडपीठ ने यह स्पष्ट किया कि नियामक  केवल 1988 की वन नीति के कार्यान्वयन को देखेंगे जबकि बाक़ी मंजूरी पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा वन अधिनियम के तहत किए जाएँगे.

राष्ट्रीय नियामक सीधे तौर पर हर परियोजना के लिए 2006 की पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) की अधिसूचना जारी करेगा.

खंडपीठ ने कहा कि ऐसा करना जरूरी हो गया है क्योंकि केन्द्र सरकार के तहत पर्यावरण प्रभाव आकलन की वर्तमान प्रणाली में कमियां है.

विदित हो कि पर्यावरण एवं वन मंत्रालय वर्ष 2011 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सुनाये गये निर्णय में सुधार चाहता था. इस निर्णय में केन्द्र सरकार को परियोजनाओं की मंजूरी के लिये पर्यावरण संबंधी शर्तों को लागू करने और प्रदूषणकर्ताओं पर जुर्माना लगाने के लिये राष्ट्रीय नियामक नियुक्त करने का निर्देश दिया गया था. केन्द्र सरकार ने वर्ष 2013 में न्यायालय को सूचित किया था कि पर्यावरण मंजूरी से संबंधित मसलों पर गौर करने के लिये किसी हरित नियामक की आवश्यकता नहीं है.


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