शेल इंडिया ने आयकर विभाग के खिलाफ 18000 करोड़ रुपयों के कर विवाद मामले में मुकदमा जीता-(21-NOV-2014) C.A

| Friday, November 21, 2014
बंबई उच्च न्यायलय ने आयकर विभाग द्वारा प्रमुख तेल कंपनी शेल इंडिया को 18000 करोड़ रुपयों का कर अदा करने के आदेश को 18 नवंबर 2014 को रद्द कर दिया. शेल इंडिया के पक्ष में फैसला न्यायमूर्ति एम एस सांकलेचा और न्यायमूर्ति एस सी गुप्ते की पीठ ने शेल इंडिया मार्केट्स द्वारा दायर एक याचिका की सुनवाई के बाद किया.
बंबई उच्च न्यायालय ने अक्टूबर 2014 में वोडाफोन मामले में दिए गए कानूनी सिद्धांत को मानते हुए कहा कि यह शेल के मामले में भी लागू होता है और न्यायालय ने आयकर विभाग के इस दलील को खारिज कर दिया कि शेल का मामला वोडाफोन के मामले से अलग है.
वोडाफोन मामले में उच्च न्यायालय ने कहा था कि, ‘जहां तक हस्तांतरित मूल्य निर्धारण सिद्धांतों की बात है किसी भारतीय कंपनी द्वारा अपने विदेशी मूल कंपनी को शेयर जारी करना मूल्य निर्धारण के प्रावधानों को स्थांतरित करने का पात्र नहीं है क्योंकि इससे आय में किसी प्रकार की बढोतरी नहीं होती.
शेल इंडिया मामला
यह मामला विदेश में अपनी मूल कंपनी को शेल इंडिया द्वारा कथित तौर पर जारी किए गए शेयरों के मूल्य निर्धारण से संबंधित है. मार्च 2009 में शेल इंडिया ने 10 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से अपनी मूल कंपनी शेल गैस को 870 मिलियन शेयर जारी किए थे. इसपर आयकर विभाग ने कहा कि शेयरों का मूल्य कम था और विभाग ने एक शेयर का मूल्य 180 रुपये बताया. आयकर विभाग ने यह भी तर्क दिया कि शेल इंडिया द्वारा शेयरों के कममूल्य को हस्तांतरण मूल्य निर्धारण (ट्रांस्फर प्राइसिंग) के तहत छुपाया गया औऱ इसलिए वह प्रीमियम की कमी पर कर का भुगतान करने का उत्तरदायी है. नतीजतन, आयकर विभाग ने वित्त वर्ष 2007– 08 और वित्त वर्ष 2008–09 में दो ट्रांस्फर प्राइसिंग मामलों में शेल इंडिया मार्केट्स प्रा. लि. के लिए क्रमशः 15000 करोड़ रुपये और 3000 करोड़ रुपये के अंतर को कर योग्य आमदनी में जोड दिया.
एक अन्य घटनाक्रम में, आयकर विभाग ने वित्त वर्ष 2009-10 में एक और ट्रांस्फर प्राइसिंग मामले में शेल इंडिया की आमदनी पर 3100 करोड़ रुपयों के लिए कारणबताओ नोटिस जारी किया. इस पर, शेल इंडिया ने आईटी विभाग के कारणबताओ नोटिस को बंबई हाईकोर्ट में चुनौती दिया. उसने आयकर विभाग के आदेश को चुनौती दिया और दलील दी कि, बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा अपनी सहायक कंपनियों को शेयर जारी कर वित्त मुहैया कराना आम बात है. य़ह एक पूंजीगत लेनदेन है और ट्रांस्फर प्राइसिंग ब्रैकेट से बाहर का मामला है.
टिप्पणी
पिछले कुछ वर्षों में आईबीएम कॉर्प और नोकिया समेत कई विदेशी कंपनियों पर उच्च मूल्य कर दावों की यह कहकर आलोचना की गई है कि अत्यधिक उत्साही आयकर अधिकारी भारत में विदेशी निवेश को कमजोर कर सकते हैं.


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