भारतीय रिज़र्व बैंक ने एक्सिस बैंक के पूर्व अध्यक्ष और
मुख्य कार्यपालक अधिकारी पीजे नायक की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति का गठन 20 जनवरी 2014 को किया. इस विशेषज्ञ समिति का गठन भारत
में बैंकों के निदेशक-मंडलों के अभिशासन की समीक्षा करने के लिए किया गया. समिति
में आठ अन्य सदस्य एस. रमन, शुभलक्ष्मी पनसे, प्रतीप कार, जॉयदीप सेनगुप्ता, हर्ष वर्धन, सोमशेखर सुंदरेसन, जे. सागर और कृष्णमूर्ति सुब्रमणियन हैं.
समिति के विचारणीय विषय
• भारत में बैंकों के निदेशक-मंडलों की विनियामक अनुपालन अपेक्षाओं की समीक्षा करना.
• यह निर्णय करना कि क्या चीज ठीक की जा सकती है और कहाँ अपेक्षाओं में वृद्धि आवश्यक है.
• बैंकों के निदेशक-मंडलों की कार्यप्रणाली की जाँच करना, जिसमें यह देखना शामिल है कि क्या रणनीति, संवृद्धि, अभिशासन और जोखिम-प्रबंधन के मुद्दों को पर्याप्त समय दिया जाता है.
• बैंक-स्वामित्व, स्वामित्व-संकेंद्रण और निदेशक-मंडल में प्रतिनिधित्व के संबंध में केंद्रीय बैंक विनियामक दिशानिर्देशों की समीक्षा करना.
• निदेशक-मंडलों में संस्था के अभिशासन के लिए क्षमताओं और आवश्यक स्वतंत्रता के उचित सामंजस्य का मूल्यांकन करना.
• निदेशक-मंडलों में प्रतिनिधित्व का विश्लेषण करना, और निदेशक-मंडल के प्रतिनिधित्व में हितों के संभावित संघर्ष का अन्वेषण करना, जिसमें स्वामी-प्रतिनिधि और विनियामक शामिल हैं. इस संबंध में वह बैंकों में निदेशकों के समस्त वर्गों के लिए 'उपयुक्त और उचित' मानदंड का मूल्यांकन और समीक्षा भी करेगी, जिसमें निदेशक का कार्यकाल भी शामिल है.
• निदेशक-मंडलों को की जाने वाली क्षतिपूर्ति के दिशानिर्देशों और बैंकों के निदेशक-मंडलों की कार्यप्रणाली तथा उनके द्वारा किए जाने वाले अभिशासन से संबंधित किसी अन्य मुद्दे की जाँच करना.
समिति द्वारा अपनी पहली बैठक की तारीख से तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दिए जाने की आशा है.
विदित हो कि इस समिति से पहले, भारीतय रिज़र्व बैंक ने ऐसा ही एक पैनल वर्ष 2002 में एएस गांगुली की अध्यक्षता में गठित किया था और उससे निदेशक-मंडलों के सदस्यों की भूमिका को और अधिक प्रभावशाली बनाने के तरीके ढूँढ़ने के लिए सुझाव देने को कहा था. उसके द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट मुख्यत: निजी बैंकों पर लागू हुई थी.
समिति के विचारणीय विषय
• भारत में बैंकों के निदेशक-मंडलों की विनियामक अनुपालन अपेक्षाओं की समीक्षा करना.
• यह निर्णय करना कि क्या चीज ठीक की जा सकती है और कहाँ अपेक्षाओं में वृद्धि आवश्यक है.
• बैंकों के निदेशक-मंडलों की कार्यप्रणाली की जाँच करना, जिसमें यह देखना शामिल है कि क्या रणनीति, संवृद्धि, अभिशासन और जोखिम-प्रबंधन के मुद्दों को पर्याप्त समय दिया जाता है.
• बैंक-स्वामित्व, स्वामित्व-संकेंद्रण और निदेशक-मंडल में प्रतिनिधित्व के संबंध में केंद्रीय बैंक विनियामक दिशानिर्देशों की समीक्षा करना.
• निदेशक-मंडलों में संस्था के अभिशासन के लिए क्षमताओं और आवश्यक स्वतंत्रता के उचित सामंजस्य का मूल्यांकन करना.
• निदेशक-मंडलों में प्रतिनिधित्व का विश्लेषण करना, और निदेशक-मंडल के प्रतिनिधित्व में हितों के संभावित संघर्ष का अन्वेषण करना, जिसमें स्वामी-प्रतिनिधि और विनियामक शामिल हैं. इस संबंध में वह बैंकों में निदेशकों के समस्त वर्गों के लिए 'उपयुक्त और उचित' मानदंड का मूल्यांकन और समीक्षा भी करेगी, जिसमें निदेशक का कार्यकाल भी शामिल है.
• निदेशक-मंडलों को की जाने वाली क्षतिपूर्ति के दिशानिर्देशों और बैंकों के निदेशक-मंडलों की कार्यप्रणाली तथा उनके द्वारा किए जाने वाले अभिशासन से संबंधित किसी अन्य मुद्दे की जाँच करना.
समिति द्वारा अपनी पहली बैठक की तारीख से तीन महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर दिए जाने की आशा है.
विदित हो कि इस समिति से पहले, भारीतय रिज़र्व बैंक ने ऐसा ही एक पैनल वर्ष 2002 में एएस गांगुली की अध्यक्षता में गठित किया था और उससे निदेशक-मंडलों के सदस्यों की भूमिका को और अधिक प्रभावशाली बनाने के तरीके ढूँढ़ने के लिए सुझाव देने को कहा था. उसके द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट मुख्यत: निजी बैंकों पर लागू हुई थी.
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