भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने 9 जनवरी 2014 को प्रशासनिक और सिविल कार्यवाहियों का
निपटान विनियमावली, 2014 लांच की, जो
निपटान-प्रक्रियाएँ निष्पादित करने के लिए मार्गदर्शक कारक उपलब्ध कराती है. नई
अधिसूचना के अनुसार, गंभीर अपराध, जैसे
कि अवैध धन-संग्रह, भेदिया कारोबार और कपटपूर्ण व्यापार
निपटान के दायरे से बाहर कर दिए गए.
विनियमों का यह सेट पूर्वव्यापी प्रभाव के साथ 20 अप्रैल 2007 से अधिसूचित किया गया है, जिस दिन वर्तमान निपटान-प्रणाली लागू की गई थी.
इस मानदंडों के अंतर्गत सेबी ने निपटान न किए जा सकने वाले उल्लंघनों की सूची का विस्तार कर दिया. इसमें संबंधित व्यक्ति या संस्था (entity) को सेबी द्वारा स्वयं को कारण बताओ नोटिस जारी करने के 60 दिन के भीतर निपटान का निवेदन प्रस्तुत करने का प्रावधान भी किया गया. उसने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि जिन मामलों में आवेदक पहले से दो पिछले निपटानों में पार्टी रहा हो, उनके निपटान में प्रभारों और संबंधित लागत के भुगतान पर विचार नहीं किया जाएगा.
इस मानदंडों के अंतर्गत न्यायालय या न्यायाधिकरण के समक्ष लंबित मामले का निपटान नहीं किया जाएगा. मानदंडों में व्यक्ति या संस्था द्वारा चुकाई जाने वाली न्यूनतम राशि का भी उल्लेख किया गया है, जो उनके विरुद्ध लगे आरोपों के अनुसार अलग-अलग होगी. ये प्रभार प्रवर्तकों के लिए उच्चतम होंगे.
इस प्रक्रिया में पारदर्शिता प्रदान करने के लिए इन मानदंडों ने आंतरिक समिति और उच्चाधिकारप्राप्त सलाहकार समिति की भूमिका भी स्पष्ट कर दी है. इनमें मौद्रिक और गैर-मौद्रिक या दोनों रूपों में निपटान की शर्तों का प्रावधान किया गया है. मानदंडों के अनुसार निपटान की शर्तों में निपटान की राशि और संबंधित लागतें, कारोबार बंद करना, पंजीकरण का स्वैच्छिक निलंबन और अन्य उपयुक्त दिशानिर्देश शामिल हैं.
निपटान की राशि भारत की समेकित निधि में जमा की जाएगी और कानूनी लागत सेबी की सामान्य निधि में शामिल की जाएगी. अवैध मुनाफे (अगर कोई हों) सेबी की निवेशक संरक्षा और शिक्षा निधि में क्रेडिट जमा किए जाएँगे.
भारत की समेकित निधि
भारत के संविधान में अनुच्छेद 266 (1) के अंतर्गत यह उल्लेख किया गया है कि करेत्तर राजस्व (नॉन-टैक्स रेवेन्यूज) भारत की समेकित निधि में जमा की जाएगी. इसके अतिरिक्त करों, जैसे कि आयकर, सीमाशुल्क और अन्य, से प्राप्त सरकार के समस्त राजस्व भी केवल समेकित निधि में ही जमा किया जाएगा. इसी प्रकार, सरकार द्वारा सार्वजनिक अधिसूचनाएँ और खजाना बिल जारी करके प्राप्त किए गए समस्त ऋणों (आंतरिक कर्ज) के साथ-साथ विदेशी सरकारों तथा अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से प्राप्त ऋण (बाह्य कर्ज) भी इसी निधि में जमा किए जाते हैं. सरकार का समस्त व्यय इसी निधि से किया जाता है. इस निधि से कोई भी राशि संसद द्वारा प्राधिकृत किए बिना नहीं निकाली जा सकती.
विनियमों का यह सेट पूर्वव्यापी प्रभाव के साथ 20 अप्रैल 2007 से अधिसूचित किया गया है, जिस दिन वर्तमान निपटान-प्रणाली लागू की गई थी.
इस मानदंडों के अंतर्गत सेबी ने निपटान न किए जा सकने वाले उल्लंघनों की सूची का विस्तार कर दिया. इसमें संबंधित व्यक्ति या संस्था (entity) को सेबी द्वारा स्वयं को कारण बताओ नोटिस जारी करने के 60 दिन के भीतर निपटान का निवेदन प्रस्तुत करने का प्रावधान भी किया गया. उसने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि जिन मामलों में आवेदक पहले से दो पिछले निपटानों में पार्टी रहा हो, उनके निपटान में प्रभारों और संबंधित लागत के भुगतान पर विचार नहीं किया जाएगा.
इस मानदंडों के अंतर्गत न्यायालय या न्यायाधिकरण के समक्ष लंबित मामले का निपटान नहीं किया जाएगा. मानदंडों में व्यक्ति या संस्था द्वारा चुकाई जाने वाली न्यूनतम राशि का भी उल्लेख किया गया है, जो उनके विरुद्ध लगे आरोपों के अनुसार अलग-अलग होगी. ये प्रभार प्रवर्तकों के लिए उच्चतम होंगे.
इस प्रक्रिया में पारदर्शिता प्रदान करने के लिए इन मानदंडों ने आंतरिक समिति और उच्चाधिकारप्राप्त सलाहकार समिति की भूमिका भी स्पष्ट कर दी है. इनमें मौद्रिक और गैर-मौद्रिक या दोनों रूपों में निपटान की शर्तों का प्रावधान किया गया है. मानदंडों के अनुसार निपटान की शर्तों में निपटान की राशि और संबंधित लागतें, कारोबार बंद करना, पंजीकरण का स्वैच्छिक निलंबन और अन्य उपयुक्त दिशानिर्देश शामिल हैं.
निपटान की राशि भारत की समेकित निधि में जमा की जाएगी और कानूनी लागत सेबी की सामान्य निधि में शामिल की जाएगी. अवैध मुनाफे (अगर कोई हों) सेबी की निवेशक संरक्षा और शिक्षा निधि में क्रेडिट जमा किए जाएँगे.
भारत की समेकित निधि
भारत के संविधान में अनुच्छेद 266 (1) के अंतर्गत यह उल्लेख किया गया है कि करेत्तर राजस्व (नॉन-टैक्स रेवेन्यूज) भारत की समेकित निधि में जमा की जाएगी. इसके अतिरिक्त करों, जैसे कि आयकर, सीमाशुल्क और अन्य, से प्राप्त सरकार के समस्त राजस्व भी केवल समेकित निधि में ही जमा किया जाएगा. इसी प्रकार, सरकार द्वारा सार्वजनिक अधिसूचनाएँ और खजाना बिल जारी करके प्राप्त किए गए समस्त ऋणों (आंतरिक कर्ज) के साथ-साथ विदेशी सरकारों तथा अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं से प्राप्त ऋण (बाह्य कर्ज) भी इसी निधि में जमा किए जाते हैं. सरकार का समस्त व्यय इसी निधि से किया जाता है. इस निधि से कोई भी राशि संसद द्वारा प्राधिकृत किए बिना नहीं निकाली जा सकती.
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