मौद्रिक नीति ढांचा संशोधित करने और उसे मजबूत बनाने को
लेकर गठित की गई विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट 21 जनवरी 2014
को भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर को सौंप दी. समिति का गठन भारतीय
रिज़र्व बैंक के गवर्नर डॉ. रघुराम राजन ने 12 सितंबर 2013
को किया था, जिसके अध्यक्ष रिज़र्व बैंक के उप
गवर्नर डॉ. उर्जित आर. पटेल थे. ऐसा उसे पारदर्शी और अनुमेय (प्रिडिक्टेबल) बनाने
के लिए किया गया था.
समिति की मुख्य सिफारिशें
विशेषज्ञ समिति ने अपने सुझावों में निम्नलिखित सिफारिशेन की.
• मौद्रिक नीति के निर्धारण के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक को एक नया उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) अपनाना चाहिए.
• समिति ने आसपास 2 प्रतिशत के प्लस/माइनस बैंड के साथ 4 प्रतिशत का मुद्रास्फीति लक्ष्य भी तय किया.
• मौद्रिक नीति संबंधी निर्णय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के हाथों में सौंपा जाना चाहिए, जिसके अध्यक्ष भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर हों.
• सिफारिश के रूप में दिए गए इन सुझावों का आशय यह स्पष्ट करते हुए कि मुद्रास्फीति भारतीय रिज़र्व बैंक का प्राथमिक लक्ष्य है, मुद्रास्फीतिगत अपेक्षाएं बेहतर बनाना है. वह उसके निष्पादन के लिए उसे जिम्मेदार ठहराए जाने की अपेक्षा भी करती है.
• सरकार को भी यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि जीडीपी के अनुपात के रूप में राजकोषीय घाटा कम करके 2016-17 तक 3 प्रतिशत पर लाया जाना चाहिए, जो राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (संशोधन) नियमावली 2013 से संगत होना चाहिए.
• बाजार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) और नकदी प्रबंधन बिल (सीएमबी) को समाप्त कर दी जानी चाहिए.
• सरकारी ऋण और नकदी प्रबंधन सरकार के ऋण प्रबंधन कार्यालय द्वारा अपने हाथ में ले लेना चाहिए.
• समस्त नियत आय वाले वित्तीय उत्पादों को कराधान और टीडीएस के प्रयोजनों से बैंक-जमाराशियों के समान समझा जाना चाहिए.
• खुले बाजार के कार्यकलापों (ओएमओज) को राजकोषीय परिचालनों से अलग करने और इसके स्थान पर उन्हें पूर्णत: चलनिधि-प्रबंधन से जोड़े जाने का सुझाव दिया.
• ओएमओज का इस्तेमाल सरकारी प्रतिभूतियों पर होने वाली आय के प्रबंधन के लिए नहीं किया जाना चाहिए.
विशेषज्ञ समिति
विशेषज्ञ समिति का गठन भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर डॉ. रघुराम राजन ने 12 सितंबर 2013 को किया था. भारतीय रिज़र्व बैंक के उप गवर्नर डॉ. उर्जित आर पटेल को इस समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. अध्यक्ष डॉ. उर्जित आर. पटेल के अतिरिक्त समिति के सदस्य-डॉ. पी.जे. नायक, प्रो. चेतन घाटे, प्रो. पीटर जे. मोंटियल, डॉ. साजिद जेड. चिनॉय, डॉ. रूपा नित्सुरे, डॉ. गंगाधर दर्भा, दीपक मोहंती और डॉ. माइकेल देबब्रत पात्रा (सदस्य सचिव) रहे.
समिति के विचारार्थ विषय
• एक वैश्विक और अंत:संबंधित माहौल में मौद्रिक नीति के उद्देश्यों और संचालन की समीक्षा करना.
• मौद्रिक नीति के संचालन के लिए एक उपयुक्त नॉमिनल एंकर नियुक्त करने की सिफारिश करना.
• मौद्रिक नीति के संगठनात्मक ढाँचे, परिचालन-रूपरेखा और उपकरणों की समीक्षा करना, विशेषकर उसके बहु-संकेतक नजरिये की, ताकि समष्टि-आर्थिक और वित्तीय स्थिरता के साथ-साथ बाजार-विकास के साथ भी उनकी अनुकूलता सुनिश्चित की जा सके.
• मौद्रिक नीति के संचारण की विनियामक, राजकोषीय और अन्य बाधाओं को चिह्नित करना और वित्तीय बाजार-खंडों तथा व्यापकतर अर्थव्यवस्था में उसके संचारण में सुधार लाने के उपायों और संस्थागत पूर्व-शर्तों की सिफारिश करना.
• उपर्युक्त सभी मुद्दों के संबंध में पिछली समितियों/समूहों की सिफारिशों पर सावधानीपूर्वक विचार करना.
समिति की मुख्य सिफारिशें
विशेषज्ञ समिति ने अपने सुझावों में निम्नलिखित सिफारिशेन की.
• मौद्रिक नीति के निर्धारण के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक को एक नया उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) अपनाना चाहिए.
• समिति ने आसपास 2 प्रतिशत के प्लस/माइनस बैंड के साथ 4 प्रतिशत का मुद्रास्फीति लक्ष्य भी तय किया.
• मौद्रिक नीति संबंधी निर्णय मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के हाथों में सौंपा जाना चाहिए, जिसके अध्यक्ष भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर हों.
• सिफारिश के रूप में दिए गए इन सुझावों का आशय यह स्पष्ट करते हुए कि मुद्रास्फीति भारतीय रिज़र्व बैंक का प्राथमिक लक्ष्य है, मुद्रास्फीतिगत अपेक्षाएं बेहतर बनाना है. वह उसके निष्पादन के लिए उसे जिम्मेदार ठहराए जाने की अपेक्षा भी करती है.
• सरकार को भी यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि जीडीपी के अनुपात के रूप में राजकोषीय घाटा कम करके 2016-17 तक 3 प्रतिशत पर लाया जाना चाहिए, जो राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन (संशोधन) नियमावली 2013 से संगत होना चाहिए.
• बाजार स्थिरीकरण योजना (एमएसएस) और नकदी प्रबंधन बिल (सीएमबी) को समाप्त कर दी जानी चाहिए.
• सरकारी ऋण और नकदी प्रबंधन सरकार के ऋण प्रबंधन कार्यालय द्वारा अपने हाथ में ले लेना चाहिए.
• समस्त नियत आय वाले वित्तीय उत्पादों को कराधान और टीडीएस के प्रयोजनों से बैंक-जमाराशियों के समान समझा जाना चाहिए.
• खुले बाजार के कार्यकलापों (ओएमओज) को राजकोषीय परिचालनों से अलग करने और इसके स्थान पर उन्हें पूर्णत: चलनिधि-प्रबंधन से जोड़े जाने का सुझाव दिया.
• ओएमओज का इस्तेमाल सरकारी प्रतिभूतियों पर होने वाली आय के प्रबंधन के लिए नहीं किया जाना चाहिए.
विशेषज्ञ समिति
विशेषज्ञ समिति का गठन भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर डॉ. रघुराम राजन ने 12 सितंबर 2013 को किया था. भारतीय रिज़र्व बैंक के उप गवर्नर डॉ. उर्जित आर पटेल को इस समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया. अध्यक्ष डॉ. उर्जित आर. पटेल के अतिरिक्त समिति के सदस्य-डॉ. पी.जे. नायक, प्रो. चेतन घाटे, प्रो. पीटर जे. मोंटियल, डॉ. साजिद जेड. चिनॉय, डॉ. रूपा नित्सुरे, डॉ. गंगाधर दर्भा, दीपक मोहंती और डॉ. माइकेल देबब्रत पात्रा (सदस्य सचिव) रहे.
समिति के विचारार्थ विषय
• एक वैश्विक और अंत:संबंधित माहौल में मौद्रिक नीति के उद्देश्यों और संचालन की समीक्षा करना.
• मौद्रिक नीति के संचालन के लिए एक उपयुक्त नॉमिनल एंकर नियुक्त करने की सिफारिश करना.
• मौद्रिक नीति के संगठनात्मक ढाँचे, परिचालन-रूपरेखा और उपकरणों की समीक्षा करना, विशेषकर उसके बहु-संकेतक नजरिये की, ताकि समष्टि-आर्थिक और वित्तीय स्थिरता के साथ-साथ बाजार-विकास के साथ भी उनकी अनुकूलता सुनिश्चित की जा सके.
• मौद्रिक नीति के संचारण की विनियामक, राजकोषीय और अन्य बाधाओं को चिह्नित करना और वित्तीय बाजार-खंडों तथा व्यापकतर अर्थव्यवस्था में उसके संचारण में सुधार लाने के उपायों और संस्थागत पूर्व-शर्तों की सिफारिश करना.
• उपर्युक्त सभी मुद्दों के संबंध में पिछली समितियों/समूहों की सिफारिशों पर सावधानीपूर्वक विचार करना.
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